madhya pradesh high court: एसडीओ का बिना कारण वाला आदेश रद्द किया

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By headlineslivenews.com

madhya pradesh high court: एसडीओ का बिना कारण वाला आदेश रद्द किया

madhya pradesh high court: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया जिसमें उन्होंने एसडीओ (राजस्व)

MADHYA PRADESH HC

madhya pradesh high court: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया जिसमें उन्होंने एसडीओ (राजस्व) द्वारा बिना उचित कारण दिए गए एक आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि “कारण आदेश की रीढ़ होते हैं,” और केवल उन्हीं के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि किसी अधिकारी ने किसी विशेष निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए क्या आधार लिया है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी, जिसमें एसडीओ के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

Madhya pradesh high court

madhya pradesh high court: मामले का विवरण

यह मामला भूमि रिकॉर्ड में संशोधन से संबंधित था। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी अधिकारियों से भूमि रिकॉर्ड में संशोधन की मांग की थी ताकि उस भूमि के क्षेत्रफल को कम किया जा सके, जो पहले ही बेची जा चुकी है। याचिकाकर्ता का दावा था कि उनके द्वारा बेची गई जमीन के बाद शेष भूमि का क्षेत्रफल सही तरीके से दर्ज नहीं किया गया है, और इसे संशोधित करने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने अधिकारियों से आवेदन किया था, जिसे एसडीओ ने बिना कारण बताए खारिज कर दिया था।

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याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में यह भी आरोप लगाया कि तहसीलदार की रिपोर्ट पर उन्हें कोई आपत्ति दर्ज करने का अवसर नहीं दिया गया था, और इसी कारण उन्होंने एसडीओ के आदेश को चुनौती दी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अपील की वैधानिक प्रक्रिया का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्हें तहसीलदार की रिपोर्ट के खिलाफ अपनी आपत्तियाँ दर्ज करने का मौका ही नहीं दिया गया था। इस आधार पर उन्होंने अपील प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे रिट याचिका दायर की थी।

madhya pradesh high court: हाईकोर्ट की टिप्पणी

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए एसडीओ के आदेश को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि “कारण आदेश की रीढ़ होते हैं, और केवल उन्हीं से यह स्पष्ट होता है कि किसी अधिकारी ने किसी विशेष निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए क्या विचार किया।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल यह कह देना कि एसडीओ ने तहसीलदार की रिपोर्ट से सहमति जताई है, एक वैधानिक आदेश नहीं माना जा सकता। ऐसा आदेश जिसमें कोई ठोस कारण नहीं दिए गए हों, न तो न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग माना जा सकता है और न ही इसे एक कानूनी आदेश का दर्जा दिया जा सकता है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज बनाम M/s इंदौर कॉम्पोजिट प्राइवेट लिमिटेड का हवाला देते हुए कहा कि “किसी भी आदेश में तब तक न्यायिक विचारधारा का प्रयोग नहीं माना जा सकता जब तक उस आदेश में विषय के तथ्यात्मक और कानूनी विवादों पर चर्चा नहीं की गई हो, तथ्यों और विवादों की सराहना नहीं की गई हो, और बिना किसी तर्क और स्पष्ट निष्कर्ष के, ऐसे आदेश को टिकाना मुश्किल होता है।”

हाईकोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता को तहसीलदार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर अपनी आपत्तियाँ दर्ज करने का अवसर न मिलने के कारण, उसे यह समझने में कठिनाई हो रही थी कि आखिर किस कारण से उसका आवेदन खारिज किया गया। ऐसे में वैकल्पिक उपाय जैसे अपील का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि याचिकाकर्ता को पहले से ही न्यायिक प्रक्रिया का सही तरीके से पालन करने का अवसर नहीं दिया गया था। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए एसडीओ के आदेश को रद्द कर दिया।

madhya pradesh high court: निष्कर्ष

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि किसी भी प्रशासनिक या न्यायिक आदेश में कारणों का होना अनिवार्य है। आदेश बिना कारण दिए जाने से न केवल उसकी वैधता पर सवाल उठते हैं, बल्कि इससे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का भी हनन होता है, क्योंकि बिना कारण के आदेश व्यक्ति को न्याय पाने के लिए अपील करने या उसे चुनौती देने का आधार नहीं देता। कोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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यह निर्णय उन अधिकारियों और न्यायालयों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन है जो बिना कारणों के आदेश जारी करते हैं। किसी भी आदेश में कारणों का होना यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहे, और व्यक्ति को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उचित अवसर मिले।

madhya pradesh high court: मामले का शीर्षक

जयरामदास कुकरजा बनाम मध्य प्रदेश राज्य (तटस्थ उद्धरण: 2024:MPHC-JBP:51262)

madhya pradesh high court: प्रतिनिधित्व

इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा और प्रतिवादी की ओर से सरकारी अधिवक्ता मोहन सुसरकर और अधिवक्ता अलभ्य बाजपेयी पेश हुए।

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madhya pradesh high court: उच्च न्यायालय का निर्णय

अंत में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एसडीओ के बिना कारण दिए गए आदेश को रद्द कर दिया और अधिकारियों को भूमि रिकॉर्ड में उचित संशोधन करने का निर्देश दिया ताकि पहले से बेची गई जमीन के क्षेत्रफल को ध्यान में रखा जा सके।

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