Supreme Court Ruling: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि संपत्ति के शीर्षक दस्तावेज (टाइटल डीड) जमा करके बनाया गया कानूनी बंधक, अपंजीकृत बिक्री समझौते के आधार पर बने समतामूलक (न्यायसंगत) बंधक से अधिक प्रभावी होगा।
कोर्ट ने अपने निर्णय में माना कि बिक्री का एक अपंजीकृत समझौता संपत्ति पर स्वामित्व अधिकार प्रदान नहीं करता, जैसा कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 में स्पष्ट किया गया है। इस मामले में अदालत ने सूरज लैंप इंडस्ट्रीज और शकील अहमद बनाम सैयद अखलाक हुसैन के फैसलों का हवाला दिया, जो इसी कानूनी सिद्धांत को मजबूत करते हैं।
Supreme Court Ruling: कॉसमॉस बैंक द्वारा दिया गया ऋण
यह मामला कॉसमॉस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (अपीलकर्ता) और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (प्रतिवादी) के बीच बंधक विवाद से संबंधित था। सेंट्रल बैंक ने 1989 में एक फ्लैट के बिक्री समझौते के आधार पर ऋण प्रदान किया था, जबकि कॉसमॉस बैंक ने 1998 में उसी फ्लैट के स्वामित्व प्रमाणपत्र (शेयर सर्टिफिकेट) के आधार पर ऋण दिया था।
मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि गिरवी रखी गई संपत्ति पर प्राथमिक अधिकार किस बैंक का होगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
प्रारंभ में, ऋण वसूली ट्रिब्यूनल (डीआरटी) और फिर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सेंट्रल बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि टाइटल डीड जमा करने से बने कानूनी बंधक को समतामूलक बंधक पर वरीयता प्राप्त होगी। चूंकि कॉसमॉस बैंक ने फ्लैट के स्वामित्व से जुड़े आधिकारिक दस्तावेज जमा कराकर ऋण दिया था, यह एक कानूनी बंधक के रूप में मान्य होगा।
इसके विपरीत, सेंट्रल बैंक द्वारा अपंजीकृत बिक्री समझौते के आधार पर दिया गया ऋण न्यायसंगत बंधक की श्रेणी में आएगा, जिसे कानूनी बंधक के समक्ष मान्यता नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 (ई) और धारा 78 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि समतामूलक बंधक केवल व्यक्तिगत स्तर पर प्रभावी होता है और यह तीसरे पक्ष को बाध्य नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा कि यदि बंधककर्ता की लापरवाही के कारण किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति के आधार पर ऋण देने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो पहले बनाए गए न्यायसंगत बंधक को बाद में बनाए गए कानूनी बंधक के अधीन माना जाएगा।
इस मामले में, चूंकि सेंट्रल बैंक ने अपंजीकृत बिक्री समझौते के आधार पर ऋण दिया था, और कोई सार्वजनिक सूचना जारी नहीं की गई थी, इसलिए कॉसमॉस बैंक द्वारा बनाए गए कानूनी बंधक को प्राथमिकता दी गई।
कानूनी और न्यायसंगत बंधक का अंतर
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भारत में टाइटल डीड जमा करके बनाया गया बंधक एक कानूनी बंधक होता है, जो न्यायसंगत बंधक पर वरीयता रखता है। अदालत ने यह भी कहा कि एक न्यायसंगत बंधक केवल संबंधित पक्षों के लिए प्रभावी होता है, जबकि कानूनी बंधक संपत्ति के वास्तविक अधिकार को नियंत्रित करता है।
इस निर्णय के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने कॉसमॉस बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे संपत्ति पर प्राथमिक अधिकार देने का निर्देश दिया।
केस : कॉसमॉस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और अन्य
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