KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी की गर्भावस्था के मामले में मां के खिलाफ चल रहे POCSO अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब एक मां को यह पता चलता है कि उसकी अविवाहित नाबालिग बेटी गर्भवती है, तो इस खबर से वह मानसिक आघात और द्वंद्व का शिकार हो सकती है, जिससे उसे तुरंत कार्रवाई करने में दिक्कत हो सकती है।
KERALA HC: मामले का विवरण
मामला तब शुरू हुआ जब याचिकाकर्ता (मां) अपनी नाबालिग बेटी को अस्पताल लेकर गई। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि वह 18 हफ्ते की गर्भवती है। इस खबर से मां को गहरा सदमा लगा। इसके बाद उसने अपनी बेटी को सरकारी मेडिकल कॉलेज ले जाने के बजाय एक निजी अस्पताल में भर्ती कराने का निर्णय लिया।
अस्पताल के डॉक्टर ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दी, जिसके बाद पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज किया। मां पर POCSO अधिनियम की धारा 21 और 19(1) के तहत मामला दर्ज किया गया। आरोप था कि मां ने बेटी की गर्भावस्था के बारे में पुलिस को तुरंत जानकारी नहीं दी।
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याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया कि वह खुद इस खबर से मानसिक सदमे और तनाव में थी। इस कारण, वह तत्काल निर्णय लेने या अधिकारियों को जानकारी देने की स्थिति में नहीं थी। उनके वकील ने यह भी तर्क दिया कि POCSO अधिनियम की धारा 19(1) में यह कहीं नहीं लिखा है कि घटना की जानकारी देने के लिए कोई निर्धारित समय सीमा हो।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वह उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमे का सामना कर रही है जिसने उसकी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी, जबकि उसका खुद कोई गलत इरादा (mens rea) नहीं था।
KERALA HC: कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति ए. बधारुद्दीन ने मां की स्थिति को संवेदनशीलता के साथ समझते हुए कहा:
- “यह सच है कि मां ने घटना की सूचना पुलिस को नहीं दी, लेकिन जब एक मां को यह पता चलता है कि उसकी अविवाहित बेटी 18 हफ्ते की गर्भवती है, तो इस खबर से वह मानसिक तौर पर आहत हो सकती है। यह उसे निर्णयहीनता, निष्क्रियता और द्वंद्व की स्थिति में डाल सकता है।”
- “ऐसी स्थिति में मां को सामान्य होने के लिए कुछ समय चाहिए होता है। इसके बाद भी वह लंबे समय तक इस मानसिक आघात से बाहर नहीं आ पाती।”
- “ऐसी परिस्थिति में मां पर आपराधिक मामला चलाना, पहले से ही दर्द में डूबी स्थिति को और अधिक कष्टकारी बना देगा। यह गहरे घाव पर मिर्ची लगाने जैसा होगा।”
KERALA HC: कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने पाया कि मां द्वारा पुलिस को घटना की जानकारी देने में हुई देरी जानबूझकर नहीं थी। डॉक्टर की सूचना पर पहले ही पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया था। इसलिए, मां पर यह आरोप लगाना कि उसने जानबूझकर जानकारी छिपाई, उचित नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि POCSO अधिनियम के प्रावधानों को लागू करते समय अधिकारियों और न्यायपालिका को संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से माता-पिता, के प्रति सहानुभूति और समझ जरूरी है।
हाईकोर्ट ने मां के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में माता-पिता की मानसिक स्थिति को समझने और उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाने की जरूरत है।
X बनाम केरल राज्य
तटस्थ संदर्भ: 2024:KER:85237
KERALA HC: पक्षकारों का प्रतिनिधित्व
- याचिकाकर्ता की ओर से: अधिवक्ता पी. संजय, राहुल राज पी., किरण नारायणन, प्रसून सनी, अमृता एम. नायर, पॉल वर्गीज और बीजू मीनट्टूर।
- प्रतिवादी की ओर से: लोक अभियोजक एम.पी. प्रसांत।
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