KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने आपराधिक अतिक्रमण के एक मामले में चार आरोपियों के खिलाफ अभियोजन को वापस लेने के राज्य की याचिका को मंजूरी दी। इस निर्णय के पीछे अदालत ने आरोपों की मामूली प्रकृति, आरोपियों की मंशा (mens rea) की कमी और उनके सुधार के पहलुओं को आधार बनाया।
यह याचिका राज्य द्वारा मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के उद्देश्य से हाईकोर्ट में दायर की गई थी। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति के. बाबू की एकलपीठ द्वारा की गई।
KERALA HC: केस की पृष्ठभूमि
मामले के अनुसार, चार कॉलेज छात्रों ने एक छात्रा की आत्महत्या के विरोध में प्रदर्शन का नेतृत्व किया था, जिसने उच्च शिक्षा के लिए बैंक ऋण नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर ली थी। छात्र जुलूस का नेतृत्व करते हुए खजाने के कार्यालय परिसर में प्रवेश कर गए, जिसके दौरान स्थानीय लोगों के साथ झड़प हो गई। इसी दौरान खजाने के भवन की खिड़कियों पर पत्थर फेंके गए, जिससे सरकारी संपत्ति को ₹250 का मामूली नुकसान हुआ।
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इस घटना के बाद, छात्रों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 447 के तहत आपराधिक अतिक्रमण और धारा 34 के तहत सामान्य उद्देश्य में भागीदारी का आरोप लगाया गया। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाव अधिनियम (PDPP) की धारा 3(2)(c) के तहत भी उन पर आरोप लगाए गए।
KERALA HC: मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश और राज्य की पुनरीक्षण याचिका
मामले की सुनवाई पहले न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में हुई थी, जहां सहायक लोक अभियोजक ने अभियोजन वापस लेने का आवेदन दाखिल किया था। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने यह आवेदन यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि सहायक लोक अभियोजक ने आवेदन में स्वतंत्र रूप से अपना विचार नहीं दिया और यह सरकार के आदेशों का पालन मात्र था।
मजिस्ट्रेट कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ राज्य ने केरल हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। राज्य लोक अभियोजक ने अदालत में यह तर्क दिया कि घटना के दौरान छात्रों का प्रदर्शन उचित उद्देश्य के लिए था, और इस घटना में मामूली क्षति हुई थी। अभियोजक ने यह भी बताया कि घटना के बाद से आरोपियों ने कोई अन्य अपराध नहीं किया और अब सभी आरोपी जिम्मेदार नागरिक बन चुके हैं, जिनमें से अधिकांश समाजसेवक या राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं।
KERALA HC: हाईकोर्ट का अवलोकन
हाईकोर्ट ने इस मामले में चार मुख्य तर्कों पर विचार किया:
- अपराध की मामूली प्रकृति
- अभियुक्तों की मंशा का अभाव
- समय के साथ उनमें आया सुधार
- आरोपियों की वर्तमान सामाजिक स्थिति
न्यायमूर्ति के. बाबू ने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि आरोपियों के पास उस समय अपराध की मंशा नहीं थी। घटनास्थल पर उपस्थित लोगों और पुलिस के साथ झड़प के दौरान पत्थर फेंके गए थे, जिससे मामूली नुकसान हुआ था।” अदालत ने यह भी माना कि आरोपियों ने अब खुद को एक नई पहचान दी है और कई सामाजिक कार्यों में योगदान दे रहे हैं।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जनहित की अवधारणा समय के साथ बदलती रहती है और इसे हर मामले के संदर्भ में परखा जाना चाहिए। न्यायालय ने यह माना कि छात्रों द्वारा किया गया विरोध प्रदर्शन एक न्यायोचित कारण के लिए था और इसका उद्देश्य खजाने के कार्यालय पर हमला करना नहीं था।
KERALA HC: अभियोजन वापस लेने के सकारात्मक पहलू
हाईकोर्ट ने यह भी देखा कि अभियोजन को वापस लेने से न केवल न्यायिक प्रणाली को लाभ होगा, बल्कि समाज के हितों की भी रक्षा होगी। न्यायालय ने कहा, “इस प्रकार के मामूली मामलों में अभियोजन को वापस लेने से अदालत के समय की बचत होगी और इसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।” न्यायमूर्ति बाबू ने कहा, “अभियोजन को वापस लेना समाज और समुदाय के हित में है, जिससे सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में सहायता मिलेगी।”
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अभियोजन की प्रकृति मामूली थी, और इस तरह के मामूली अपराधों के लिए अभियोजन चलाने का कोई औचित्य नहीं है, खासकर जब आरोपी सुधार के रास्ते पर आ चुके हों। न्यायालय ने यह भी कहा कि अपराध की मामूली प्रकृति, आरोपियों की मंशा का अभाव और उनका सुधार अभियोजन को वापस लेने के सकारात्मक कारक हैं।
KERALA HC: निष्कर्ष
इस प्रकार, केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में अभियोजन को वापस लेते हुए आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में सुधार और समाज के प्रति एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा सकता है।
मामला शीर्षक: राज्य बनाम श्रीनाथ [न्यूट्रल संदर्भ संख्या: 2024:KER:74890]