SUPREME COURT का फैसला: अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को न्याय

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By headlineslivenews.com

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SUPREME COURT का फैसला: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोपी को जमानत दी।

SUPREME COURT का फैसला: अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को न्याय

अदालत ने इस निर्णय में हिरासत की लंबी अवधि और ट्रायल में होने वाली संभावित देरी को आधार बनाया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओक और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।

SUPREME COURT का फैसला: 14 महीने की लंबी हिरासत और ट्रायल में देरी

इस मामले में आरोपी उधव सिंह पिछले 14 महीनों से हिरासत में था। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में 225 गवाहों को सूचीबद्ध किया था, लेकिन अब तक केवल एक गवाह की ही जांच की जा सकी थी। अदालत ने इसे ध्यान में रखते हुए माना कि ट्रायल के पूरा होने में अत्यधिक देरी हो सकती है।

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संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

इस मामले में न्यायालय ने भारत संघ बनाम के.ए. नजीब और वी. सेंथिल बालाजी बनाम उप निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय जैसे पूर्व मामलों का हवाला दिया। इन मामलों में न्यायालय ने माना था कि UAPA और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) जैसे कठोर कानूनों के तहत लंबी हिरासत संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन कर सकती है। अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को शीघ्र सुनवाई का अधिकार प्रदान करता है।

PMLA की धारा 45 और जमानत का विवाद

इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सहायक निदेशक बनाम कन्हैया प्रसाद मामले का हवाला देते हुए जमानत का विरोध किया। इस मामले में न्यायालय ने PMLA की धारा 45 के तहत दोहरी शर्तों के आधार पर जमानत रद्द कर दी थी। इस धारा के तहत जमानत के लिए आरोपी को यह साबित करना होता है कि:

  1. वह निर्दोष है।
  2. जमानत मिलने से कोई सार्वजनिक हानि नहीं होगी।

ED के अनुसार, PMLA के मामलों में जमानत मिलना मुश्किल होना चाहिए, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग एक गंभीर अपराध है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कन्हैया प्रसाद के मामले में परिस्थितियाँ अलग थीं।

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हिरासत की अवधि और ट्रायल में देरी का प्रभाव

कन्हैया प्रसाद के मामले में आरोपी केवल सात महीने से हिरासत में था और ट्रायल में कोई अनुचित देरी नहीं थी। इसलिए, अदालत ने पाया कि भारत संघ बनाम के.ए. नजीब और वी. सेंथिल बालाजी के मामलों में दिए गए सिद्धांत उस मामले में लागू नहीं हो सकते थे।

इसके विपरीत, उधव सिंह का मामला अलग था क्योंकि:

  1. वह 14 महीने से हिरासत में था।
  2. ट्रायल में देरी की संभावना थी।
  3. अभियोजन पक्ष ने 225 गवाहों की सूची दी थी, लेकिन अब तक केवल एक गवाह की ही जांच हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा,

“हमारा ध्यान सहायक निदेशक बनाम कन्हैया प्रसाद के मामले की ओर आकर्षित किया जाता है। निर्णय का अवलोकन करने के बाद हमें यह स्पष्ट होता है कि यह एक अलग मामला था। यहाँ, अभियुक्त को केवल सात महीने की हिरासत हुई थी और मुकदमा उचित समय में पूरा होने की संभावना थी। इसलिए, के.ए. नजीब और सेंथिल बालाजी के मामलों में स्थापित सिद्धांत वहाँ लागू नहीं किए गए थे।”

इसके अतिरिक्त, सॉलिसिटर जनरल ने भी यह स्वीकार किया कि सेंथिल बालाजी के मामले में पारित निर्णय का पालन किया जा सकता है।

आरोपी की रिहाई का मार्ग प्रशस्त

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी को अब और अधिक समय तक हिरासत में रखना अनुचित होगा। न्यायालय ने पाया कि ट्रायल पूरा होने में अत्यधिक देरी हो सकती है और यह आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन करेगा।

इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने उधव सिंह को जमानत देते हुए कहा कि मामले की गंभीरता के बावजूद, न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शीघ्र न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।

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PMLA के तहत जमानत पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

यह निर्णय PMLA जैसे कठोर कानूनों के तहत जमानत से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को स्पष्ट करता है। यह न्यायालय की उस नीति को दर्शाता है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि अभियुक्तों को अनावश्यक रूप से लंबे समय तक हिरासत में न रखा जाए।

यह फैसला यह भी दर्शाता है कि जमानत के मामलों में परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए जा सकते हैं। यह मामला न्यायपालिका के संतुलित दृष्टिकोण को रेखांकित करता है, जहाँ आरोपी के अधिकारों की रक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।

केस टाइटल: उधव सिंह बनाम प्रवर्तन निदेशालय, आपराधिक अपील संख्या 799/2025

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