RAJASTHAN HIGH COURT ORDER: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि अगर कोई दोषी कर्मचारी कार्यवाही के दौरान मृत्यु हो जाता है, तो उसके खिलाफ जारी विभागीय कार्यवाही समाप्त हो जाती है। .
ह निर्णय जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने एक कर्मचारी के खिलाफ दायर आरोप पत्र और परिणामी कार्यवाही को लेकर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
इस मामले में, कर्मचारी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए थे, लेकिन कार्यवाही शुरू होने से पहले ही कर्मचारी की मृत्यु हो गई। याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि जब कर्मचारी जीवित नहीं है, तो आरोपों का बचाव कौन करेगा और क्या कार्यवाही जारी रखी जा सकती है। न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किया और स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ आरोपों का बचाव करना असंभव हो जाता है, क्योंकि आरोपों का प्रतिवाद करने का अधिकार मृतक को नहीं दिया जा सकता है।
RAJASTHAN HIGH COURT ORDER: गिरधारी कर्मचंदानी पर बैंक नियमों का उल्लंघन का आरोप
गिरधारी कर्मचंदानी नामक एक कर्मचारी के खिलाफ पंजाब नेशनल बैंक द्वारा आरोप पत्र दायर किया गया था। आरोप था कि उसने बैंक के नियमों का उल्लंघन किया है और उसके द्वारा किए गए कृत्य बैंक के हित में नहीं थे। इस आधार पर विभागीय कार्यवाही शुरू की गई थी, लेकिन इसी बीच कर्मचारी की मृत्यु हो गई। मृतक कर्मचारी के कानूनी प्रतिनिधियों ने इस मामले में याचिका दायर की और न्यायालय से अनुरोध किया कि मृतक के खिलाफ जारी आरोप पत्र और विभागीय कार्यवाही को समाप्त किया जाए।
कर्मचारी की मृत्यु के बाद आरोपों का प्रभावी बचाव नहीं हो सकता
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए यह माना कि कार्यवाही के दौरान आरोपित कर्मचारी की मृत्यु के बाद आरोपों का प्रभावी रूप से बचाव करना संभव नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में कहा, “एक बार जब किसी कर्मचारी के खिलाफ आरोप लगाए जाते हैं, जो अब जीवित नहीं है, तो कोई भी ऐसा नहीं होता, जो उन आरोपों का प्रभावी ढंग से बचाव कर सके।
जब तक कर्मचारी को खुद का बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया जाता, तब तक उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए कोई कार्यवाही जारी नहीं रह सकती। इस मामले में कर्मचारी की मृत्यु के बाद आरोपों का बचाव करने का अवसर प्रदान करना असंभव है, क्योंकि ऐसा कोई नहीं है जो पर्याप्त रूप से ऐसा कर सके। इसलिए संबंधित कर्मचारी की मृत्यु के बाद जांच जारी नहीं रह सकती।”
इस निर्णय के बाद, न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि मृतक कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जाती है और इस कारण याचिका का निपटारा किया गया। इसके साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि मृतक कर्मचारी के बकाया धनराशि को उसके कानूनी प्रतिनिधियों को जारी किया जाए।
न्यायालय द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण बिंदु
- संपूर्ण कार्यवाही का समाप्त होना
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही को जारी रखना संभव नहीं है। जब तक कर्मचारी जीवित था, उसे अपने बचाव का उचित अवसर दिया गया था, लेकिन मृत्यु के बाद किसी अन्य व्यक्ति को उसकी ओर से बचाव प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं हो सकता। - आरोपों का बचाव करने का अधिकार
न्यायालय ने यह भी माना कि किसी भी कर्मचारी के खिलाफ आरोप लगाए जाते हैं, तो उसे अपना बचाव करने का एक स्वाभाविक अधिकार होता है। जब कर्मचारी मृत हो, तो उस पर आरोपों का बचाव करने का कोई तरीका नहीं रह जाता। - कानूनी प्रतिनिधियों को बकाया राशि का भुगतान
इस मामले में, न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि मृतक कर्मचारी के बकाया वेतन और अन्य भुगतान उसकी कानूनी प्रतिनिधियों को जारी किए जाएं। यह आदेश कर्मचारी के परिवार के अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए था, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके।
मृतक कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना असंभव
यह निर्णय सिर्फ एक कर्मचारी के मामले में नहीं है, बल्कि इससे जुड़े कानूनों और विभागीय कार्यवाहियों में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत को स्थापित किया गया है। इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ चल रही कार्यवाही को रोक दिया जाएगा, क्योंकि उसका बचाव करने का कोई भी तरीका नहीं हो सकता।
यह निर्णय कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है, क्योंकि इसे सुनिश्चित किया गया कि किसी मृत कर्मचारी के खिलाफ आरोपों की जांच तब तक जारी नहीं रखी जा सकती, जब तक उसे खुद अपना बचाव करने का अवसर न दिया जाए।
मृतक कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही पर मार्गदर्शक निर्णय
यह निर्णय उन मामलों के लिए मार्गदर्शक हो सकता है जहां किसी कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही चल रही हो और वह किसी कारणवश मृत हो जाए। ऐसे मामलों में न्यायालय का यह दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि किसी मृत कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती, क्योंकि उसके पास अपने पक्ष को रखने का अवसर नहीं होता।
आगे चलकर इस निर्णय के प्रभाव से यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकारी और निजी संस्थानों में कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाहियों के मामले में न्याय का दृष्टिकोण और भी अधिक पारदर्शी और मानवीय हो सकता है। इस तरह के निर्णय से कर्मचारी के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है और उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार को किसी प्रकार की कानूनी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता।
केस टाइटल: गिरधारी कर्मचंदानी बनाम पंजाब नेशनल बैंक और अन्य
इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी विभागीय कार्यवाही में दोषी कर्मचारी की मृत्यु के बाद कार्यवाही नहीं चल सकती, और यह कर्मचारी और उसके परिवार के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
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