KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यौन इरादे से किए गए ऐसे कृत्य, जिनमें शारीरिक संपर्क हो लेकिन प्रवेश न हो, बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत भी यौन शोषण माने जाएंगे।
यह निर्णय न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने आरोपी द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। यह याचिका विशेष न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। आरोपी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 438 और 442 के तहत जमानत याचिका दायर की थी।
KERALA HC: मामले की पृष्ठभूमि
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी एक स्कूल में शिक्षक था। उस पर आरोप लगाया गया कि उसने पहली कक्षा में पढ़ने वाले एक नाबालिग छात्र को यौन शोषण का शिकार बनाया। अभियोजन ने बताया कि आरोपी ने छात्र को स्टाफ रूम में बुलाकर अपने शरीर पर लेटने के लिए कहा। जब छात्र ने इसका विरोध किया, तो आरोपी ने उसे पीटा।
CULCUTTA HC: TMC नेता कुंतल घोष को जमानत 2024!
BOMBAY HC: लेस्बियन जोड़े को दी जमानत, आरोप यौन शोषण से मुक्त
भय के कारण, छात्र ने अंततः आरोपी के आदेश का पालन किया। अभियोजन पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने न केवल यौन शोषण किया बल्कि पीड़ित बच्चे के साथ क्रूर व्यवहार भी किया।
इन आरोपों के आधार पर आरोपी पर POCSO अधिनियम की धारा 9(f), 9(m), और 10 के साथ-साथ किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (JJ अधिनियम) की धारा 23 के तहत मामला दर्ज किया गया।
KERALA HC: अदालत में याचिका और सुनवाई
विशेष न्यायालय ने पहले आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत होने का उल्लेख किया और आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसमें विशेष न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि POCSO अधिनियम के तहत यौन शोषण की परिभाषा व्यापक है। न्यायमूर्ति बदरुद्दीन ने कहा, “यौन शोषण को तीन भागों में विभाजित करते हुए, विधायिका ने स्पष्ट किया है कि यौन इरादे से किया गया कोई भी कृत्य, जिसमें शारीरिक संपर्क शामिल हो लेकिन प्रवेश न हो, भी यौन शोषण की श्रेणी में आता है।”
अदालत ने आगे कहा कि विशेष न्यायालय आरोपी की “दोषपूर्ण मानसिक स्थिति” को मानने के लिए बाध्य है। POCSO अधिनियम की धारा 30 के अनुसार, यदि किसी अभियुक्त पर यह आरोप हो कि उसने किसी अपराध को दोषपूर्ण मानसिक स्थिति के साथ अंजाम दिया है, तो यह मानने की जिम्मेदारी विशेष न्यायालय पर होती है। हालांकि, आरोपी को यह साबित करने का अधिकार होता है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था।
KERALA HC: विशेष न्यायालय के आदेश का समर्थन
हाईकोर्ट ने विशेष न्यायालय के आदेश को सही ठहराते हुए कहा, “रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि आरोपी के कृत्य से POCSO अधिनियम की धारा 9(f), 9(m) और 10 के तहत अपराध बनता है। आरोपी ने पीड़ित बच्चे को अपने शरीर पर लेटने के लिए बाध्य किया, जो शारीरिक संपर्क को दर्शाता है। ऐसे में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने का आधार है।”
अदालत ने आरोपी की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए कहा कि विशेष न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने आरोपी को मुकदमे का सामना करने का निर्देश दिया।
इस फैसले में हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम के तहत बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में अदालतें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हुए कानून के दायरे में कठोर निर्णय लेने को बाध्य हैं।
अजित प्रसाद एदाचरी बनाम केरल राज्य
तटस्थ उद्धरण: [2024:KER:85980]
प्रतिनिधित्व:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता प्रजीत रत्नाकरण, अब्दुल रऊफ पल्लिपथ, राजेश वी. नायर, और ई. मोहम्मद शफी।
- उत्तरदाता: लोक अभियोजक रंजीत जॉर्ज।
इस मामले में हाईकोर्ट का यह निर्णय बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और यौन अपराधों के प्रति सख्त रवैये की दिशा में एक मजबूत संदेश है।