SUPREME COURT: कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में निर्वाचन संचालन नियम, 1961 में केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। इन संशोधनों का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक चुनाव रिकॉर्ड के दुरुपयोग को रोकना बताया गया है, लेकिन इसके तहत जनता की चुनाव संबंधी रिकॉर्ड तक पहुंच को सीमित कर दिया गया है।
कांग्रेस का आरोप है कि यह संशोधन पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
SUPREME COURT: संशोधन का विवाद
निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन करके केंद्र ने कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों तक जनता की पहुँच को सीमित कर दिया है। इसमें सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्ट रिकॉर्डिंग, और मतदान केंद्रों पर होने वाली गतिविधियों की वीडियोग्राफी शामिल हैं। इस संशोधन का मकसद इन रिकॉर्ड्स के दुरुपयोग को रोकना बताया गया है।
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कांग्रेस का दावा है कि इस संशोधन से जनता को चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाले अहम दस्तावेजों तक पहुँच से वंचित किया जा रहा है। पार्टी ने इसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
SUPREME COURT: याचिका के मुख्य बिंदु
कांग्रेस की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि:
- लोकतांत्रिक पारदर्शिता का हनन: चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए इन दस्तावेजों तक जनता की पहुँच महत्वपूर्ण है। संशोधन से यह अधिकार छिन गया है।
- जनता से परामर्श का अभाव: इस तरह के संवेदनशील और महत्वपूर्ण संशोधन से पहले जनता या अन्य हितधारकों से कोई परामर्श नहीं किया गया।
- चुनाव आयोग की भूमिका: कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक संवैधानिक संस्था को बिना उचित प्रक्रिया के इस तरह के बदलाव की सिफारिश करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
- न्यायिक आदेश की अनदेखी: यह संशोधन पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस हालिया फैसले के बाद किया गया, जिसमें चुनाव आयोग को एक वकील को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित सीसीटीवी और वीडियोग्राफी रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था।
SUPREME COURT: संशोधन की पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार ने यह संशोधन चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद किया। इसमें कहा गया था कि कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ जैसे मतदान केंद्रों की रिकॉर्डिंग और वेबकास्ट फुटेज के सार्वजनिक उपयोग से चुनाव प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि, विपक्षी पार्टियों और कई सामाजिक संगठनों ने इस कदम की आलोचना की है। उनका कहना है कि यह संशोधन चुनाव प्रक्रिया को गुप्त और अपारदर्शी बनाने की दिशा में एक कदम है।
कांग्रेस ने इसे एक राजनीतिक चाल बताते हुए दावा किया है कि केंद्र सरकार अपने फायदे के लिए चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है। कांग्रेस के वकीलों ने तर्क दिया कि जनता को चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी और निगरानी का अधिकार है, और यह संशोधन इस अधिकार का हनन करता है।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने संशोधन को जायज ठहराते हुए कहा है कि इसका मकसद केवल चुनाव रिकॉर्ड्स के दुरुपयोग को रोकना है और किसी भी राजनीतिक लाभ का उद्देश्य नहीं है।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। अदालत ने इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए सुनवाई के लिए जनवरी 2025 की तारीख तय की है।
निर्वाचन संचालन नियमों में संशोधन के खिलाफ कांग्रेस की याचिका भारतीय लोकतंत्र और चुनावी पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। यह मामला न केवल चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर संवेदनशील है, बल्कि यह यह भी तय करेगा कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के अधिकारों और कर्तव्यों की सीमा क्या होनी चाहिए।
अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाती है और यह निर्णय भविष्य की चुनावी प्रक्रिया को किस प्रकार प्रभावित करेगा।