SUPREME COURT: टीएम कृष्णा को एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार के रूप में पेश करने से रोका

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By headlineslivenews.com

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SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक गायक टीएम कृष्णा को एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में खुद को पेश करने से रोक दिया। यह आदेश उस समय आया जब मद्रास संगीत अकादमी ने 15 दिसंबर को कृष्णा को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया था।

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इसके बाद, श्री एमएस सुब्बुलक्ष्मी के पोते वी श्रीनिवासन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्होंने कृष्णा को सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर पुरस्कार मिलने से रोकने की मांग की थी।

SUPREME COURT: न्यायालय का आदेश

न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करते हुए टीएम कृष्णा को पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में पेश करने पर प्रतिबंध लगाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस आदेश का उद्देश्य कृष्णा की गायन क्षमता पर सवाल उठाना नहीं था, बल्कि यह एक कानूनी कार्रवाई थी।

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न्यायालय ने कहा, “हम टीएम कृष्णा पर प्रतिबंध लगाते हैं और (निर्देश देते हैं) कि उन्हें संगीत कलानिधि एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए और उन्हें खुद को पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में पेश करने से भी रोका जाता है।”

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस आदेश को कृष्णा की गायन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह आदेश सिर्फ कानूनी पहलू पर आधारित था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि किसी व्यक्ति को किसी विशेष पुरस्कार के लिए प्रस्तुत करने से पहले सभी कानूनी पहलुओं का पालन किया जाए।

SUPREME COURT: श्रीनिवासन की आपत्ति और मामला

वी श्रीनिवासन, जो एमएस सुब्बुलक्ष्मी के पोते हैं, ने इस मुद्दे पर मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने तर्क दिया था कि उनका परिवार नहीं चाहता कि सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर किसी को भी पुरस्कार दिया जाए, क्योंकि यह उनके अनुसार गायिका की इच्छा के खिलाफ होगा।

श्रीनिवासन ने यह आरोप भी लगाया कि टीएम कृष्णा ने सोशल मीडिया पर एमएस सुब्बुलक्ष्मी के खिलाफ “घृणित, अपमानजनक और निंदनीय” टिप्पणियां की थीं, जो दिवंगत गायिका की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही थीं।

इस कारण, श्रीनिवासन ने मद्रास संगीत अकादमी से यह मांग की थी कि वे कृष्णा को इस पुरस्कार से सम्मानित न करें। उन्होंने यह भी कहा कि एमएस सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर कोई भी पुरस्कार देने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि यह गायिका की इच्छाओं के खिलाफ न हो।

मद्रास उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने पहले कृष्णा को इस पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर रोक लगाने के लिए निषेधाज्ञा जारी की थी। लेकिन उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस आदेश को 13 दिसंबर को खारिज कर दिया, जिसके बाद कृष्णा को यह पुरस्कार दिया गया। इस फैसले के बाद, श्रीनिवासन ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तत्काल सुनवाई का आदेश दिया और श्रीनिवासन की याचिका पर विचार करते हुए शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि टीएम कृष्णा को एमएस सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर कोई पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में पेश करने से रोका जाए।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन, जो श्रीनिवासन की ओर से पेश हुए थे, ने सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क दिया कि कृष्णा का यह व्यवहार न केवल सुब्बुलक्ष्मी की प्रतिष्ठा के खिलाफ है, बल्कि यह महिला विरोधी टिप्पणियों के रूप में भी देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कृष्णा को पुरस्कार दिया गया और इसे व्यापक रूप से प्रचारित भी किया गया, जबकि वह पहले ही दिवंगत गायिका के खिलाफ टिप्पणी कर चुके थे।

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मद्रास संगीत अकादमी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कोर्ट में तर्क दिया कि जब उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा जारी निषेधाज्ञा को खारिज किया, तब कृष्णा को यह पुरस्कार प्रदान किया गया था। उन्होंने कोर्ट को यह बताया कि इस मामले में अकादमी ने किसी भी गलत निर्णय का पालन नहीं किया और यह उनका कानूनी अधिकार था कि वे पुरस्कार प्रदान करें।

SUPREME COURT: निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इस बात की ओर इशारा करता है कि कानूनी विवादों के बीच संगीत और कला के क्षेत्र में प्रतिष्ठित पुरस्कारों की प्रतिष्ठा और पुरस्कार देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यायिक निरीक्षण महत्वपूर्ण है।

यह फैसला न केवल टीएम कृष्णा के खिलाफ एक कानूनी कदम है, बल्कि यह संगीत अकादमी और अन्य संस्थाओं के लिए भी एक संकेत है कि पुरस्कार देने के फैसले में किसी भी प्रकार की कानूनी बाधाओं का पालन किया जाना चाहिए।

अब, इस मामले की आगामी सुनवाई में यह देखना होगा कि क्या उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे कोई स्थायी आदेश देते हैं, या फिर यह स्थिति आगे किसी समझौते के तहत सुलझाई जाती है।

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