MADRAS HC: विकलांग व्यक्तियों की दैनिक बाधाओं को समझकर उन्हें दूर करे न्यायालय

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By headlineslivenews.com

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MADRAS HC: मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में संविधानिक अदालतों से विकलांग व्यक्तियों द्वारा रोज़ाना जिन बाधाओं का सामना किया जाता है, उन्हें समझने और अपने फैसलों के माध्यम से इन्हें दूर करने की आवश्यकता जताई है। अदालत ने एक 100% सुनने और बोलने में असमर्थ सहायक अभियंता (याचिकाकर्ता) को तमिल भाषा परीक्षा से छूट देने का आदेश दिया, यह कहते हुए कि उनकी विकलांगता को ध्यान में रखते हुए उन्हें उचित सहूलत मिलनी चाहिए।

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इसके साथ ही, अदालत ने तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ता के वेतन वृद्धि और अन्य लाभों को पुनः बहाल करे, जिन्हें तमिल भाषा प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति के कारण रोक दिया गया था।

इस फैसले के साथ ही, न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने विकलांग व्यक्तियों के लिए समाज में व्याप्त बाधाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि विकलांग व्यक्तियों के लिए भौतिक पहुंच से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं वे सामाजिक, सांस्कृतिक, और संस्थागत बाधाएं, जो उनके पूर्ण समावेशन में रुकावट डालती हैं।

अदालत ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों में विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और इन समस्याओं को दूर करने के लिए संवैधानिक अदालतों को सक्रिय रूप से कदम उठाने चाहिए।

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MADRAS HC: मामला

इस मामले में याचिकाकर्ता 100% सुनने और बोलने में असमर्थ थे और तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड में सहायक अभियंता के रूप में काम कर रहे थे। उन्होंने अपनी विकलांगता के कारण तमिल भाषा परीक्षा से छूट की मांग की थी, क्योंकि यह परीक्षा विशेष रूप से उनके लिए कठिन थी, विशेषकर Viva Voce (मौखिक परीक्षा) भाग को पास करना उनके लिए असंभव था।

याचिकाकर्ता ने पहले कई बार अपनी विकलांगता के कारण इस परीक्षा में छूट की गुजारिश की थी, लेकिन इन मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया था।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मामले में ध्यान देते हुए यह माना कि विकलांगता को ध्यान में रखते हुए हर व्यक्ति को उनके अधिकार मिलना चाहिए और समाज में विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर मिलना जरूरी है। इस मुद्दे पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का संदर्भ लिया जिसमें कहा गया था कि विकलांग व्यक्तियों को उचित सहूलत नहीं देना उनके साथ स्पष्ट भेदभाव है।

इस निर्णय ने कोर्ट को यह निर्देश देने के लिए प्रेरित किया कि याचिकाकर्ता को तमिल भाषा परीक्षा से छूट दी जाए और उनकी सेवा की स्थिति में सुधार किया जाए।

MADRAS HC: कोर्ट का दृष्टिकोण

कोर्ट ने कहा कि यह मामला विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और भेदभाव की वास्तविक स्थिति को उजागर करता है। याचिकाकर्ता ने विकलांगता के बावजूद अपनी शिक्षा पूरी की और इंजीनियरिंग कोर्स को भी पूरा किया, जो उनकी दृढ़ता और मेहनत का प्रमाण है। कोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि इस विकलांगता के बावजूद, याचिकाकर्ता समाज में एक सशक्त सदस्य बने रहने के लिए दृढ़ संकल्पित थे।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विकलांग व्यक्तियों को समाज में पूर्ण रूप से समाहित करने के लिए उनके सामने आने वाली बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि एक संविधानिक अदालत का कर्तव्य है कि वह विकलांग व्यक्तियों की समस्याओं को समझे और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करने के प्रयास करें।

यह समाज की जिम्मेदारी है कि विकलांग व्यक्तियों के लिए अनुकूल और न्यायपूर्ण परिस्थितियां बनाई जाएं, ताकि वे भी समाज में समान अवसरों का लाभ उठा सकें।

MADRAS HC: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

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कोर्ट ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले का संदर्भ लिया, जिसमें कहा गया था कि अगर विकलांग व्यक्तियों को उचित सहूलत नहीं दी जाती तो यह उनके खिलाफ भेदभाव के समान होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विकलांग व्यक्तियों को उनके विकलांगता के कारण भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मामले में यह स्पष्ट किया कि उनकी विकलांगता को ध्यान में रखते हुए, उन्हें तमिल भाषा परीक्षा से छूट दी जानी चाहिए और उनके वेतन वृद्धि व अन्य लाभों को पुनः बहाल किया जाना चाहिए।

MADRAS HC: अदालत का आदेश और निर्णय

कोर्ट ने इस मामले में अपने निर्णय में कहा, “याचिकाकर्ता की विकलांगता को देखते हुए और उसके द्वारा शिक्षा व कार्यक्षेत्र में जो संघर्ष किया है, उसे ध्यान में रखते हुए, हम आदेश देते हैं कि तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड याचिकाकर्ता को तमिल भाषा परीक्षा से छूट प्रदान करे। साथ ही, बोर्ड को आदेश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के वेतन वृद्धि और लाभों को पुनः बहाल किया जाए, जिन्हें पहले केवल तमिल भाषा प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति के कारण रोक दिया गया था।”

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इस फैसले ने न केवल विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा की बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि संविधानिक अदालतों को समाज में विकलांग व्यक्तियों के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना चाहिए।

मामला शीर्षक: बी. विद्यासागर बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य (न्यूट्रल संदर्भ: 2024: MHC: 3641)

अधिवक्ता:
याचिकाकर्ता: अधिवक्ता डी. मुथुकुमार
प्रतिवादी: विशेष सरकारी अधिवक्ता पी. बलाथंडयुतम; स्थायी काउंसल्स वी. लोगेश और आर. भरनिधरण

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