SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में यह माना कि संपत्ति के सीमा विवरण का स्पष्ट उल्लेख न होने के बावजूद, बिक्री का समझौता न तो अस्पष्ट माना जाएगा और न ही उसे लागू करने में कठिनाई होगी।
विशेष प्रदर्शन के दायर एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया गया था। इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने की।
खंडपीठ ने कहा कि संपत्ति के बारे में खसरा संख्या, क्षेत्रफल और स्थान जैसी विस्तृत जानकारी पर्याप्त होती है। भले ही संपत्ति के स्पष्ट भौगोलिक सीमांकन का उल्लेख समझौते में नहीं हो, इससे समझौते को अमान्य नहीं माना जा सकता। अदालत ने माना कि इन सूचनाओं के आधार पर संपत्ति की पहचान हो जाती है, और यदि सीमा विवरण स्पष्ट नहीं है, तब भी यह समझौते की वैधता पर सवाल नहीं उठाता।
SUPREME COURT: मामले का पृष्ठभूमि
यह मामला वर्ष 1990 से संबंधित है, जब सुषिला देवी नामक एक व्यक्ति ने अपने उत्तराधिकारियों के साथ अलग-अलग समझौतों के तहत संपत्ति का पूरा भुगतान लेकर बिक्री का समझौता किया। यह समझौता कृषि भूमि से जुड़ा था, और खरीददारों को संपत्ति का वास्तविक कब्जा भी सौंपा गया था। खरीदारों ने संपत्ति का कब्जा लेने के बाद भूमि का उपयोग करना शुरू कर दिया और संबंधित राजस्व का भुगतान भी करने लगे।
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हालांकि, समझौते के बाद सुषिला देवी के उत्तराधिकारियों ने संपत्ति का नामांतरण करवाने के बजाए इसके दस्तावेजों को देने से इनकार कर दिया और इसके स्थानांतरण के लिए राजस्व अधिकारियों के पास नामांतरण का आवेदन भी कर दिया। ऐसे में, खरीदारों ने निचली अदालत में विशेष प्रदर्शन के लिए एक मामला दायर किया और अदालत ने उनकी अपील को स्वीकार करते हुए सभी पक्षों के पक्ष में निर्णय सुनाया।
निचली अदालत ने कहा कि सभी खरीदारों का इस संपत्ति पर अधिकार है, क्योंकि उन्होंने निर्धारित भुगतान भी कर दिया है और संबंधित दस्तावेज़ भी उनके पास मौजूद हैं।
SUPREME COURT: उच्च न्यायालय का निर्णय और सुप्रीम कोर्ट में अपील
हालांकि, निचली अदालत के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि संपत्ति पर खरीदारों का कब्जा साबित नहीं होता, और इसलिए यह समझौता अमान्य है। उच्च न्यायालय के इस फैसले से असंतुष्ट होकर, खरीदारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया और माना कि खरीदारों का समझौते के समय से ही संपत्ति पर कब्जा है। अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि खरीदार लगातार भूमि का राजस्व अदा कर रहे हैं, जो यह साबित करता है कि संपत्ति पर उनका वास्तविक कब्जा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय का यह निर्णय, कि संपत्ति पर खरीदारों का अधिकार नहीं है, किसी ठोस आधार पर नहीं था और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता।
SUPREME COURT: न्यायालय की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि संपत्ति की सीमा का स्पष्ट विवरण न होने से कोई समझौता अमान्य नहीं हो जाता। न्यायालय ने कहा कि यदि संपत्ति की पहचान के लिए आवश्यक सूचनाएँ जैसे खसरा संख्या, क्षेत्रफल और स्थान उपलब्ध हैं, तो समझौते की वैधता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता।
अदालत ने यह भी माना कि खरीदार, जिन्होंने समझौते के अनुसार भुगतान किया और संपत्ति का कब्जा लिया, उनके अधिकारों को कानूनी रूप से सुरक्षित माना जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि संपत्ति के स्थानांतरण के समय यदि किसी प्रकार की धोखाधड़ी का आरोप लगाया जाता है, तो उस आरोप को साबित करने का दायित्व आरोप लगाने वाले पर ही होता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि संपत्ति का लेनदेन बेनामी है या उसमें धोखाधड़ी हुई है, तो इसे साबित करने का भार उसी पर है।
इसके बिना समझौते को अमान्य नहीं माना जा सकता, और दस्तावेजों की वैधता को भी चुनौती नहीं दी जा सकती।
SUPREME COURT: कोर्ट का अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलों और प्रस्तुत प्रमाणों को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत के आदेश को बहाल किया। अदालत ने माना कि खरीददारों का समझौते के तहत संपत्ति पर अधिकार है और उनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। इस निर्णय से यह सुनिश्चित हुआ कि संपत्ति के बारे में विवरण की कमी के बावजूद, यदि आवश्यक पहचान संबंधी जानकारी उपलब्ध है तो समझौते को अमान्य नहीं माना जाएगा।