SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राजेश तंदी को हत्या के आरोप से बरी कर दिया और ‘सुखराम बनाम राज्य’ (1989) के निर्णय पर जोर दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि यदि सभी सह-अभियुक्तों को बरी कर दिया गया हो, तो अकेले किसी अभियुक्त को हत्या के आरोप में दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना और न्यायमूर्ति नोंगेइकापम कोटिस्वर सिंह की पीठ ने दिया। इस निर्णय में कोर्ट ने यह माना कि जब सह-अभियुक्तों को बरी किया गया है, तो केवल तंदी को धारा 302 और धारा 34 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह आरोप सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर लगाया गया था।
SUPREME COURT: मामले का संक्षेप
यह मामला 7 मार्च 2015 का है, जब रायपुर, छत्तीसगढ़ में तंदी और उसके तीन सह-अभियुक्तों—राजेश क्षत्री, कुंदन कुमार शर्मा और त्रिनाथ बघेल—ने पुराने विवाद के चलते तराचंद नायक पर हमला किया। हमलावरों ने तलवार और लकड़ी से हमला कर नायक की हत्या कर दी। तंदी ने पीड़िता की पत्नी, पिंकी नायक को भी थप्पड़ मारा था।
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इस मामले में निचली अदालत ने चारों अभियुक्तों को हत्या का दोषी ठहराया और उन्हें उम्रभर की सजा दी। तंदी को इसके अलावा धारा 323 के तहत तीन महीने की कठोर सजा भी दी गई। लेकिन हाईकोर्ट ने तंदी को दोषी ठहराया और बाकी तीन सह-अभियुक्तों को पर्याप्त सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इसके बाद, तंदी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने तंदी की अपील पर विचार करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर सह-अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है, तो केवल तंदी को धारा 302 और 34 के तहत दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं हो सकता, क्योंकि आरोप का किसी एक अभियुक्त पर व्यक्तिगत रूप से कोई ठोस आधार नहीं था।
न्यायमूर्ति नागरथना और न्यायमूर्ति कोटिस्वर सिंह ने ‘सुखराम’ मामले में दिए गए सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि एक अभियुक्त को केवल सह-अभियुक्तों के दोषी होने के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब वे सह-अभियुक्त बरी हो चुके हों।
कोर्ट ने यह भी कहा कि तंदी के खिलाफ हत्या के आरोपों को स्थापित करने के लिए ठोस और स्वतंत्र साक्ष्य की कमी है। तंदी के खिलाफ किसी भी आरोप को स्वतंत्र रूप से नहीं लगाया गया था, यह केवल सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर धारा 302 के तहत आरोपित किया गया था। कोर्ट ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि अन्य सह-अभियुक्तों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे और उन्हें बरी कर दिया गया था।
SUPREME COURT: तंदी की अपील और कोर्ट की प्रतिक्रिया
तंदी ने अपनी अपील में यह तर्क दिया कि उसे केवल सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया, जबकि अन्य सह-अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। इस तर्क को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तंदी को हत्या के आरोप से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि सह-अभियुक्तों को बरी किया गया है, तो तंदी को अकेले दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि तंदी ने पहले ही नौ साल और छह महीने की सजा काट ली है और जुर्माना 500 रुपये भी अदा किया है। इसके आधार पर कोर्ट ने आदेश दिया कि तंदी को रिहा किया जा सकता है, बशर्ते जुर्माना का भुगतान किया गया हो। अगर जुर्माना का भुगतान नहीं किया गया है, तो रिहाई से पहले जुर्माना अदा करना होगा।
हाईकोर्ट ने तंदी की अपील को खारिज कर दिया था और उसे हत्या के आरोप में दोषी ठहराया था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने तीन अन्य सह-अभियुक्तों को बरी कर दिया था, क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, और कोर्ट ने सह-अभियुक्तों के बरी होने को देखते हुए तंदी की सजा को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि जब सह-अभियुक्तों को बरी कर दिया जाता है, तो एक अभियुक्त को केवल सह-अभियुक्तों के आरोपों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस निर्णय ने ‘सुखराम’ मामले के सिद्धांतों को फिर से पुष्टि की, जो यह बताते हैं कि धारा 34 के तहत आम इरादे के आधार पर दोषी ठहराए गए अभियुक्त के खिलाफ आरोप तब तक नहीं खड़े किए जा सकते, जब तक उसके खिलाफ स्वतंत्र रूप से कोई ठोस आरोप नहीं हो।
मामला शीर्षक: राजेश तंदी बनाम राज्य छत्तीसगढ़ [विशेष अनुमति अपील (Crl.) संख्या 7609/2024]
प्रतिनिधित्व:
याचिकाकर्ता: अधिवक्ता अभिषेक विकास, अभिजीत श्रीवास्तव (एओआर), अंशुमान श्रीवास्तव, ईशान शर्मा, ऋ राव
प्रतिवादी: महाधिवक्ता अवधेश कुमार सिंह, अधिवक्ता प्रेरणा ढल, पियूष यादव, आकाशिका सिंह, प्रशांत सिंह (एओआर)