SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत उस स्थिति में भी लागू होता है, जब समीक्षा याचिका रजिस्ट्री में अपूर्ण या अधूरी स्थिति में पड़ी हो। यह निर्णय अगस्त 2022 में तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दी गई अनुमति के संदर्भ में दायर समीक्षा याचिका पर आया है। इस तीन-न्यायाधीश पीठ में मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे।
SUPREME COURT: क्या है लिस पेंडेंस का सिद्धांत?
लिस पेंडेंस का सिद्धांत, भारतीय संपत्ति कानून के तहत धारा 52 में परिभाषित है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी मुकदमे के लंबित रहते हुए संपत्ति का हस्तांतरण न किया जाए। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि एक प्रतिवादी संपत्ति को हस्तांतरित कर मुकदमे का उद्देश्य विफल न कर सके। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “लिस पेंडेंस का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय की प्रक्रिया को प्रभावित या विफल नहीं किया जाए।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिका जब समयसीमा के भीतर दायर की जाती है, तो लिस पेंडेंस का सिद्धांत “प्रस्तुति” के समय से ही लागू माना जाएगा, न कि तब से, जब न्यायालय द्वारा नोटिस जारी किया जाता है।
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SUPREME COURT: मामला और पृष्ठभूमि
इस मामले की पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत और सर्वोच्च न्यायालय नियम, 2013 के आदेश XLVII नियम 1 के अनुसार समीक्षा याचिका दायर की थी। इस याचिका के माध्यम से, याचिकाकर्ता ने 2022 के उस फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से संपत्ति हस्तांतरण का आदेश दिया था। याचिका में मुख्य तर्क यह था कि न्यायालय के आदेश में एक स्पष्ट त्रुटि थी, जो समीक्षा क्षेत्राधिकार के तहत संशोधन की मांग करती थी।
1994 में, इस संपत्ति का मामला तब शुरू हुआ जब संपत्ति के मूल मालिकों ने विक्रेताओं को एक विशेष भूमि बेचने के लिए एक समझौता किया और संतोषजनक भुगतान प्राप्त करने के बाद उस संपत्ति का कब्जा सौंप दिया। हालांकि, विक्रेताओं के पक्ष में एक विक्रय विलेख निष्पादित नहीं किया गया था।
इसके बाद, विक्रेताओं ने याचिकाकर्ता के साथ उस संपत्ति को बेचने का एक समझौता किया, जिसके तहत याचिकाकर्ता को संपत्ति प्राप्त करनी थी। 2000 में, याचिकाकर्ता ने विक्रेताओं को विधिक नोटिस जारी कर बकाया भुगतान लेने और विक्रय विलेख को निष्पादित करने का अनुरोध किया, परंतु विक्रेताओं ने उत्तर में कहा कि यह कार्य सीमाबद्धता के दायरे में नहीं आता है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस विवाद के समाधान हेतु एक मुकदमा दायर किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।
इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की गई, जो आंशिक रूप से याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दी गई। अंततः, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की गई।
SUPREME COURT: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और लिस पेंडेंस सिद्धांत की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लिस पेंडेंस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा कि धारा 52 के अंतर्गत, मामले के लंबित रहते संपत्ति का हस्तांतरण निषिद्ध है और तीसरे पक्ष को भी इस मुकदमे के परिणाम से बांधा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 52 के स्पष्टीकरण खंड का उल्लेख करते हुए कहा कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत मुकदमे के “प्रारंभ” के समय से लागू होता है और यह संपत्ति के हस्तांतरण को सीमित करता है।
साथ ही, अदालत ने स्पष्ट किया कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत उस स्थिति में भी लागू होता है, जब याचिका रजिस्ट्री में अपूर्ण स्थिति में हो, बशर्ते याचिका निर्धारित समयसीमा के भीतर दाखिल की गई हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई समीक्षा याचिका नियत समय सीमा के भीतर थी, इसलिए इस पर लिस पेंडेंस का सिद्धांत लागू होता है। अदालत ने यह भी कहा कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत उस समय से प्रभावी हो जाता है, जब याचिका दायर की जाती है और “प्रस्तुत” मानी जाती है, न कि उस समय से, जब न्यायालय द्वारा नोटिस जारी होता है।
इसका मतलब यह है कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत किसी भी ऐसे संपत्ति के हस्तांतरण को निषेधित करता है, जो मुकदमे के “प्रारंभ” के बाद होता है।
SUPREME COURT: न्यायालय की टिप्पणी और आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी पक्ष द्वारा संपत्ति का हस्तांतरण न्यायालय की कार्रवाई और निर्णय के दायरे में आ जाएगा और उस पर मुकदमे का प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि यदि मामला लंबित रहते संपत्ति का हस्तांतरण किया जाता है, तो वह हस्तांतरण विवाद के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने मामले में लिस पेंडेंस सिद्धांत को स्थापित करते हुए कहा कि समीक्षा याचिका को अनुमति दी जाती है और उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को पुनः स्थापित किया जाता है।
इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने लिस पेंडेंस सिद्धांत की अहमियत पर जोर देते हुए यह स्पष्ट किया कि संपत्ति के किसी भी हस्तांतरण के लिए न्यायालय का अंतिम निर्णय बाध्यकारी रहेगा, भले ही संपत्ति का हस्तांतरण मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान किया गया हो।