SAMBHAL VIOLENCE: एसपी सांसद की एफआईआर रद्द करने से हाईकोर्ट का इनकार

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By headlineslivenews.com

SAMBHAL VIOLENCE: एसपी सांसद की एफआईआर रद्द करने से हाईकोर्ट का इनकार

SAMBHAL VIOLENCE: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में समाजवादी पार्टी (एसपी) के संभल से सांसद जिया-उर-रहमान बर्क के खिलाफ दर्ज की गई

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SAMBHAL VIOLENCE: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में समाजवादी पार्टी (एसपी) के संभल से सांसद जिया-उर-रहमान बर्क के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया। यह एफआईआर उनके द्वारा कथित तौर पर दिए गए भड़काऊ भाषण के कारण दर्ज की गई थी, जिसके चलते उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हिंसा भड़की थी।

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इस हिंसा में चार लोगों की मृत्यु हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए थे। न्यायालय ने इस मामले में एफआईआर रद्द करने की याचिका पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि इसमें दर्ज आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध को दर्शाते हैं, इसलिए एफआईआर रद्द करने की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।

SAMBHAL VIOLENCE: कोर्ट का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी शामिल थे, ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एफआईआर में उल्लिखित आरोप अधिकतम सात साल तक की सजा वाले अपराधों से संबंधित हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इन मामलों में गिरफ्तारी को सामान्य प्रक्रिया नहीं बनाना चाहिए।

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साथ ही, न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के अरुणेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में दिए गए दिशानिर्देशों और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 के प्रावधानों का हवाला देते हुए निर्देश दिया कि इन नियमों का पालन करते हुए ही आगे की कार्रवाई की जाए।

यह एफआईआर 24 नवंबर 2024 को संभल जिले में हुई हिंसा के संबंध में दर्ज की गई थी। यह हिंसा शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर हुई विरोध-प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी।

पुलिस का आरोप है कि सांसद बर्क द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण ने इस हिंसा को बढ़ावा दिया। हिंसा के दौरान चार लोगों की जान चली गई और कई अन्य लोग घायल हो गए। इस संदर्भ में पुलिस ने सांसद बर्क को आरोपी बनाते हुए एफआईआर दर्ज की।

SAMBHAL VIOLENCE: सांसद बर्क की दलीलें

सांसद बर्क के वकील इमरान उल्लाह ने अदालत में यह तर्क प्रस्तुत किया कि उनके मुव्वकल (सांसद बर्क) को गलत तरीके से इस मामले में फंसाया गया है। उन्होंने दावा किया कि बर्क घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे, फिर भी उनका नाम एफआईआर में दर्ज किया गया है।

वकील ने यह भी कहा कि एफआईआर में दर्ज आरोप सात साल तक की सजा वाले अपराधों से संबंधित हैं, इसलिए ऐसे मामलों में BNSS की धारा 35 का पालन करना अनिवार्य है। उन्होंने यह भी कहा कि गिरफ्तारी से पहले आरोपी को उचित प्रक्रिया से गुजरने का अधिकार है, और इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

राज्य सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने मामले में पैरवी की। उन्होंने अदालत को बताया कि सांसद बर्क का भड़काऊ भाषण हिंसा का कारण बना और इस पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि एफआईआर के लिए उचित कारण था और इसे रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। राज्य सरकार का पक्ष था कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करना न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है।

SAMBHAL VIOLENCE: मामले की पृष्ठभूमि

संभल हिंसा की पृष्ठभूमि में एक और विवाद था, जब 20 नवंबर 2024 को संभल के सिविल जज ने शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया। मस्जिद के आसपास विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे, जिसमें दावा किया गया था कि पहले वहां एक हरिहर मंदिर था। इस विवाद ने हिंसा का रूप लिया और इसके बाद सांसद बर्क द्वारा दिए गए कथित भड़काऊ भाषण को लेकर एफआईआर दर्ज की गई।

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सांसद बर्क ने अदालत से एफआईआर रद्द करने की मांग की थी, साथ ही उन्होंने अपनी गिरफ्तारी पर भी रोक लगाने का अनुरोध किया। इस पर उच्च न्यायालय ने उनका अनुरोध खारिज कर दिया, लेकिन पुलिस को सुप्रीम कोर्ट और BNSS के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

SAMBHAL VIOLENCE: अदालत के निर्देश

कोर्ट ने मामले में स्पष्ट किया कि चूंकि आरोपित अपराधों में अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है, इसलिए इन मामलों में गिरफ्तारी को सामान्य प्रक्रिया नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही, अदालत ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि मामले की आगे की प्रक्रिया BNSS की धारा 35 और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार पूरी की जाए।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में अपने आदेश से यह सिद्ध कर दिया कि एफआईआर रद्द करने के लिए पर्याप्त कारणों का होना आवश्यक है, और अगर आरोपित अपराध गंभीर होते हैं, तो गिरफ्तारी की प्रक्रिया को सामान्य मानक के अनुसार ही लागू किया जाना चाहिए।

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सांसद बर्क के खिलाफ एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज करने के बाद, अब मामले की आगे की सुनवाई और कार्रवाई की दिशा तय की जाएगी। इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया कि भड़काऊ भाषण और सार्वजनिक हिंसा के मामले में कानून को सख्ती से लागू किया जाएगा।

अदालत ने इस फैसले के माध्यम से नागरिक सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है, जिससे यह संदेश जाता है कि किसी भी आरोपी को गिरफ्तारी से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा और इसमें कानूनी प्रावधानों का पालन किया जाएगा।

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