SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता पर विचार करते हुए धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण और नए मुकदमों पर रोक लगा दी है। यह आदेश देश भर में धार्मिक स्थलों के विवादों को लेकर दायर मुकदमों पर लागू होगा। अदालत ने स्पष्ट किया है कि 1991 के कानून का उद्देश्य 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों के चरित्र को संरक्षित करना है
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। अदालत ने कहा कि जब तक पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता पर निर्णय नहीं हो जाता, तब तक धार्मिक स्थलों के मौजूदा ढांचे पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता और न ही लंबित मुकदमों में कोई आदेश पारित किया जा सकता है।
APPLE App स्टोर अवॉर्ड: एपल ने ऐलान किया साल के सबसे बेहतरीन ऐप्स और गेम्स का 2024 !
गरेना फ्री फायर मैक्स: 13 दिसंबर 2024 के लिए ये हैं कोड्स, मिलेंगे कई शानदार रिवॉर्ड्स
यह अधिनियम 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों की स्थिति को बरकरार रखने का प्रयास करता है। इस कानून के अनुसार, स्वतंत्रता की तिथि पर मौजूद धार्मिक स्थलों के धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता। यह अधिनियम ऐसे सभी मुकदमों पर रोक लगाता है जो धार्मिक स्थलों के चरित्र को लेकर दायर किए गए हों।
SUPREME COURT: अयोध्या मामले में अधिनियम का अपवाद
अयोध्या का राम जन्मभूमि स्थल इस अधिनियम से छूट प्राप्त एकमात्र मामला है। 2019 में अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस अधिनियम के दायरे से बाहर था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में स्पष्ट किया था कि अधिनियम अन्य धार्मिक स्थलों पर लागू होगा और उनके संबंध में कोई विवाद नहीं उठाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल अदालतें किसी धार्मिक स्थल के सर्वेक्षण का आदेश नहीं दे सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, किसी भी निचली अदालत को इस पर निर्णय देने का अधिकार नहीं है।
इस आदेश का प्रभाव देशभर में विभिन्न मुकदमों पर पड़ेगा, जिनमें संभल की शाही जामा मस्जिद, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और अजमेर की दरगाह के संबंध में विवाद शामिल हैं। हिंदू संगठनों और व्यक्तियों ने दावा किया है कि ये मस्जिदें प्राचीन मंदिरों के ऊपर बनाई गई थीं। मुस्लिम पक्षकारों ने इन दावों का विरोध करते हुए पूजा स्थल अधिनियम का हवाला दिया है।
SUPREME COURT: याचिकाओं की स्थिति और अदालत का निर्देश
पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका भी शामिल है। उन्होंने दावा किया है कि यह अधिनियम हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों के कानूनी अधिकारों का हनन करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, अदालत ने याचिकाकर्ताओं को केंद्र के जवाब के बाद चार सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा है।
अदालत ने विभिन्न पक्षों के लिए नोडल वकील नियुक्त किए हैं। अधिवक्ता एजाज मकबूल को अधिनियम के पक्ष में वकालत करने वालों के लिए, अधिवक्ता कनु अग्रवाल को भारत संघ के लिए और अधिवक्ता विष्णु जैन को अधिनियम के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए नोडल वकील नियुक्त किया गया है।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि निचली अदालतें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अनदेखा नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पांच न्यायाधीशों की पीठ में अधिनियम के महत्व को स्थापित किया है, तो निचली अदालतें इसे चुनौती नहीं दे सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को लेकर जारी बहस में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जब तक यह मामला लंबित है, तब तक किसी भी धार्मिक स्थल के संबंध में कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। यह आदेश न केवल विवादों को सीमित करेगा बल्कि देश में धार्मिक स्थलों के वर्तमान ढांचे को संरक्षित रखने में भी सहायक होगा।