MADRAS HC: मद्रास उच्च न्यायालय ने अन्ना विश्वविद्यालय की 19 वर्षीय छात्रा के यौन उत्पीड़न के मामले में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है। इसके साथ ही, न्यायालय ने पीड़िता को पुलिस की गंभीर चूक के लिए 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह आदेश पुलिस द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एफआईआर में पीड़िता के विवरण को उजागर करने के चलते दिया गया।
MADRAS HC: मामले का विवरण
घटना 23 दिसंबर को अन्ना विश्वविद्यालय परिसर में हुई थी। आरोपी ज्ञानशेखरन, जो एक सड़क किनारे बिरयानी बेचने वाला है, को पुलिस ने 25 दिसंबर को गिरफ्तार किया। न्यायालय ने मामले की एफआईआर में इस्तेमाल की गई निंदनीय भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसे पीड़िता को दोषी ठहराने जैसा बताया गया। पीठ ने इसे “अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया कि एफआईआर लीक होने से पीड़िता को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
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न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम और वी लक्ष्मीनारायण की खंडपीठ ने कहा कि एफआईआर की सामग्री ने पीड़िता के सम्मान और शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार का हनन किया है। “संविधान महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव नहीं करता। महिलाओं का सम्मान करना समाज और राज्य का कर्तव्य है,” न्यायालय ने कहा।
पीठ ने पुलिस के रवैये की कड़ी आलोचना की और कहा कि एफआईआर की भाषा ने महिलाओं के प्रति समाज की घृणास्पद मानसिकता को उजागर किया है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि महिलाओं की सुरक्षा उन्हें दोषी ठहराए बिना और उनका सम्मान बनाए रखते हुए सुनिश्चित की जानी चाहिए।
MADRAS HC: एसआईटी का गठन
जांच में हुई गंभीर चूकों को देखते हुए, अदालत ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के तीन अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम गठित करने का आदेश दिया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जांच निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए।
न्यायालय ने पुलिस की वेबसाइट पर एफआईआर अपलोड करने में हुई चूक के लिए राज्य सरकार को पीड़िता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। एडवोकेट जनरल (एजी) पीएस रमन ने अदालत को बताया कि यह चूक तकनीकी समस्याओं के कारण हुई, क्योंकि आईपीसी से बीएनएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) में डेटा माइग्रेशन हो रहा था।
हालांकि, न्यायालय ने इस स्पष्टीकरण को अस्वीकार कर दिया और कहा कि पुलिस को ऐसे संवेदनशील मामलों में अधिक सतर्क रहना चाहिए।
अदालत ने पुलिस को पीड़िता और उसके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर कोई भी मीडिया या अन्य व्यक्ति पीड़िता के विवरण को सार्वजनिक करता है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
MADRAS HC: प्रेस कॉन्फ्रेंस पर सवाल
न्यायालय ने चेन्नई के पुलिस आयुक्त द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने और इसमें आरोपी की संलिप्तता पर टिप्पणी करने के मामले पर भी सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि यह जांच अधिकारी के निर्णय को प्रभावित कर सकता है और राज्य सरकार को यह जांचने का निर्देश दिया कि क्या आयुक्त ने किसी नियम का उल्लंघन किया है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि मीडिया की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन मीडिया को अपनी जिम्मेदारियों का भी एहसास होना चाहिए। न्यायालय ने कहा, “मीडिया को संवेदनशील मामलों में संयम बरतना चाहिए, लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगाना उचित नहीं होगा।”
न्यायालय ने इस मामले को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता का महत्वपूर्ण उदाहरण बताया। इसके साथ ही, अदालत ने राज्य और पुलिस को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की हिदायत दी।
इस मामले की अगली सुनवाई में जांच और राज्य सरकार द्वारा लिए गए कदमों की समीक्षा की जाएगी।