Rishi Panchami Vrat Katha: ऋषि पंचमी का व्रत सुहागन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस व्रत को करने से महिलाओं को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं और उनका परिवार सुखी और समृद्ध रहता है। ऋषि पंचमी के दिन व्रत का पालन करने के साथ-साथ भविष्य पुराण में वर्णित ऋषि पंचमी की कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। यह कथा महिलाओं के व्रत को पूर्णता प्रदान करती है और उन्हें व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।
ऋषि पंचमी व्रत का उद्देश्य मुख्य रूप से महिलाओं के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करना और उन्हें सुख, समृद्धि, और सौभाग्य का आशीर्वाद देना है। इस व्रत के दौरान महिलाएं पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान की पूजा करती हैं और अपने परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं। व्रत का पालन करने वाली महिलाओं के लिए यह दिन विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, और उन्हें इस दिन व्रत के साथ कथा का पाठ करके अपने जीवन को अधिक मंगलमय बनाने का अवसर मिलता है।
इस प्रकार, ऋषि पंचमी का व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह महिलाओं के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति का माध्यम भी है। इस व्रत का पालन करने से महिलाएं अपने परिवार के साथ सुखी जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
Rishi Panchami Vrat Katha: ऋषि पंचमी व्रत का महत्व और प्राचीन कथा
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युधिष्ठिर ने एक दिन श्री कृष्ण से प्रार्थना की, “हे देवेश! आपने मुझे विभिन्न व्रतों के बारे में बताया है। कृपया अब मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं, जो पापों को नष्ट करने में सक्षम हो।” श्री कृष्ण ने इस पर उत्तर देते हुए कहा, “हे राजेन्द्र! मैं तुम्हें ऋषि पंचमी का व्रत सुनाता हूं। यह व्रत उन पापों से मुक्ति प्रदान करता है, जो स्त्री के जीवन में आ जाते हैं।”
प्राचीन कथाओं के अनुसार, जब इन्द्र ने वृत्रासुर का वध किया, तो उसके पाप चार स्थानों पर फैल गए। ये स्थान थे: अग्नि की ज्वाला, नदियों के बरसाती जल, पर्वतों में, और स्त्री के रज में। स्त्री के रजस्वला अवस्था में जो पाप होते हैं, उनकी शुद्धि के लिए ऋषि पंचमी व्रत अत्यंत लाभकारी है। यह व्रत सभी वर्णों की स्त्रियों के लिए किया जा सकता है और इसको पालन करने से पाप समाप्त हो जाते हैं।
Rishi Panchami Vrat Katha: सती जयश्री और सुमित की कथा
सतयुग में विदर्भ नगरी में एक राजा स्येनजित का शासन था। वे प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे और उनके आचरण ऋषि के समान थे। उनके राज्य में एक सुमित्र नामक ब्राह्मण कृषक निवास करता था, जो वेदों का ज्ञाता और सभी जीवों का उपकार करने वाला था। उसकी पतिव्रता पत्नी जयश्री थी। एक बार वर्षा काल में, जब जयश्री रजस्वला हो गई थी, तो भी वह घर के कामों में लगी रही। रजस्वला अवस्था में रहते हुए वह अपनी धार्मिकता और परिवार की जिम्मेदारियों को निभाती रही।
समय के साथ, जयश्री और सुमित की मृत्यु हो गई। जयश्री को रजस्वला होने के कारण कुतिया का जन्म मिला, जबकि सुमित को रजस्वला स्त्री के संपर्क में रहने के कारण बैल का जन्म मिला। क्योंकि इन दोनों का केवल रजस्वला दोष ही था, वे पूर्वजन्म की बातों को याद कर सके। कुतिया और बैल के रूप में रहते हुए, वे अपने पुत्र सुमित के घर में पलने लगे।
सुमित एक धर्मात्मा था और अतिथियों का सत्कार करने में विश्वास करता था। उसने अपने पिता के श्राद्ध के दिन विभिन्न प्रकार के भोजन बनवाए और ब्राह्मणों को आमंत्रित किया। इस प्रकार, ऋषि पंचमी का व्रत और इस कथा के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि पापों की शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति के लिए यह व्रत कितना महत्वपूर्ण है।
Rishi Panchami Vrat Katha: ऋषि पंचमी व्रत कथा: पापों की शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति
एक समय की बात है कि सुमित की पत्नी किसी आवश्यक काम से घर से बाहर गई हुई थी। इस बीच, एक सर्प ने आकर रसोई के बर्तन में विष मिला दिया। सुमित की मां, जो कुतिया के रूप में जन्मी थी, इस विष की घटना को देख रही थी। अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए उसने विष युक्त बर्तन को छू लिया, ताकि उसका कोई भी बर्तन ब्रह्महत्या के पाप से बच सके। इस कृत्य को देखकर सुमित की पत्नी ने क्रोधित होकर कुतिया को एक जलती लकड़ी से मारा। इसके साथ ही, उसने कुतिया को खाने के लिए रोज जो जूठन दिया करती थी, उसे भी उस दिन से देना बंद कर दिया।
रात्रि को भूख से व्याकुल कुतिया अपने पूर्व पति सुमित के पास आई और कहा, “हे नाथ! आज मैं भूख से मरी जा रही हूं। रोज मेरे पुत्र ने मुझे खाने को दिया, लेकिन आज उसने कुछ नहीं दिया। मैंने सर्प के विष वाले बर्तन को ब्रह्महत्या के भय से छूकर उसे भ्रष्ट कर दिया था। इस कारण बहू ने मुझे मारा और खाने को भी नहीं दिया।”
सुनकर बैल ने भी अपनी पीड़ा व्यक्त की, “हे भद्रे! तुम्हारे पापों के कारण मैं भी इस योनि में आ गया हूँ। बोझा ढोते-ढोते मेरी कमर टूट गई है। आज दिनभर खेत जोता और मेरे पुत्र ने मुझे भोजन नहीं दिया, बल्कि मुझे कष्ट भी दिया। मेरे श्राद्ध को व्यर्थ ही कर दिया गया।”
सुमित ने अपने माता-पिता की बातों को सुना और उनके दुःख को देख कर द्रवित हो गया। उसने वन में जाकर ऋषियों से पूछा, “हे स्वामी! मेरे माता-पिता किस कारण से इस योनि को प्राप्त हुए हैं और वे इससे मुक्ति कैसे पा सकते हैं?” महर्षि सर्वतपा ने दया करके उत्तर दिया, “पूर्व जन्म में तुम्हारी माता ने रजस्वला होते हुए भी घर की सभी वस्तुओं को छू लिया था और तुम्हारे पिता ने उसे छूकर पाप किया था। इसी कारण वे कुतिया और बैल की योनि में आए हैं। तुम्हें उनके उद्धार के लिए ऋषि पंचमी का व्रत धारण करना चाहिए।”
सुमित ने महर्षि सर्वतपा के वचनों को सुनकर अपने घर लौट आया और ऋषि पंचमी के दिन व्रत किया। उसने अपनी पत्नी के साथ इस व्रत को निभाया और इसके पुण्य को अपने माता-पिता को अर्पित किया। इस व्रत के प्रभाव से सुमित के माता-पिता कुतिया और बैल की योनि से मुक्त हो गए और स्वर्ग को चले गए।
ऋषि पंचमी व्रत का महत्व इस कथा से स्पष्ट होता है। यह व्रत केवल पापों से मुक्ति ही नहीं बल्कि समस्त सुखों की प्राप्ति का भी मार्ग है। जो स्त्री इस व्रत को नियमित रूप से धारण करती है, वह जीवन में सभी सुखों का अनुभव करती है और पापों से मुक्त होती है। यह व्रत सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करना चाहिए, ताकि इसके पुण्य से जीवन में शांति और समृद्धि आए।