SC ने SGPC की याचिका खारिज सुप्रीम कोर्ट ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें हरियाणा सरकार पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल/फर्लो देने में हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (टेम्पररी रिलीज़) एक्ट, 2022 की धारा 11 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।
SC ने SGPC की याचिका खारिज SC ने SGPC की याचिका खारिज सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि यदि गुरमीत राम रहीम द्वारा अस्थायी रिहाई के लिए कोई आवेदन दायर किया जाता है तो उस पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिना किसी पक्षपात, मनमानी या भेदभाव के 2022 अधिनियम के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
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जस्टिस गवई ने अपने बयान में कहा:
“याचिका 2023 में दी गई फर्लो से संबंधित है और हम अब 2025 में हैं। इसके अलावा, सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने व्यक्तिगत मामले के संबंध में जनहित याचिका की स्वीकार्यता पर भी सवाल उठाया। इस दृष्टिकोण से हम वर्तमान याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में पहले ही स्पष्ट किया था कि यदि प्रतिवादी नंबर 9 (गुरमीत राम रहीम) द्वारा अस्थायी रिहाई के लिए कोई आवेदन दिया जाता है, तो उस पर 2022 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार विचार किया जाएगा।
पैरोल विशेषाधिकार राम रहीम को हर साल अधिकतम अवधि क्यों?
SGPC के वकील ने दलील दी कि पैरोल कोई अधिकार नहीं है, बल्कि एक विशेषाधिकार है, जिसे केवल बाध्यकारी कारणों से ही प्रदान किया जाना चाहिए। लेकिन गुरमीत राम रहीम को 2022-2024 के बीच हर वर्ष 2022 अधिनियम के तहत अधिकतम 91 दिनों (70 पैरोल और 21 फर्लो) की अवधि के लिए पैरोल और फर्लो दी गई।
2022 अधिनियम की धारा 11 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि यह प्रावधान तब तक पैरोल/फर्लो देने से रोकता है जब तक कि दोषी व्यक्ति अपने खिलाफ लंबित सभी मामलों में जमानत पर न हो। हाईकोर्ट ने गुरमीत राम रहीम की जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि जनवरी 2025 में भी गुरमीत राम रहीम को अस्थायी रिहाई दी गई थी, जो कि न्यायालय के आदेशों के खिलाफ है। उन्होंने दावा किया कि संबंधित वारंट में अस्थायी रिहाई देने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया।
गुरमीत राम रहीम की ओर से पक्ष
वहीं, सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी, जो गुरमीत राम रहीम की ओर से पेश हुए, ने याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाते हुए SGPC की मंशा पर भी संदेह जताया। उन्होंने तर्क दिया:
“सैकड़ों कैदियों को पैरोल और फर्लो दी जाती है, लेकिन यह जनहित याचिका सिर्फ गुरमीत राम रहीम के खिलाफ ही दायर की गई है। इसका कारण याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 9 (गुरमीत राम रहीम) के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता हो सकती है।”
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
इस तर्क को सुनकर जस्टिस मिश्रा ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा:
“आप केवल एक व्यक्ति के खिलाफ हैं। आप कोई सामान्य या व्यापक राहत नहीं मांग रहे हैं, बल्कि आपकी पूरी याचिका सिर्फ प्रतिवादी नंबर 9 (गुरमीत राम रहीम) तक सीमित है। इसमें जनहित कहां है? यह पूरी तरह से एक व्यक्तिगत टारगेटिंग है।”
इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने अन्य मामलों में भी रिकॉर्ड मांगे हैं और राम रहीम के खिलाफ अपवित्रता के चार मामले भी लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने SGPC की याचिका को खारिज कर दिया। मामले से अलग होने से पहले याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद, जिसमें कहा गया था कि सक्षम प्राधिकारी को 2022 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही पैरोल/फर्लो पर विचार करना चाहिए, फिर भी गुरमीत राम रहीम को जनवरी 2025 में अस्थायी रिहाई दी गई। यह हाईकोर्ट की टिप्पणियों का उल्लंघन करता है।
इस पर जस्टिस गवई ने सुझाव दिया कि
“यदि आपको लगता है कि हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना की गई है, तो आप हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर करें।”
सुप्रीम कोर्ट ने राम रहीम की पैरोल पर SGPC की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि इस याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह केवल गुरमीत राम रहीम पर केंद्रित थी और इसमें कोई व्यापक जनहित का मुद्दा नहीं था। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह भी सुझाव दिया कि यदि उन्हें लगता है कि हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन हुआ है, तो उन्हें हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर करनी चाहिए।
केस टाइटल: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, डायरी नंबर 7483-2025
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