SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मोतियाबिंद के एक मरीज के परिवार को 3.5 लाख रुपये का मुआवजा बहाल किया, जिसे एक नेत्र सर्जन की कथित मेडिकल लापरवाही के कारण अपनी दाहिनी आंख की पूरी दृष्टि गंवानी पड़ी। यह मुआवजा पहले राज्य उपभोक्ता आयोग ने दिया था, जिसे राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने खारिज कर दिया था।
SUPREME COURT: मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 1999 में हुई एक घटना से संबंधित है, जब अपीलकर्ता ने अपनी दाहिनी आंख की मोतियाबिंद सर्जरी करवाई थी। ऑपरेशन के बाद मरीज ने तेज दर्द, सिरदर्द, और आंख से चिपचिपे डिस्चार्ज की शिकायत की। उन्होंने कई बार संबंधित नेत्र चिकित्सक (प्रतिवादी) के पास जाकर अपनी समस्या बताई। लेकिन हर बार उन्हें यह आश्वासन दिया गया कि सर्जरी सफल रही है और वे जल्द ही ठीक हो जाएंगे।
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स्थिति बिगड़ने पर, अपीलकर्ता ने अन्य डॉक्टरों से परामर्श लिया। उन्हें यह पता चला कि उनकी आंख में संक्रमण (एंडोफ्थाल्माइटिस) हो गया है, जो मोतियाबिंद सर्जरी के बाद एक गंभीर स्थिति है। बाद में उनका इलाज एक सैन्य अस्पताल में किया गया, जहां उनकी आंख से लेंस को हटाना पड़ा। हालांकि, उनकी आंख की बाहरी संरचना को बनाए रखा गया, लेकिन दाहिनी आंख की दृष्टि पूरी तरह खत्म हो गई।
अपीलकर्ता ने इस मामले में जिला उपभोक्ता फोरम, पुणे में शिकायत दर्ज कराई और मुआवजे की मांग की। हालांकि, जिला फोरम ने उनकी शिकायत खारिज कर दी।
इसके बाद, उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। राज्य आयोग ने इस मामले में निर्णय लेते हुए कहा कि प्रतिवादी डॉक्टर ने पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में घोर लापरवाही बरती। आयोग ने अपीलकर्ता को 3.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
डॉक्टर ने इस फैसले के खिलाफ एनसीडीआरसी में पुनरीक्षण याचिका दायर की। एनसीडीआरसी ने राज्य आयोग के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि संक्रमण मरीज की ओर से पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में बरती गई लापरवाही के कारण हुआ है।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन
मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने इसे सुना।
अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी डॉक्टर ने संक्रमण का समय पर पता लगाने और उसे ठीक करने में विफलता दिखाई। पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में उचित और बुनियादी कौशल का उपयोग किया गया होता, तो सुधारात्मक कदम उठाए जा सकते थे। अदालत ने इसे डॉक्टर की घोर मेडिकल लापरवाही करार दिया।
न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य आयोग ने सही तरीके से पाया कि प्रतिवादी डॉक्टर ने अपनी लिखित दलीलों के समर्थन में कोई केस पेपर या प्रिस्क्रिप्शन प्रस्तुत नहीं किया। जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए, वे अपील के दौरान पहली बार जमा किए गए थे।
मेडिकल विशेषज्ञों ने यह राय दी कि मोतियाबिंद सर्जरी के बाद पस का रिसाव और लगातार दर्द संक्रमण के लक्षण होते हैं, जिन पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए था। अपीलकर्ता ने सर्जरी के बाद एक हफ्ते के अंदर पांच बार डॉक्टर से मुलाकात की और हर बार तेज दर्द, सिरदर्द और दृष्टि न आने की शिकायत की। बावजूद इसके डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि सब कुछ सामान्य है।
27 जनवरी 1999 को तीन अन्य डॉक्टरों ने अपीलकर्ता की जांच की और पाया कि वे एंडोफ्थाल्माइटिस से पीड़ित हैं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनकी आंख को गंभीर नुकसान पहुंच चुका था।
SUPREME COURT: अदालत का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द करते हुए कहा, “यह स्पष्ट है कि डॉक्टर ने समय पर उचित कदम नहीं उठाए और इससे मरीज की दृष्टि हमेशा के लिए चली गई। यह मेडिकल लापरवाही का एक स्पष्ट मामला है।” अदालत ने कहा कि राज्य आयोग ने इस मामले में सही फैसला दिया था।
अदालत ने प्रतिवादी को निर्देश दिया कि वह अपीलकर्ता को दो महीने के भीतर 3.5 लाख रुपये का मुआवजा अदा करे।
- मामला: भेरूलाल भीमाजी ओसवाल (मृत) बनाम मधुसूदन एन. कुम्भारे
- न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट
- फैसला: 2024
- न्यायाधीश: जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले
- प्रस्तुति: अपीलकर्ता की ओर से एओआर प्रतीक्षा शर्मा
SUPREME COURT: न्यायालय की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मेडिकल लापरवाही के मामलों में मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनता है। यह स्पष्ट करता है कि पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में लापरवाही गंभीर परिणाम ला सकती है, और इस तरह के मामलों में डॉक्टरों को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया जा सकता।