KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यह तय करना कि कोई रिट याचिका जनहित याचिका (PIL) है या नहीं, पूरी तरह से पीठ का अधिकार है, न कि रजिस्ट्री का। अदालत ने रजिस्ट्री द्वारा उठाई गई लोकस स्टैंडी (याचिका दायर करने का अधिकार) को लेकर आपत्ति को खारिज करते हुए इस मामले में स्पष्टता दी।
यह फैसला न्यायपालिका में प्रक्रियात्मक अनुशासन और याचिकाकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
KERALA HC: मामले का विवरण
मामला अब्दुल मजीद एम नामक याचिकाकर्ता से जुड़ा है, जो केरल के कासरगोड जिले की मंगलपडी ग्राम पंचायत के पचम्बलम वार्ड के निर्वाचित सदस्य हैं। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने पंचायत की प्रशासनिक खामियों और पंचायत के विभाजन की आवश्यकता पर जोर दिया।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि बढ़ती जनसंख्या के कारण पंचायत को दो भागों में विभाजित करना आवश्यक हो गया है, ताकि जनता को सुगम प्रशासनिक सेवाएं प्रदान की जा सकें।
DELHI HC: कोविड राहत विधवा लाभ दिया
IND VS SA: चौथे टी20 में सीरीज जीतने के लिए उतरेगा भारत !
रजिस्ट्री ने इस याचिका पर आपत्ति जताते हुए इसे पंजीकृत करने से इनकार कर दिया। रजिस्ट्री का कहना था कि याचिकाकर्ता इस मामले में लोकस स्टैंडी नहीं रखते। इसके चलते मामला बिना नंबर वाली याचिका के रूप में खंडपीठ के सामने प्रस्तुत किया गया।
KERALA HC: कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस. मनु की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा,
“यदि याचिकाकर्ता का यह कहना है कि याचिका व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के लिए दायर की गई है और यह जनहित याचिका नहीं है, तो इसे एकलपीठ के समक्ष रोस्टर के अनुसार सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह तय करना कि याचिका जनहित याचिका है या व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित, केवल पीठ का अधिकार है।
खंडपीठ ने आगे कहा कि यदि याचिका व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के लिए उपयुक्त नहीं पाई जाती है, तो याचिकाकर्ता इसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए दावा नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि न्यायालय प्रक्रिया में किसी भी पक्ष के अधिकारों को बाधित करने के बजाय, एक निष्पक्ष और तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाए।
KERALA HC: याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट आर. अनस मोहम्मद शम्नाद ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि मंगलपडी ग्राम पंचायत 36.3 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है और इसकी आबादी 59,013 है। यह पंचायत केरल में सबसे अधिक घनी आबादी वाली पंचायतों में से एक है, जहां जनसंख्या घनत्व 1,625.7 प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य की औसत घनत्व से दोगुना है।
याचिका में पंचायत राज अधिनियम, 1994 का हवाला देते हुए कहा गया कि पंचायत में वार्डों की संख्या जनसंख्या के आधार पर बढ़ाई जानी चाहिए। अधिनियम के अनुसार, यदि पंचायत की जनसंख्या 15,000 से कम है, तो उसमें कम से कम 13 वार्ड होने चाहिए। 15,000 से अधिक जनसंख्या के लिए प्रत्येक 2,500 व्यक्तियों पर एक अतिरिक्त वार्ड होना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने पंचायत में लंबित फाइलों और निर्णय प्रक्रिया में हो रही देरी का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा,
“लोगों को अपनी प्रशासनिक जरूरतें पूरी करने के लिए 6 से 11 किलोमीटर तक यात्रा करनी पड़ती है, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है।”
याचिका में कहा गया कि पंचायत के प्रशासनिक ढांचे में सुधार के बिना, वहां की जनता को सुचारु सेवाएं नहीं मिल सकतीं।
KERALA HC: कोर्ट का आदेश
खंडपीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि याचिका को पंजीकृत किया जाए और इसे सुनवाई के लिए उचित पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। इसके बाद, यह मामला 5 नवंबर 2024 को एकलपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।
एकलपीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और निर्देश दिया कि सेवा पूर्ण होने के बाद मामले को पुनः सूचीबद्ध किया जाए।
इस फैसले ने न्यायपालिका में प्रक्रियात्मक अनुशासन पर जोर दिया और स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना न्यायालय की प्राथमिक जिम्मेदारी है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि किसी रिट याचिका को जनहित याचिका मानने या न मानने का निर्णय रजिस्ट्री नहीं कर सकती, क्योंकि यह अधिकार केवल पीठ के पास है।
KERALA HC: मामला
अब्दुल मजीद एम बनाम केरल राज्य एवं अन्य