SUNITA WILLIAMS: भारतीय मूल की बेटी और नासा की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर आखिरकार अंतरिक्ष से करीब 9 महीनों का सफ़र गुज़ारने के बाद पृथ्वी पर वापस आ चुके हैं. लेकिन महीनों पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण, हवा और पानी से दूर रहने के कारण अक्सर एस्ट्रोनॉट्स को कई बिमारियों का सामना करना पड़ता है. आइए जानते हैं, वो कौन-सी बिमारियां है जिससे एस्ट्रोनॉट्स को जूझना पड़ता है.
नासा एस्ट्रोनॉट्स सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर क्रू-10 मिशन के तहत फ्लोरिडा के समंदर में 19 मार्च सुबह 03:30 बजे सही-सलामत लैंड कर चुके हैं. यह बात लाज़मी है कि महीनों पृथ्वी के वातावरण से दूर रहने के कारण एस्ट्रोनॉट्स को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार ढ़लने में समय लग जाएगा. क्योंकि अंतरिक्ष में वे ज़ीरो गुरुत्वाकर्षण में होते हैं.
SUNITA WILLIAMS: इन स्वास्थय समस्याओं का करना पड़ सकता है सामन-
इस बात को लेकर काफी कयास लगाए जा रहे हैं कि एस्ट्रोनॉट्स को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर नौ महीने गुज़ारने के बाद उनके शरीर में काफी बदलाव आएंगे. जिसके कारण तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
SUNITA WILLIAMS: कमज़ोर हड्डियां संबंधित परेशानी-
करीब 9 महीने अंतरिक्ष की ज़ीरो गुरुत्वाकर्षण में रहने के कारण वो सारे समय स्पेस में उड़ते रहें, जिसके कारण उन्हें अब धरती पर चलने की आदत बनाने में काफी समय लगेगा और ऐसे में एस्ट्रोनॉट्स की हड्डियां और मांसपेशियों में दर्द हो सकता हैं. इसके अलावा एस्ट्रोनॉट्स को बेबी फीट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के साथ ढ़लने में उन्हें काफी समय लग सकता है.
नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष में रहने से एस्ट्रोनॉट्स की हड्डियां हर महीने लगभग 1% कम होने लगती हैं. अंतरिक्ष में रहने के दौरान यात्रियों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियों में कैल्शियम की कमी होती चली जाती है. जिसके चलते धरती पर वापिस लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स को कमजोर और थका हुआ महसूस होता है. क्योंकि मांसपेशियों का अंतरिक्ष में कोई मेहनत का काम नहीं होता जितना पृथ्वी पर होता है. इसके कारण ये धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगती हैं. इसलिए पृथ्वी के मुताबिक शरीर को ढ़लने में काफी समय लग जाता है और चक्कर आने, हड्डियों के टूटने जैसी कई समस्याओं का डर बना रहता है. हालांकि एस्ट्रोनॉट्स को इनसे बचने के लिए स्पेस में एक्सरसाइज़ की सलाह दी जी हैं. साथ ही लगभग 2 घंटें कार्डियो और इम्युनिटी ट्रेनिंग करने के लिए कहा जाता है. लेकिन स्पेस में महीनों रहने के बाद उसका असर एस्ट्रोनॉट्स के शरीर पर काफी पड़ता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अंतरिक्ष यात्रियों की हाईट अंतरिक्ष में बढ़ती चली जाती है. क्योंकि इंसान के रीढ़ की हड्डी गुरुत्वाकर्षण के बिना फैलती रहती है. जिससे एस्ट्रोनॉट्स को पीठ दर्द होने की समस्याएं हो सकती हैं.
अंतरिक्ष में ज्यादा वक्त गुज़ारने से एस्ट्रोनॉट्स की आंखें और उनके दिमाग की बनावट बदलने लगती है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण ज़ीरो होने के कारण शरीर में मौजूद तरल पदार्थ सिर के ऊपर की ओर चले जाते हैं. जिससे आंखों पर दबाव पड़ता है.
SUNITA WILLIAMS: शरीर में बढ़ने लगती है खून की कमी-
महीनों अंतरिक्ष में गुज़ारने से एस्ट्रोनॉट्स की किडनी में पथरी का खतरा बना रहता है. इसके अलावा शरीर की करीब 50 फीसदी तक लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. जिससे शरीर में खून की कमी बढ़ने लगती है. यही लाल कोशिकाएं पूरे शरीर में रक्त पहुंचाती हैं. अब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं के नष्ट होने से शरीर में सही मात्रा में खून नहीं बन पाता. जिससे खून की कमी होती है. और खून की कमी होने से ऑक्सीज़न सही मात्रा में शरीर तक नहीं पहुंच पाती. इसे स्पेस एनीमिया कहा जाता है. यानी एस्ट्रोनॉट्स को धरती पर लौटने के बाद भी काफी शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. साथ में, धरती के गुरुत्वाकर्षण में वापिस आने पर एस्ट्रोनॉट्स को अपने शारीरिक संतुलन को दुबारा कायम करने में काफी तकलीफें आती हैं.
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