RAJASTHAN HIGH COURT: ससम्मान जीवन का अधिकार अच्छे पति के आचरण का भी दायित्व

Photo of author

By headlineslivenews.com

Spread the love

RAJASTHAN HIGH COURT: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित ससम्मान जीवन के अधिकार की व्याख्या की है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि इस अधिकार में एक अच्छे पति के आचरण का कर्तव्य भी शामिल है। अदालत ने इस फैसले को भारतीय परंपराओं और संस्कारों से जोड़ते हुए इसे सप्तपदी (विवाह में लिए जाने वाले सात वचन) के माध्यम से समझाया। इस फैसले के माध्यम से कोर्ट ने यह बताया कि एक पति के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करना भी ससम्मान जीवन का हिस्सा है, जो भारतीय संस्कृति में विवाह के दौरान किए गए वचनों के अनुसार है।

RAJASTHAN HIGH COURT

RAJASTHAN HIGH COURT: याचिकाकर्ता की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई

इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी की खराब स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर तीन महीने की अंतरिम जमानत की मांग की थी। पत्नी की चिकित्सा स्थिति गंभीर होने के कारण, उन्हें उचित देखभाल की आवश्यकता थी, जिसके लिए पति का साथ होना जरूरी था।

याचिकाकर्ता पिछले दो वर्षों से न्यायिक हिरासत में है और उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आत्मीयता का आपराधिक उल्लंघन), 420 (धोखाधड़ी), 409 (विश्वासपात्र द्वारा अपराध), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेजों का उपयोग) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के साथ-साथ आई.टी. अधिनियम, 2000 की धारा 65 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

DELHI HC: चार्जशीट के बाद भी मांगी जा सकती है आरोपी की हिरासत

DELHI HIGH COURT: POCSO केस खारिज किया

अदालत ने इस मामले में याचिकाकर्ता की पत्नी की चिकित्सा स्थिति का भी संज्ञान लिया। यह ध्यान दिया गया कि उसकी पत्नी अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग में इलाज करवा रही थी। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का पारिवारिक संबंधों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाना और पत्नी का सहारा बनना भी महत्वपूर्ण है।

RAJASTHAN HIGH COURT: ससम्मान जीवन के अधिकार का महत्व

न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की खंडपीठ ने यह भी कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित ससम्मान जीवन का अधिकार न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह मनुष्य को समाज में ससम्मान जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार पति-पत्नी के बीच आपसी आदर और मर्यादा का भी प्रतीक है।

अदालत ने इस संदर्भ में विवाह के सप्तपदी संस्कार का उल्लेख किया। भारतीय हिंदू संस्कृति में विवाह के दौरान सात फेरे लेने का महत्व इस बात को दर्शाता है कि दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति सम्मान, देखभाल और समर्पण का वचन लेते हैं। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि ससम्मान जीवन का अधिकार पति को अपने विवाहिक कर्तव्यों का पालन करने का दायित्व भी सौंपता है।

इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए अधिवक्ता प्रियंका बोराना ने कहा कि याचिकाकर्ता की पत्नी को अत्यंत गंभीर स्थिति में उपचार की आवश्यकता है और याचिकाकर्ता उसकी देखभाल के लिए अस्थायी जमानत का हकदार है। इसके अतिरिक्त, यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता एक पारिवारिक व्यक्ति है और उसके फरार होने की कोई संभावना नहीं है। इसके जवाब में, पीपी विक्रम राजपुरोहित ने प्रतिवादी के पक्ष को रखा।

कोर्ट ने भी इस तथ्य का संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता की पत्नी को गंभीर चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति मोंगा ने कहा कि परिवार का सहयोग और एक अच्छे पति के कर्तव्यों का पालन करना, खासकर जब पत्नी को मेडिकल देखभाल की आवश्यकता है, एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है। इस प्रकार, कोर्ट ने अस्थायी जमानत प्रदान की और याचिका को स्वीकार कर लिया।

RAJASTHAN HIGH COURT: भारतीय संस्कृति का अद्वितीय दृष्टिकोण

Headlines Live News

हाईकोर्ट ने हिंदू संस्कृति में विवाह के दौरान सप्तपदी समारोह का उल्लेख किया, जिसमें पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति सात वचनों का संकल्प लेते हैं। इन वचनों का पालन न केवल सामाजिक दृष्टिकोण से, बल्कि ससम्मान जीवन के अधिकार की दृष्टि से भी आवश्यक है। कोर्ट ने यह माना कि इन वचनों के अनुसार पत्नी की देखभाल और पति के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करना ससम्मान जीवन के अधिकार के अंतर्गत आता है।

राजस्थान हाईकोर्ट के इस फैसले का महत्व इस बात में है कि उसने ससम्मान जीवन के अधिकार को एक विस्तारित दृष्टिकोण में देखा, जिसमें भारतीय परंपराओं और मूल्यों का भी समावेश है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति के कर्तव्यों का पालन करना केवल एक नैतिक दायित्व नहीं है, बल्कि यह एक कानूनी अधिकार भी है जो भारतीय समाज और संस्कृति में निहित है।

अंततः, राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय संस्कृति, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और पारिवारिक मूल्यों का सम्मिश्रण प्रस्तुत किया। यह फैसला न केवल एक न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज में ससम्मान जीवन और वैवाहिक कर्तव्यों के महत्व को भी उजागर करता है।

Headlines Live News

अदालत के इस फैसले के माध्यम से एक संदेश दिया गया कि संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का पालन न केवल कानूनी दायित्व है, बल्कि यह हमारे समाज की सांस्कृतिक और नैतिक जड़ों से भी जुड़ा हुआ है।

मामला शीर्षक: अमर सिंह राठौर बनाम राजस्थान राज्य
तटस्थ संदर्भ: 2024:RJ-JD:44034


Spread the love
Sharing This Post:

Leave a comment

PINK MOON 2025 सरकार ने पूरी की तैयारी 2025 विश्व गौरैया दिवस: घरों को अपनी चहचहाहट से भरती है गौरैया, हो चुकी लुप्त स्पेस में खुद का युरीन पीते हैं एस्ट्रोनॉट्स! इस क्रिकेटर का होने जा रहा है तालाक!