SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने वर्क-चार्ज कर्मचारियों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उन्हें प्रोफिशिएंसी स्टेप-अप योजना, 1988 के तहत लाभ देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि समान स्थिति वाले कर्मचारियों के साथ भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह फैसला सुनाया।
SUPREME COURT: मामले का संक्षिप्त विवरण
यह मामला वर्क-चार्ज कर्मचारियों की सेवाओं को प्रोफिशिएंसी स्टेप-अप योजना के तहत योग्य सेवा के रूप में गिनने से संबंधित था। अपीलकर्ता ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि उनकी वर्क-चार्ज सेवा को नियमित सेवा में शामिल किया जाना चाहिए ताकि वे इस योजना के तहत लाभ प्राप्त कर सकें।
अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि सरकार ने पहले ही समान स्थिति वाले अन्य कर्मचारियों को यह लाभ प्रदान किया है। इसके बावजूद, उन्हें इस योजना से वंचित रखना न केवल अनुचित है, बल्कि यह भेदभावपूर्ण भी है।
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अपीलकर्ता ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें सिंगल बेंच के निर्णय को सही ठहराया गया था। सिंगल बेंच ने अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने प्रोफिशिएंसी स्टेप-अप योजना और आश्वासन कैरियर प्रगति योजना, 1998 के तहत लाभ मांगा था।
SUPREME COURT: अपीलकर्ता की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि सरकार की 1 दिसंबर, 1988 की नीति स्पष्ट रूप से कहती है कि वर्क-चार्ज सेवा को पेंशन और अन्य लाभों के लिए योग्य सेवा माना जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों में समान स्थिति वाले कर्मचारियों को लाभ दिया गया है। इन फैसलों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वर्क-चार्ज सेवा को नियमित सेवा में शामिल करना चाहिए।
न्यायमूर्ति पामिडीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा, “समान स्थिति वाले कर्मचारियों को भिन्न तरीके से ट्रीट करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह भेदभावपूर्ण भी है। अपीलकर्ता उसी संस्थान का हिस्सा थे और उनके साथ उन कर्मचारियों जैसा व्यवहार होना चाहिए था, जिन्हें स्टेप-अप योजना के तहत लाभ दिया गया।”
SUPREME COURT: सरकार की नीति का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की 1 दिसंबर, 1988 की नीति का हवाला देते हुए कहा कि यह नीति स्पष्ट रूप से कहती है कि वर्क-चार्ज कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित सेवा के रूप में माना जाएगा और उन्हें पेंशन और अन्य लाभों के लिए योग्य सेवा के रूप में गिना जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस नीति के प्रभाव और उसके उद्देश्य पर पर्याप्त विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अपीलकर्ताओं की वर्क-चार्ज सेवा को योजना के तहत गिना जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ताओं की वर्क-चार्ज सेवा को प्रोफिशिएंसी स्टेप-अप योजना के तहत योग्य सेवा के रूप में गिना जाए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस फैसले से संबंधित सभी मौद्रिक लाभ अपीलकर्ताओं को छह महीने के भीतर दिए जाएं।
मामला: गुरमीत सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य
तटस्थ उद्धरण: 2024 INSC 872
प्रतिनिधित्व:
- अपीलकर्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया
- प्रतिवादी: अधिवक्ता ऑन रिकॉर्ड करन शर्मा
यह फैसला समान स्थिति वाले कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार की संवैधानिक आवश्यकता को दोहराता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल वर्क-चार्ज कर्मचारियों के लिए लाभदायक है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण मिसाल भी स्थापित करता है, जो समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करता है।