SUPREME COURT: मध्यस्थता में परेशान करने वाली पार्टी लागत वहन करेगी

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By headlineslivenews.com

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SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि कोई पक्ष कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए दूसरी पार्टी को अनावश्यक परेशान करता है, तो उसे मध्यस्थता की लागत वहन करनी होगी। अदालत ने यह निर्णय मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) और 11(12)(a) के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध किया था। यह याचिका एक शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट से संबंधित थी, जो याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों के बीच हुआ था।

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मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि कभी-कभी कुछ पक्ष सीमित न्यायिक हस्तक्षेप का अनुचित लाभ उठाते हैं और दूसरी पार्टी को समय और धन की बर्बादी करते हुए मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल होने के लिए बाध्य करते हैं।

यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पक्षकार स्पष्ट रूप से समय-सीमा से बाहर के दावे या ऐसे दावे करते हैं, जो पहले ही “समझौता और संतोष” के माध्यम से निपटा दिए गए हैं, या ऐसे मामलों में जब गैर-हस्ताक्षरकर्ता को मध्यस्थता में शामिल करने का प्रयास किया जाता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में, न्यायाधिकरण उन पक्षों को मध्यस्थता की लागत वहन करने का निर्देश दे सकता है, जिन्होंने इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया और दूसरी पार्टी को अनावश्यक परेशानी में डाला। अदालत के अनुसार, यह न्यायिक हस्तक्षेप की सीमितता और सभी पक्षों के हितों के बीच संतुलन बनाए रखने का एक उपाय है, ताकि ऐसे मामले में प्रभावित पक्ष को किसी अतिरिक्त बोझ का सामना न करना पड़े।

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SUPREME COURT: मामले का विवरण और न्यायालय का दृष्टिकोण

मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट विलास गिरी ने किया, जबकि प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व एओआर जैस्मीन दमकेवाला ने किया। इस विवाद का आधार एक शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट था, जिसमें याचिकाकर्ता को ASAP Fluids Pvt. Ltd. में 4,00,000 इक्विटी शेयर आवंटित किए गए थे। प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता की कंपनी में भागीदारी को मान्यता दी थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, प्रतिवादियों ने उसे शेयर सर्टिफिकेट जारी नहीं किए, जिससे वह एग्रीमेंट के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करने में असमर्थ रहा।

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को मध्यस्थता का नोटिस भेजा और उनसे या तो शेयर सर्टिफिकेट जारी करने या उनके समकक्ष राशि लौटाने का अनुरोध किया। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले इस आवेदन को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि चूंकि याचिकाकर्ता दुबई में रहता है, यह मामला अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का है। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की ताकि शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट के तहत दावों के निपटारे के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि धारा 11 के आवेदन के चरण में न्यायालय को केवल यह देखना चाहिए कि क्या मध्यस्थता समझौता मौजूद है – इसके अतिरिक्त किसी और पहलू पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा, “इस दृष्टिकोण से यह सुनिश्चित होता है कि जिन पक्षों ने अपने विवादों का निपटान मध्यस्थता के माध्यम से करने का इरादा किया था, उनके उस इरादे का सम्मान किया जाए।”

SUPREME COURT: न्यायालय की धारा 11(6) के तहत सीमित हस्तक्षेप पर टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 11(6) के तहत न्यायालय को केवल यह देखना चाहिए कि आवेदन समय-सीमा के भीतर दाखिल किया गया है या नहीं, और इस स्तर पर न्यायालय को दावे की समय-सीमा की गहन जांच करने की आवश्यकता नहीं है। यह जांच न्यायाधिकरण के निर्णय के लिए छोड़ दी जानी चाहिए।

पीठ ने यह भी कहा कि अदालत केवल तीन साल की सीमा का निर्धारण करने के लिए सीमित जांच कर सकती है, जिससे यह तय हो सके कि आवेदन समय पर दायर किया गया है। इसके आगे का विस्तृत साक्ष्य परीक्षण उचित नहीं होगा। यह निर्णय पूरी तरह से न्यायाधिकरण के विवेक पर निर्भर होना चाहिए।

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प्रतिवादियों ने अपने मुख्य तर्क में कहा कि याचिकाकर्ता के दावे स्पष्ट रूप से समय-सीमा से बाहर थे और इसलिए मध्यस्थता के लिए भेजने योग्य नहीं थे। अदालत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस स्तर पर यह न्यायालय का कार्य नहीं है कि वह साक्ष्य परीक्षण करे या यह जांचे कि दावे समय-सीमा के भीतर हैं या नहीं। यह निर्णय मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए।

SUPREME COURT: अदालत का निष्कर्ष और आदेश

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को मंजूरी दे दी और निर्णय दिया कि ऐसी स्थिति में, यदि किसी पक्ष द्वारा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है और दूसरी पार्टी को अनावश्यक रूप से परेशान किया गया है, तो मध्यस्थता की लागत उस पक्ष को वहन करनी होगी जिसने प्रक्रिया का दुरुपयोग किया।

मामला शीर्षक: असलम इस्माइल खान देशमुख बनाम ASAP Fluids Pvt. Ltd. & अन्य
न्यूट्रल संदर्भ: 2024 INSC 849
प्रतिनिधित्व:

  • याचिकाकर्ता: एओआर कुनाल चीमा; एडवोकेट विलास गिरी
  • प्रतिवादी: एओआर जैस्मीन दमकेवाला; एडवोकेट वैषाली शर्मा

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