SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है कि क्या न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण को उसके आदेश के खिलाफ दायर अपील में पक्षकार बनाया जा सकता है। इस संदर्भ में, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि प्राधिकरण का आदेश उसकी “निर्णयात्मक भूमिका” के तहत जारी किया गया है, तो उसे अपील में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है। दूसरी ओर, यदि आदेश उसके नियामक कार्यों के exercising के तहत जारी किया गया है, तो उसे पक्षकार बनाना आवश्यक है।
SUPREME COURT: मामला का संदर्भ
इस मामले में एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA) ने भारतीय एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी एक्ट, 2008 (AERA एक्ट) की धारा 31 के तहत टेलीकॉम विवाद निपटान और अपील ट्रिब्यूनल (TDSAT) के फैसलों को चुनौती देने के लिए अपीलें दायर की थीं।
मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया:
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- निर्णयात्मक कार्य: यदि आदेश केवल “निर्णयात्मक कार्य” के exercising के तहत जारी किया गया है, तो किसी भी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण को अपील में पक्षकार नहीं बनाया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि यदि आदेश का उद्देश्य विशिष्ट व्यक्ति के लिए है, तो प्राधिकरण को अपील में शामिल नहीं किया जा सकता।
- नियामक कार्य: यदि आदेश नियामक कार्यों के exercising के तहत जारी किया गया है, तो उस प्राधिकरण को अपील में पक्षकार बनाना आवश्यक है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि प्राधिकरण का जनहित की सुरक्षा में महत्वपूर्ण हित होता है।
- उपस्थिति की आवश्यकता: यदि प्राधिकरण की उपस्थिति अपील के प्रभावी निर्णय के लिए आवश्यक है, तो उसे अपील में पक्षकार बनाया जा सकता है। इसका तात्पर्य है कि अगर प्राधिकरण का विशेषज्ञता से संबंधित ज्ञान अपील के परिणाम को प्रभावित कर सकता है, तो उसे पक्षकार बनाया जा सकता है।
SUPREME COURT: न्यायालय का निर्णय
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल वेंकटारामणि ने अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल और ए.एम. सिंहवी ने प्रतिवादियों का पक्ष रखा। कोर्ट ने निर्णय लिया कि:
- निर्णयात्मक कार्य की परिभाषा: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “निर्णयात्मक कार्य” को निर्धारित करने के लिए कुछ परीक्षण हैं। एक परीक्षण यह है कि क्या आदेश किसी विशेष व्यक्ति के लिए है या सामान्य रूप से लागू होता है। दूसरा यह है कि विधायी कार्य हमेशा ‘व्यक्तिगत’ नहीं होना चाहिए और निर्णयात्मक कार्य ‘ऑब्जेक्टिव’ हो सकता है।
- न्यायिक प्रक्रिया का महत्व: कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण को अपील में पक्षकार बनाया जाता है, तो उन्हें अपील कोर्ट के समक्ष अपने निर्णय को सही ठहराने की आवश्यकता होगी। यह स्थापित सिद्धांत के विपरीत है कि न्यायाधीश केवल अपने निर्णयों के माध्यम से बोलते हैं। इस सिद्धांत का कोई भी पतन न्यायिक प्रणाली के पूरे ढांचे को तोड़ सकता है।
SUPREME COURT: निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण को उसके आदेश के खिलाफ अपील में पक्षकार बनाना उचित नहीं है, जब तक कि आदेश उसके नियामक कार्यों के तहत जारी न किया गया हो। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की स्वायत्तता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है और यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्राधिकरण केवल उनके निर्णयों के माध्यम से ही जवाबदेह रहें।
मामला शीर्षक: एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया बनाम दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड एवं अन्य (न्यूट्रल सिटेशन: 2024 INSC 791)
SUPREME COURT: पक्षकारों की उपस्थिति
अपीलकर्ता: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता; अटॉर्नी जनरल वेंकटारामणि; वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्र और साजन पूवैया।
प्रतिवादी: वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल, ए.एम. सिंहवी, अरविंद दातार, साजन पूवैया, मनिंदर सिंह।