KERALA HIGH COURT: केवल ठोस और अटूट पक्षपात के आरोपों पर ही केस ट्रांसफर किया जाए

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By headlineslivenews.com

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KERALA HIGH COURT: केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि न्यायिक अधिकारी पर लगाए गए पक्षपात के आरोप यदि ठोस और अटूट नहीं हैं, तो मात्र शंकाओं और धारणाओं के आधार पर मामलों को एक अदालत से दूसरी अदालत में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

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हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई तीसरी ट्रांसफर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने थलास्सेरी फैमिली कोर्ट से वडकारा फैमिली कोर्ट में कई मामलों के स्थानांतरण की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने थलास्सेरी फैमिली कोर्ट के प्रेसीडिंग ऑफिसर पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा था कि अधिकारी प्रतिवादियों के पक्ष में हैं।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता को 15,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई ट्रांसफर याचिका का उद्देश्य केवल “कार्यवाही में देरी करना” और “प्रेसीडिंग ऑफिसर को न्यायिक आदेश जारी करने से रोकना” था। इस प्रकार की ट्रांसफर याचिकाएं न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं और ऐसी याचिकाओं के माध्यम से न्यायिक अधिकारी को प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

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KERALA HIGH COURT: न्यायिक अधिकारी पर पक्षपात का आरोप

जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि न्यायिक अधिकारी पर पक्षपात का आरोप गंभीर विषय है, और बिना किसी ठोस आधार के ऐसे आरोप लगाना अनुचित है। न्यायिक अधिकारियों को निष्पक्षता से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए और उन्हें पक्षपात के आरोपों से भयभीत नहीं होना चाहिए।

अदालत ने कहा, “एक न्यायिक अधिकारी को किसी भी पक्ष की सुविधा के अनुसार प्रभावित नहीं किया जा सकता। जब तक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ पक्षपात के आरोप ठोस और अटूट नहीं होते, तब तक केवल शंकाओं के आधार पर मामले ट्रांसफर नहीं किए जा सकते।”

इस मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि थलास्सेरी फैमिली कोर्ट के प्रेसीडिंग ऑफिसर, जो उनके मामलों की सुनवाई कर रहे थे, पक्षपातपूर्ण ढंग से प्रतिवादियों के पक्ष में कार्य कर रहे थे। याचिकाकर्ता का आरोप था कि अधिकारी प्रतिवादी की याचिकाएं उसकी जानकारी के बिना ही स्वीकार कर रहे थे, जबकि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को “जाली” कहकर खारिज किया गया।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि उनके वकील ने इस कथित पक्षपातपूर्णता की शिकायत केरल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष दर्ज की थी। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने सभी मामलों को किसी अन्य फैमिली कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की थी।

KERALA HIGH COURT: आरोपों की समीक्षा और कोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर तीनों ट्रांसफर याचिकाओं का अवलोकन किया और पाया कि सभी याचिकाओं में एक जैसी बातें कही गई थीं, जो मात्र शंकाओं पर आधारित थीं और जिनमें ठोस साक्ष्य का अभाव था। अदालत ने कहा, “वर्तमान ट्रांसफर याचिका में कुछ अस्पष्ट आरोपों के अलावा, कोई ठोस आधार नहीं है जो मामले के स्थानांतरण को उचित ठहराए। केवल पक्षपात के आरोप लगाकर न्यायिक प्रणाली की नींव को कमजोर किया जा सकता है और अधिकारी की विश्वसनीयता को कम किया जा सकता है।”

अदालत ने यह भी कहा कि न्यायिक अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी क्षमता के अनुसार न्याय करें। केस की सुनवाई के दौरान अधिकारी को परिस्थितियों के अनुसार कई आदेश जारी करने होते हैं, जो किसी पक्ष के लिए प्रतिकूल भी हो सकते हैं। परंतु प्रतिकूल आदेश अपने आप में अधिकारी की निष्ठा पर संदेह करने का कारण नहीं हो सकते।

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हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण मामले कुमाऊँ मंडल विकास निगम लिमिटेड बनाम गिरजा शंकर पंत (2001) का उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था कि “महज सामान्य बयान पक्षपात का संकेत देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। न्यायिक अधिकारी पर पक्षपात का आरोप लगाने के लिए रिकॉर्ड पर ठोस सबूत होने चाहिए, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि न्याय में कोई चूक हुई है।”

KERALA HIGH COURT: न्यायिक अधिकारी की निष्पक्षता की रक्षा का महत्व

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता ने दो अलग-अलग प्रेसीडिंग अधिकारियों के खिलाफ एक जैसे आरोप लगाए थे, जो उनकी साख को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास प्रतीत होता है। ऐसे आरोप न्यायिक अधिकारी की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक हो सकते हैं। अदालत ने कहा, “न्यायिक अधिकारी के खिलाफ निराधार आरोपों का सख्ती से निपटारा होना चाहिए। ऐसी निंदा किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है।”

अदालत ने अंततः ट्रांसफर याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसे आधारहीन आरोप न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करते हैं और इसका उद्देश्य न्यायिक अधिकारी को भयभीत करना होता है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को इस दुरुपयोग के लिए 15,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा।

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मामला शीर्षक: एन बनाम ए एवं अन्य
तटस्थ संदर्भ: 2024:KER:80260
प्रतिनिधित्व:
याचिकाकर्ता: अधिवक्ता सुरमी शकील और शैजन जोसेफ
प्रतिवादी: अधिवक्ता आसफ अली टी. और लालीज़ा टी.वाई.; लोक अभियोजक सी.एन. प्रभाकरण


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