SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड (AORs) के आचरण के लिए दिशानिर्देश बनाने का निर्णय लिया है, जिनकी जिम्मेदारी है कि वे सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सही तरीके से पेश करें। अदालत ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय AOR एसोसिएशन से सहयोग मांगा है और वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर को न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) के रूप में नियुक्त किया है ताकि नए दिशानिर्देश तैयार किए जा सकें।
यह मामला एक विशेष अनुमति याचिका से जुड़ा है, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आपराधिक मामले के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। इस याचिका में कुछ तथ्यों को छिपाने का आरोप लगा है, जिससे केस की जटिलता बढ़ गई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मुद्दे गंभीर हैं और AORs की भूमिका के प्रति सख्ती आवश्यक है। खंडपीठ में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल थे, जिन्होंने कहा, “AORs को एक महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। सुप्रीम कोर्ट में कोई भी वादी अपनी शिकायत का निवारण बिना AOR नियुक्त किए नहीं कर सकता है, इसलिए AORs के आचरण को उचित दिशानिर्देशों में बांधना जरूरी है।”
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SUPREME COURT: केस की पृष्ठभूमि और विशेष अनुमति याचिका का संदर्भ
यह मामला एक व्यक्ति की दोषसिद्धि से संबंधित है जिसे निचली अदालत ने 30 साल की सजा सुनाई थी। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस सजा को कम कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हुए स्पष्ट किया कि दोषी को बिना किसी रियायत के 30 साल की सजा भुगतनी होगी। जब इस मामले को लेकर विशेष अनुमति याचिका दायर की गई, तो उसमें यह तथ्य छुपाया गया कि दोषी को 30 साल की सजा सुनाई गई थी। इस तथ्य को छुपाने के कारण कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई और इसे एक “गंभीर और भ्रामक जानकारी” करार दिया।
अदालत ने AOR जयदीप पाटी को इस जानकारी के छुपाने के लिए नोटिस जारी किया और हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। 30 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाटी के हलफनामे की सामग्री को “चौंकाने वाला” करार दिया। अदालत ने इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा को भी नोटिस जारी किया और पाटी के हलफनामे की सामग्री पर स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया।
SUPREME COURT: AORs के आचरण में बार-बार की जा रही गलतियां और सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने हाल के समय में कम से कम आधा दर्जन मामलों में ऐसे “झूठे बयान” देखे हैं, जो समय से पूर्व रिहाई की राहत के लिए दायर याचिकाओं में किए गए थे। इनमें एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड के आचरण में कई गलतियाँ पाई गई हैं। इस संदर्भ में अदालत ने सुप्रीम कोर्ट AOR एसोसिएशन के अध्यक्ष से इस मामले में सहायता करने का अनुरोध किया ताकि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
इस केस में वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर को न्यायमित्र नियुक्त किया गया ताकि अदालत और सुप्रीम कोर्ट AOR एसोसिएशन के बीच समन्वय स्थापित हो सके। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि AOR एसोसिएशन के पदाधिकारी न्यायमित्र के साथ संवाद करें ताकि नए दिशानिर्देश तैयार किए जा सकें और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
SUPREME COURT: वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा और ऋषि मल्होत्रा के बीच हलफनामा विवाद
वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा का पक्ष रखा और अदालत को यह आश्वासन दिया कि एक “बेहतर हलफनामा” दायर किया जाएगा। अदालत ने उनके बयान को रिकॉर्ड में लिया। कोर्ट ने AORs के आचरण पर चिंता जताते हुए कहा कि इस मामले में AOR की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है, और सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश IV के नियम 10 की व्याख्या भी की, जिसमें कहा गया है कि बिना किसी अन्य भागीदारी के केवल नाम का उपयोग करना AOR के रूप में अनुचित आचरण माना जाएगा।
अदालत ने निर्देश दिया कि AOR एसोसिएशन के पदाधिकारी और न्यायमित्र संवाद कर सहमति से दिशानिर्देश तैयार करें ताकि AORs के आचरण में सुधार लाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर 2024 को होगी।