PRAYAGRAJ POLICE ATTACK: 4 फरवरी को प्रयागराज में वकीलों पर पुलिस अधिकारियों द्वारा किए गए हमले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई की जा रही है।
याचिकाकर्ता, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने पुलिसकर्मियों द्वारा वकीलों पर किए गए अत्याचारों को उजागर करते हुए एक पूरक हलफनामा और पेन-ड्राइव दाखिल की। यह हलफनामा उस समय दाखिल किया गया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकीलों पर हुए हमले को लेकर आपराधिक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही थी।
PRAYAGRAJ POLICE ATTACK: वकीलों पर हमला घटनाक्रम का ब्यौरा
यह मामला 4 फरवरी 2025 का है, जब प्रयागराज में पुलिस अधिकारियों द्वारा वकीलों पर कथित रूप से हमला किया गया था। इस हमले के बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय में एक पत्र भेजा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पुलिस ने वकीलों को हाईकोर्ट जाने से रोका और कुछ वीआईपी मूवमेंट के कारण सड़क को अवरुद्ध कर दिया। जब वकील सड़क तक पहुंचने के लिए रास्ता मांगने गए, तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया।
इस पत्र के बाद, चीफ जस्टिस ने इसे आपराधिक जनहित याचिका में बदलने का आदेश दिया और मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ को सौंपी। इसके बाद, इस मुद्दे को लेकर सुनवाई शुरू हुई, जिसमें पुलिस द्वारा वकीलों पर किए गए अत्याचारों का विवरण दिया गया।
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सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल पूरक हलफनामा
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने 14 फरवरी 2025 को अदालत में एक पूरक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें पुलिस द्वारा वकीलों पर किए गए अत्याचारों का ब्यौरा दिया गया। इस पूरक हलफनामे में याचिकाकर्ता ने पुलिसकर्मियों द्वारा किए गए व्यक्तिगत अत्याचारों की घटनाओं को विस्तार से बताया। सीनियर एडवोकेट अनिल तिवारी ने अदालत में पेश होकर दलील दी कि कैसे पुलिसकर्मियों ने वकीलों के साथ अमानवीय व्यवहार किया और उन्हें रास्ते से हटा दिया। उन्होंने पीड़ितों से व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने के लिए दो दिन का समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया।
इसके साथ ही राज्य के वकील ने भी दूसरे पूरक हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए दो दिन का समय मांगा और उसे भी स्वीकार कर लिया गया। अदालत ने इस मामले में और जानकारी प्राप्त करने के लिए और समय दिया, ताकि वकीलों द्वारा दायर किए गए हलफनामों और पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों की पूरी जानकारी अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जा सके।
पेन-ड्राइव में प्रमाण अदालत का आदेश
इस मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत पेन-ड्राइव को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सुरक्षित रखा जाए। इस पेन-ड्राइव में पुलिस द्वारा किए गए हमले के बारे में महत्वपूर्ण दस्तावेज और रिकॉर्ड हो सकते हैं। खंडपीठ ने यह आदेश दिया कि पेन-ड्राइव को अगली सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष पेश किया जाए ताकि उस पर विचार किया जा सके।
अगली सुनवाई की तिथि
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी 2025 को तय की है। इस दिन अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल किए गए हलफनामों और पेन-ड्राइव में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर विचार किया जाएगा। इसके अलावा, राज्य सरकार को भी इस मामले पर जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में पुलिस द्वारा वकीलों के खिलाफ किए गए अत्याचारों पर पूरी तरह से ध्यान दिया जाएगा और सभी संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा जाएगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का ध्यान पुलिस अत्याचारों पर
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की संभावना को स्पष्ट किया है और यह सुनिश्चित किया है कि वकीलों के खिलाफ पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों पर पूरी तरह से ध्यान दिया जाएगा। अदालत ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार से पूरी जानकारी मांगी जाएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
इस प्रकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है और इस मामले में जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, यह स्पष्ट किया गया है कि यदि पुलिस द्वारा किसी भी तरह की ज्यादती की जाती है तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
मामले की कानूनी अहमियत
यह मामला कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें वकीलों के खिलाफ पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों की जांच की जा रही है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि किसी भी सरकारी अधिकारी द्वारा कानून का उल्लंघन नहीं हो। इस मामले में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूरी जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
केस टाइटल: इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इस केस में कानूनी प्रक्रिया के तहत पुलिस के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा उठाया गया है, जो भविष्य में कानून के तहत समान परिस्थितियों में दूसरे मामलों के लिए भी एक मिसाल हो सकता है।
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