MADHYA PRADESH HC: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में वसूली आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें वेतन निर्धारण में गलती के कारण एक सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) को गलती से अधिक राशि का भुगतान किया गया था। इस आदेश के तहत राज्य सरकार द्वारा उस सेवानिवृत्त एएनएम से लगभग ₹5.8 लाख की वसूली की जानी थी।
कोर्ट ने इस वसूली के आदेश को एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वेतन निर्धारण में कोई गलत प्रस्तुतीकरण या गलती उनकी ओर से नहीं थी और यह वसूली कानून के विपरीत थी।
न्यायमूर्ति सोबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया कि विवादित वसूली आदेश अवैध है और उसे रद्द किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रतिवादियों को वसूली की गई राशि को 6 प्रतिशत ब्याज सहित, वसूली की तारीख से तीन महीने के भीतर वापस किया जाए।
MADHYA PRADESH HC: कोर्ट का निर्णय और आदेश की पृष्ठभूमि
MADRAS HC: तंबाकू-मुक्त शिक्षा संस्थान दिशानिर्देश लागू करने का आदेश
Samsung One UI 7: एआई नोटिफिकेशन समरी का नया फीचर !
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एल.सी. पटने ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने न तो वेतन निर्धारण में किसी प्रकार का धोखाधड़ी किया है और न ही कोई गलती की है, बल्कि यह गलती सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई थी। गलत वेतन निर्धारण के चलते उन्हें एक उच्च वेतनमान का लाभ दिया गया, जो उनकी गलती नहीं थी।
राज्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रणय जोशी ने तर्क दिया कि चूंकि गलत वेतन निर्धारण के कारण राज्य सरकार को नुकसान हुआ है, इसलिए राज्य को अधिकार है कि वह उस अतिरिक्त राशि की वसूली कर सके। लेकिन न्यायमूर्ति अभ्यंकर ने पिछले मामलों और कानूनी व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए यह कहा कि यदि अतिरिक्त भुगतान गलती से किया गया है और कर्मचारी की ओर से कोई गलत प्रस्तुतीकरण या गलती नहीं है, तो इस प्रकार की वसूली कानूनी रूप से उचित नहीं मानी जा सकती।
MADHYA PRADESH HC: सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का प्रभाव
इस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने “श्याम बाबू वर्मा बनाम भारत संघ” (1994) के मामले में निर्णय दिया था कि यदि कोई कर्मचारी उच्च वेतनमान के योग्य नहीं है, तो भी गलती से भुगतान की गई राशि को वापस नहीं लिया जाना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चूंकि यह भुगतान गलती से किया गया था और कर्मचारी की ओर से कोई गलत प्रस्तुतीकरण नहीं था, इसलिए इसे वापस नहीं लिया जा सकता।
इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट के “साहिब राम बनाम हरियाणा राज्य” (1995) के मामले में यह कहा गया कि यदि किसी कर्मचारी को गलती से अधिक वेतन का भुगतान किया गया है और इस गलती का कारण कर्मचारी नहीं है, बल्कि सरकारी अधिकारियों की गलती है, तो उस अतिरिक्त राशि की वसूली नहीं की जा सकती। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अतिरिक्त राशि का भुगतान गलती से हुआ था और कर्मचारी की ओर से कोई धोखाधड़ी नहीं थी।
एक अन्य मामले “सैयद अब्दुल कादिर बनाम बिहार राज्य” (2009) में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से यही विचार प्रस्तुत किया। इस फैसले में कहा गया कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुका है और उसे गलती से अतिरिक्त भुगतान किया गया था, तो वह राशि उससे वापस नहीं ली जा सकती। इस मामले में भी यह बात स्पष्ट की गई थी कि यदि कर्मचारी की ओर से कोई गलती नहीं है, तो उसे इस प्रकार की वित्तीय परेशानी में डालना अनुचित होगा।
MADHYA PRADESH HC: हाईकोर्ट का फैसला और इसके प्रभाव
इन सभी फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने वर्तमान मामले में आदेश दिया कि विवादित वसूली आदेश रद्द किया जाए। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रतिवादियों को वसूली की गई राशि को 6 प्रतिशत ब्याज सहित, वसूली की तारीख से तीन महीने के भीतर वापस करना होगा। इस प्रकार का निर्णय कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है क्योंकि इससे उन कर्मचारियों को राहत मिलेगी, जिनसे गलती से किए गए अतिरिक्त भुगतान की वसूली का आदेश दिया गया था।
MADHYA PRADESH HC: सरकार के लिए दिशा-निर्देश
इस मामले में हाईकोर्ट का निर्णय केवल एक कर्मचारी के लिए नहीं है, बल्कि यह अन्य ऐसे मामलों में भी एक मिसाल बनेगा, जहां सरकारी विभागों द्वारा गलती से अधिक भुगतान किया गया हो और बाद में उसकी वसूली का आदेश दिया गया हो। इस निर्णय के आधार पर, यह स्पष्ट है कि सरकार को ऐसी परिस्थितियों में सावधानीपूर्वक जांच करनी होगी और सुनिश्चित करना होगा कि वसूली केवल उन्हीं मामलों में हो, जहाँ कर्मचारी की ओर से कोई गलत प्रस्तुतीकरण या धोखाधड़ी की स्थिति हो। अन्यथा, गलत वेतन निर्धारण के कारण की गई अतिरिक्त राशि की वसूली नहीं की जानी चाहिए।
यह निर्णय कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी गलतियों का बोझ कर्मचारियों पर न डाला जाए।
मामला शीर्षक: रूपलेखा सिरसाथ बनाम सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग एवं अन्य [2024:MPHC-IND:29984]