ORISSA HIGH COURT: उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी अभियुक्त को छह साल से अधिक समय तक अंडरट्रायल के रूप में हिरासत में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।
अदालत ने भोले-भाले निवेशकों से करोड़ों रुपये ठगने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
ORISSA HIGH COURT: अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार सर्वोपरि
न्यायमूर्ति गौरीशंकर सतपथी की पीठ ने कहा कि,
“किसी भी कानून में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है कि कितनी अवधि तक हिरासत में रखना त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होगा। लेकिन, किसी भी मानक से, लगभग 6.5 साल की हिरासत भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।”
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अवैध धन संचलन योजना में करोड़ों की ठगी का मामला
याचिकाकर्ता पर अन्य आरोपियों के साथ मिलकर अवैध धन संचलन योजनाओं के माध्यम से भोले-भाले निवेशकों से करोड़ों रुपये ठगने का आरोप था।
- आरोप: भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी, 420, 409 और पुरस्कार चिट एवं धन संचलन योजना (प्रतिबंध) अधिनियम की धारा 4, 5 और 6 के तहत अपराध।
- ठगी की राशि: लगभग ₹311.39 करोड़ (485 शाखाओं के जरिए)
- गिरफ्तारी: 25 अगस्त 2018
- जमानत याचिका दायर: 6.5 साल की हिरासत के बाद
अदालत की टिप्पणियां और आदेश
1. लंबी हिरासत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन
अदालत ने कहा कि त्वरित सुनवाई का अधिकार केवल सैद्धांतिक नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे व्यावहारिक रूप से लागू किया जाना चाहिए। किसी अभियुक्त को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखना अनुचित है।
2. ट्रायल की धीमी गति
अदालत ने पाया कि अभी तक केवल 11 गवाहों की जांच हुई है, जबकि 166 गवाहों की जांच बाकी है। इससे मुकदमे के पूरा होने में और अधिक समय लगने की संभावना है।
3. CBI की आपत्ति खारिज
CBI के विशेष लोक अभियोजक ने कहा कि अभियुक्त ने भारी धनराशि की हेराफेरी की है, इसलिए उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन, अदालत ने कहा कि अपराध की गंभीरता के बावजूद, त्वरित सुनवाई का अधिकार हर अभियुक्त को मिलता है।
4. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ
अदालत ने “तपस कुमार पालित बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2025 लाइव लॉ (SC) 211)” केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि किसी अभियुक्त को 6-7 साल तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहना पड़े, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होगा।
5. CBI की लापरवाही
अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की जाँच में देरी हुई और CBI खुद अभियुक्त को लंबे समय तक जेल में रखने की जिम्मेदार है।
6. जमानत आदेश
याचिकाकर्ता को ₹5,00,000 के जमानत बांड और दो सॉल्वेंट जमानतदारों के साथ जमानत दी गई। अदालत ने कहा कि यदि अभियुक्त शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसकी जमानत रद्द की जा सकती है।
न्याय प्रणाली में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
उड़ीसा हाईकोर्ट का यह फैसला अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करने वाला है। यह न्यायिक प्रक्रिया की गति बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जिससे अभियुक्तों को लंबे समय तक अंडरट्रायल हिरासत में रखने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
केस टाइटल: दिलीप रंजन नाथ बनाम भारत गणराज्य (CBI)
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