KERALA HC: दैनिक खर्चों के लिए दी गई ग्रांट सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति के बदले में नहीं

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By headlineslivenews.com

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KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी संस्था को उसके दैनिक खर्चों के लिए दी गई ग्रांट को सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति के बदले में भुगतान नहीं माना जा सकता। यह निर्णय केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) और उत्पाद शुल्क विभाग के आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका पर दिया गया।

KERALA HC

इस आदेश में विभाग ने याचिकाकर्ता पर जीएसटी और जुर्माने की भारी भरकम राशि लगाई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज करते हुए मामले को पुनः सुनवाई के लिए वापस भेज दिया।

KERALA HC: मामला और पृष्ठभूमि

यह मामला केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) नामक संस्था से संबंधित है। इस संस्था का गठन केरल सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में आईटी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। इसका मुख्य कार्य स्कूलों के लिए आवश्यक हार्डवेयर की खरीद करना और उन्हें शिक्षा विभाग के निर्देशों के आधार पर वितरित करना है।

इस प्रक्रिया में आवश्यक धनराशि केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) द्वारा प्रदान की जाती है, जो एक सरकारी संस्था है। हालांकि, केंद्रीय जीएसटी विभाग ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने वस्तुओं और सेवाओं की समग्र आपूर्ति की है, और इस पर जीएसटी देय है।

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विभाग ने आदेश दिया था कि जुलाई 2017 से मार्च 2021 तक की अवधि के लिए याचिकाकर्ता को ₹99.05 करोड़ का जीएसटी चुकाना होगा और साथ ही ₹4.95 करोड़ का जुर्माना भी भरना होगा।

KERALA HC: हाईकोर्ट का अवलोकन

हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति गोपीनाथ पी. की एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई की। उन्होंने कहा, “सीजीएसटी अधिनियम की धारा 7 के अनुसार, किसी भी लेनदेन को सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति मानने के लिए ‘विचार/भुगतान’ का होना अनिवार्य है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रस्तुत दस्तावेजों से यह साबित नहीं होता कि याचिकाकर्ता ने सरकार, KIIFB या शिक्षा विभाग से सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति के बदले में कोई भुगतान प्राप्त किया।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को केवल दैनिक खर्चों, जैसे वेतन, भत्ते और अन्य प्रशासनिक जरूरतों के लिए धनराशि प्रदान की गई थी। इसे वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति का भुगतान मानना तर्कसंगत नहीं है।

KERALA HC: याचिकाकर्ता की दलील

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी.ए. हरिता और मिधुना भास्कर ने दलीलें प्रस्तुत कीं। उन्होंने कहा कि:

  1. ग्रांट को सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति का भुगतान नहीं माना जा सकता।
  2. यदि इसे वस्तुओं की आपूर्ति माना भी जाए, तो याचिकाकर्ता को सीजीएसटी अधिनियम की धारा 11 के तहत जारी अधिसूचना का लाभ मिलना चाहिए। यह अधिसूचना सरकारी अनुदान से खरीदी गई वस्तुओं पर जीएसटी छूट प्रदान करती है।
  3. याचिकाकर्ता ने जो भी वस्तुएं खरीदीं, उन पर पहले से ही जीएसटी अदा किया जा चुका है। यदि इन वस्तुओं को स्कूलों को स्थानांतरित किया जाता है, तो यह पूरी तरह से राजस्व-तटस्थ लेनदेन होगा, क्योंकि इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लिया जा सकता है।
  4. विभाग के आदेश में कई विरोधाभासी और आपस में असंगत निष्कर्ष हैं।

KERALA HC: कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने विभाग के आदेश का गहराई से विश्लेषण किया और पाया कि उसमें याचिकाकर्ता की दलीलों को उचित महत्व नहीं दिया गया है। कोर्ट ने कहा, “आदेश में कोई सुसंगत और स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि विभाग का यह विचार कि KIIFB द्वारा दी गई धनराशि अनुदान नहीं है, “तंग दृष्टिकोण” का उदाहरण है। न्यायालय ने माना कि इस तरह की व्याख्या इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है।

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हाईकोर्ट ने विभाग के आदेश को खारिज करते हुए मामले को पुनः सुनवाई के लिए वापस भेज दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को दिए गए अनुदान को सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति का भुगतान नहीं माना जा सकता, और इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि किसी संस्था को उसके दैनिक खर्चों के लिए दी गई धनराशि को वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति का भुगतान मानना न्यायोचित नहीं है। हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल याचिकाकर्ता को राहत प्रदान करता है, बल्कि उन संस्थाओं के लिए भी एक मिसाल बनता है, जो सरकारी अनुदान पर निर्भर हैं।

मामला: केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन बनाम भारत संघ
याचिकाकर्ता के वकील: वी.ए. हरिता और मिधुना भास्कर
प्रतिवादी के वकील: पी.जी. जयशंकर

KERALA HC: दैनिक खर्चों के लिए दी गई ग्रांट सेवाओं या वस्तुओं की आपूर्ति के बदले में नहीं
JUDGES ON LEAVE

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