SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी करने की प्रक्रिया की कड़ी आलोचना की। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (डीवी अधिनियम) के तहत कार्यवाही में तब तक दंडात्मक परिणाम लागू नहीं होते, जब तक कि किसी पक्ष ने संरक्षण आदेश का उल्लंघन न किया हो। यह निर्णय न्यायमूर्ति संदीप मेहता की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया।
SUPREME COURT: मामले की पृष्ठभूमि
मामला एक मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा घरेलू हिंसा के मामले में पक्षकारों में से एक के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने से संबंधित था। याचिकाकर्ता ने इसे अनुचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ता महिला ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसका दिव्यांग नाबालिग बेटा है, और वह आर्थिक रूप से पूरी तरह से अपने पिता पर निर्भर है।
इसके अतिरिक्त, उसने अदालत को यह भी बताया कि दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालत ने उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है, जो कानून के अनुसार उचित नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट ने डीवी अधिनियम की धारा 19 और 31 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि इस कानून के तहत कार्यवाही अर्ध-आपराधिक प्रकृति की होती है और इसके परिणाम दंडात्मक नहीं होते हैं।
अदालत ने 3 जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा, “घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही का उद्देश्य पीड़िता को राहत प्रदान करना है, न कि आरोपी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना। जब तक सुरक्षा आदेश का उल्लंघन न हो, तब तक ऐसे मामलों में जमानती वारंट जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। ट्रायल कोर्ट द्वारा इस प्रकार का निर्देश पूरी तरह अनुचित और कानून के विपरीत है।”
SUPREME COURT: मामला स्थानांतरित करने का आदेश
इस प्रकरण में याचिकाकर्ता महिला ने अपनी सास द्वारा दायर घरेलू हिंसा के मामले को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से लुधियाना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी। उसने अपने निवेदन में बताया कि उसका स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति लुधियाना में केस की सुनवाई में सहूलियत प्रदान करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया और केस को लुधियाना की मजिस्ट्रेट अदालत में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि पक्षकार लुधियाना कोर्ट में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा का उपयोग कर सकते हैं, ताकि उनके लिए प्रक्रिया आसान हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डीवी अधिनियम के तहत जमानती वारंट जारी करना उस स्थिति में भी अनुचित है, जब आरोपी पक्ष अदालत में उपस्थित नहीं हो पाता। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के मामलों में, ट्रायल कोर्ट को पहले पक्षकारों को समझने और उनके समक्ष उचित प्रक्रिया अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी कहा कि “घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य महिला को संरक्षण और न्याय दिलाना है, न कि उसे और अधिक परेशान करना।”
SUPREME COURT: अन्य महत्वपूर्ण टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई की भी आलोचना की, जिसमें नाबालिग पीड़िता की पहचान उजागर की गई थी। न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा कानूनन अनिवार्य है और इसका उल्लंघन करना गैरकानूनी है। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने के लिए सावधानी बरते।
इस मामले में याचिकाकर्ता महिला का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता असावरी सोढ़ी और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड जेहरा खान ने किया। राज्य की ओर से लोक अभियोजक जी. सुधीर ने पक्ष रखा। न्यायालय ने निष्कर्ष में यह भी कहा कि डीवी अधिनियम के प्रावधानों को लागू करते समय संबंधित अधिकारियों और अदालतों को संवेदनशील और कानून के अनुरूप दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में जमानती वारंट जारी करने की प्रक्रिया को अनुचित ठहराता है और डीवी अधिनियम के तहत पीड़ितों के संरक्षण की भावना को मजबूती प्रदान करता है।
यह स्पष्ट करता है कि ऐसे मामलों में न्याय प्रक्रिया का उद्देश्य पीड़ित को राहत प्रदान करना है, न कि आरोपी पक्ष को दंडित करना। अदालत का यह दृष्टिकोण न्यायिक प्रक्रिया को अधिक संवेदनशील और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।