Transfer of Property Act: Transfer of Property Act के तहत, जब किसी कानूनी प्रावधान का प्रवर्तन किया जाता है, तो इससे कुछ विशेष परिस्थितियों में भार उत्पन्न होता है।
भार उत्पन्न होने का अर्थ है कि किसी व्यक्ति या पक्षकार पर कानूनी दायित्व आ जाता है, जो उसे कुछ कर्तव्यों को निभाने के लिए बाध्य करता है। यह भार पक्षकारों के बीच हुए करार या कानून के तहत निर्धारित दायित्वों के आधार पर उत्पन्न होता है। इस परिप्रेक्ष्य में, हम कुछ प्रमुख धाराओं और मामले देखेंगे, जो कानून के प्रवर्तन से उत्पन्न भार से संबंधित हैं।
Transfer of Property Act: धारा 55 (4)(ख) का प्रभाव
Transfer of Property Act की धारा 55 (4)(ख) के तहत यदि विक्रेता द्वारा संपत्ति के विक्रय के समय विक्रय मूल्य का भुगतान नहीं किया गया हो, तो इससे संबंधित भार उत्पन्न होता है। यदि विक्रेता ने खरीदार को संपत्ति का कब्जा देने के बावजूद भुगतान प्राप्त नहीं किया है, तो यह भार विक्रेता पर उत्पन्न होता है। ऐसे में विक्रेता को संपत्ति की वसूली या भुगतान प्राप्त करने का अधिकार होता है, जो एक कानूनी दायित्व है।
Consideration for Lease: संपत्ति अंतरण अधिनियम में लीज़ के प्रावधान 2025 !
Supreme Court Verdict: सरकार को जनहित में दी गई छूट वापस लेने का अधिकार 2025 !
धारा 55 (6)(ख) के तहत अग्रिम भुगतान का भार
धारा 55 (6)(ख) के अनुसार, यदि किसी खरीदार ने संपत्ति की खरीदारी के लिए विक्रेता को अग्रिम भुगतान किया है, तो उस भुगतान पर भार उत्पन्न होता है। यदि विक्रेता किसी कारणवश संपत्ति का हस्तांतरण नहीं करता है, तो इस स्थिति में अग्रिम भुगतान के रूप में दी गई धनराशि पर भार बनता है।
पी० पी० रामकृष्णन बनाम पी० प्रभाकरन का उदाहरण
पी० पी० रामकृष्णन बनाम पी० प्रभाकरन के प्रकरण में यह पाया गया कि वादी ने प्रतिवादी को संपत्ति का विक्रय करने के लिए करार किया था और वादी ने प्रतिवादी को 1,00,000/- रुपये अग्रिम रूप में दिए थे। हालांकि, प्रतिवादी ने करार के अनुसार संपत्ति का हस्तांतरण नहीं किया। यहां यह सिद्ध हुआ कि वादी द्वारा दिया गया अग्रिम भुगतान संपत्ति पर भार था और वादी को यह धनराशि प्राप्त करने का अधिकार था।
धारा 73 के तहत बंधकदार को भार का सृजन
धारा 73 के अनुसार, यदि किसी संपत्ति पर बंधक का निर्माण किया गया है, तो संबंधित बंधकदार को संपत्ति पर भार का सामना करना पड़ता है। इस प्रावधान के अंतर्गत बंधकदार को संपत्ति के लिए भुगतान करना होता है, जिसे कानूनी दायित्व माना जाता है।
धारा 39 का प्रभाव
धारा 39 के अंतर्गत यदि किसी अचल संपत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति को भरण-पोषण, अभिवृद्धि, या विवाह के लिए उपबंध किया गया है, तो उस संपत्ति पर भार उत्पन्न होता है। यह भार उस संपत्ति के स्वामी पर कानूनी दायित्व डालता है और संबंधित पक्षकारों को अपनी सहमति के आधार पर इन दायित्वों को निभाना पड़ता है।
धारा 51 के अंतर्गत दोषपूर्ण स्वामित्व का भार
धारा 51 के तहत यदि कोई व्यक्ति अपने स्वामित्व में दोषपूर्ण संपत्ति रखता है और उस पर कोई सुधार या अभिवृद्धि करता है, तो उस सुधार का भार बंधकदार पर आता है। यदि संपत्ति के स्वामित्व में कोई समस्या है और उस पर सुधार की आवश्यकता है, तो बंधकदार के पास उस सुधार का भार होता है।
धारा 82 और भार
धारा 82 के अंतर्गत भी कुछ विशेष मामलों में भार का सृजन होता है, विशेषकर अभिदाय के मामलों में। यदि कोई व्यक्ति अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करता है, तो इस स्थिति में भार उत्पन्न होता है, क्योंकि विधिक दायित्व का पालन नहीं हो पाया था।
विधि के प्रवर्तन से उत्पन्न भार
सामान्यतः भार का सृजन पक्षकारों के बीच किए गए करार के फलस्वरूप होता है, लेकिन कुछ मामलों में विधि भी दायित्वों का निर्माण करती है। जब किसी पक्षकार द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया जाता, तो भार का सृजन होता है। उदाहरण के लिए, यदि विक्रय संव्यवहार पूर्ण होने के बावजूद संपत्ति का कब्जा प्रदान करने में विफलता होती है, तो यह भार उत्पन्न करता है और अग्रिम भुगतान लौटाने का दायित्व विक्रेता पर आता है। इसी प्रकार, क्रेता का विक्रेता को संपत्ति का मूल्य अदा करने का दायित्व भी भार उत्पन्न करता है।
भार का सृजन और सहमति
कुछ मामलों में यह भी माना जाता है कि पक्षकारों ने सहमति दी है, जिसके तहत संपत्ति के किसी हिस्से को विनिर्दिष्ट दावे की सन्तुष्टि के लिए उत्तरदायी बनाया जा सकता है। जब किसी पक्षकार ने स्पष्ट करार नहीं किया हो, तो कभी-कभी न्याय दिलाने के लिए कोर्ट द्वारा भी भार का सृजन किया जाता है, ताकि पीड़ित पक्षकार को न्याय मिल सके।
विधि के प्रवर्तन द्वारा सृजित भार की विशेषताएँ
विधि द्वारा सृजित भार की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- यह पक्षकारों की इच्छा पर निर्भर नहीं करता – इसका सृजन केवल कानूनी प्रावधानों और अदालतों के आदेश द्वारा होता है।
- रजिस्ट्री की आवश्यकता नहीं होती – विधि द्वारा सृजित भार के लिए रजिस्ट्री की आवश्यकता नहीं होती, जबकि पक्षकारों के बीच करार से उत्पन्न भार के लिए रजिस्ट्री की आवश्यकता हो सकती है।
भार और बंधक में भेद
भार और बंधक दोनों में स्पष्ट भेद है। बंधक में एक विशिष्ट अचल संपत्ति में हित का अंतरण होता है, जबकि भार में कोई हित का अंतरण नहीं होता। बंधक केवल पक्षकारों के कृत्य से सृजित होता है, जबकि भार पक्षकारों के कृत्य के साथ-साथ विधि के प्रवर्तन से भी उत्पन्न हो सकता है।
भार और बंधक के बीच भेद
- बन्धक: बंधक में एक विशिष्ट अचल संपत्ति के हित का अंतरण होता है, जबकि भार में ऐसा कोई अंतरण नहीं होता। बंधक ऋण के भुगतान के लिए संपत्ति को प्रतिभूति बनाता है।
- प्रवर्तन: बंधक का प्रवर्तन केवल नोटिस द्वारा होता है, जबकि भार का प्रवर्तन केवल उन लोगों पर होता है जिन्होंने भार की सूचना प्राप्त की हो।
- औपचारिकताएँ: बंधक के लिए रजिस्ट्री और अन्य औपचारिकताएँ आवश्यक होती हैं, जबकि भार के सृजन के लिए रजिस्ट्री की आवश्यकता नहीं होती है।
- अवधि: बंधक एक निश्चित अवधि के लिए होता है, जबकि भार स्थायी हो सकता है या किसी निश्चित अवधि के लिए हो सकता है।
कानूनी दृष्टि से संपत्ति पर दायित्व का प्रभाव
Transfer of Property Act के तहत उत्पन्न भार और बंधक के बीच स्पष्ट भेद है। यह दोनों एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन दोनों ही कानूनी दृष्टि से संपत्ति पर किसी न किसी प्रकार के दायित्व का निर्धारण करते हैं। जब कोई पक्षकार अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करता है, तो यह भार उत्पन्न करता है, जो कानूनी दायित्वों का पालन करने के लिए उसे बाध्य करता है।
बेदखल पति के बाद पत्नी का ससुराली अधिकार || domestic violence || headlines live news kanoon ki baat