KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने 16 वर्षीय नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी। अदालत ने यह फैसला पीड़िता के मानसिक आघात और बार-बार यौन शोषण से उत्पन्न तनाव को ध्यान में रखते हुए दिया। खंडपीठ ने इस मामले में मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता को प्राथमिकता दी और कहा कि बलात्कार पीड़िताओं के मामलों में मानसिक आघात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
KERALA HC: मां की अपील के बाद आया फैसला
यह निर्णय तब आया जब पीड़िता की मां ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। एकल न्यायाधीश ने यह फैसला इसलिए दिया था क्योंकि गर्भ 26 सप्ताह से अधिक का था और भ्रूण में कोई चिकित्सीय विकृति नहीं पाई गई थी। इसके साथ ही, उन्होंने मेडिकल बोर्ड में मनोचिकित्सक की अनुपस्थिति को भी इस निर्णय का आधार बनाया था।
विधायक अजेश यादव: दिल्ली की बादली विधानसभा के विधायक 2024 मे भी बने विकास और जनसमर्थन के प्रतीक
IPL 2025 मेगा ऑक्शन: 577 खिलाड़ियों की बोली, कौन सी टीम के पास कितने पैसे हैं?
मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस. मनु की खंडपीठ ने मां की अपील पर विचार करते हुए पाया कि पीड़िता को “एडजस्टमेंट डिसऑर्डर विद डिप्रेसिव रिएक्शन” नामक मानसिक समस्या है। यह रिपोर्ट मनोचिकित्सक की जांच में सामने आई, जो पीड़िता के मानसिक आघात की गंभीरता को दर्शाती है।
KERALA HC: मानसिक स्वास्थ्य पर जोर
खंडपीठ ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट ने पहले ही यह स्थापित कर दिया है कि पीड़िता मानसिक आघात झेल रही है। एमटीपी अधिनियम, 1971 की धारा 3 और बलात्कार पीड़िताओं के मामलों में मानसिक आघात के विधिक प्रावधानों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि गर्भावस्था समाप्ति की अनुमति दी जानी चाहिए। खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि नाबालिग की मां और पीड़िता की इच्छा को ध्यान में रखना आवश्यक है।
अदालत ने एमटीपी अधिनियम, 1971 की धारा 3(2) का हवाला देते हुए बताया कि यदि गर्भावस्था महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनती है, तो इसे समाप्त करने की अनुमति दी जा सकती है। अदालत ने कहा कि बलात्कार के मामलों में गर्भावस्था से उत्पन्न पीड़ा को पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट के पूर्व निर्णयों का उल्लेख करते हुए, खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में मानसिक आघात को प्राथमिकता देना न्यायसंगत है।
खंडपीठ ने मेडिकल बोर्ड की रचना पर सवाल उठाए, जिसमें मनोचिकित्सक शामिल नहीं था। अदालत ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया और कहा कि इस मामले में एक स्वतंत्र मनोचिकित्सक से जांच कराई जानी चाहिए थी। अदालत ने खेद व्यक्त किया कि एकल न्यायाधीश ने इस दिशा में कदम नहीं उठाए।
KERALA HC: आगे की प्रक्रिया और राज्य की जिम्मेदारी
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि गर्भावस्था समाप्ति के बाद यदि बच्चा जीवित पैदा होता है, तो उसे बचाने के लिए सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाएं। इसके अलावा, यदि परिवार बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है, तो राज्य सरकार उस बच्चे की पूरी जिम्मेदारी लेगी।
अदालत ने कहा कि बलात्कार के मामलों में मानसिक आघात का गहराई से मूल्यांकन करना आवश्यक है। इस मामले में, पीड़िता की मानसिक स्थिति को देखते हुए गर्भावस्था जारी रखना उसके लिए और अधिक कष्टकारी हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी स्थितियों में न्यायालय को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और पीड़िता की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
केरल हाईकोर्ट का यह फैसला मानसिक आघात और बलात्कार पीड़िताओं के अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है। इसने न केवल एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों को मजबूती से लागू किया है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर न्यायालयों की संवेदनशीलता को भी रेखांकित किया है।
मामला: X बनाम भारत संघ और अन्य [2024:KER:83410]
प्रतिनिधित्व:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता मिथुन पवनन, मोहम्मद अमजद के.एम., मेरिन थॉमस
- प्रतिवादी: वरिष्ठ सरकारी वकील के.पी. हरीश, केंद्रीय सरकारी वकील अनिश जैन
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi✌🏻