TRAI और RCOM के बीच विवाद: हाल ही में, राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें उसने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की याचिका को खारिज कर दिया।
TRAI ने दिवालिया हो चुकी दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCOM) के खिलाफ एक याचिका दायर की थी, जिसमें उसने RCOM के समाधान पेशेवर से 85.10 लाख रुपये के वैधानिक बकाये के भुगतान की मांग की थी। NCLAT ने TRAI की याचिका को खारिज करते हुए इसे स्पष्ट किया कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) का प्रभाव TRAI अधिनियम से कहीं अधिक है। इसके साथ ही, न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि IBC की धारा 238 के तहत किसी अन्य कानून का प्रभाव सीमित होता है और IBC की प्राथमिकता होती है।
TRAI और RCOM के बीच विवाद: NCLAT का अहम फैसला IBC को अधिक प्रभावी माना गया
TRAI और RCOM के बीच विवाद: TRAI और RCOM के बीच विवाद: NCLAT की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में अपने विचार व्यक्त किए। पीठ ने कहा कि TRAI का यह तर्क कि उसका अधिनियम विशेष कानून है और IBC पर प्रभावी होगा, स्वीकार्य नहीं है। उच्चतम न्यायालय पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि IBC की धारा 238 का कोई अन्य कानून, चाहे वह किसी अन्य अधिनियम से संबंधित हो, उससे अधिक प्रभावी नहीं हो सकता। यह निर्णय इस लिहाज से अहम है कि अब से पहले TRAI की ओर से किए गए कई प्रयासों को NCLAT ने अस्वीकार किया है।
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RCOM की दिवाला प्रक्रिया और TRAI की दखलअंदाजी
RCOM, जो कि भारत की एक प्रमुख दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी थी, ने 2018 में अपनी दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत की थी। इसके बाद से कंपनी का कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) चल रहा है। इस दौरान TRAI ने विभिन्न मामलों में RCOM के समाधान पेशेवर से विभिन्न भुगतान की मांग की थी, जिनमें प्रमुख था 85.10 लाख रुपये का वैधानिक बकाया। TRAI ने इसे एक अत्यावश्यक मामला मानते हुए NCLAT में याचिका दायर की थी, लेकिन न्यायाधिकरण ने TRAI के इस कदम को खारिज कर दिया।
NCLAT का यह फैसला, आईबीसी के तहत मामलों की प्राथमिकता और दिवालिया प्रक्रियाओं में किसी भी अन्य कानून की सीमा को स्पष्ट करता है। इस फैसले के बाद, TRAI के लिए यह समझना होगा कि उसके पास केवल एक नियामक अधिकार है, जबकि दिवालिया प्रक्रिया की गहरी और मजबूत पकड़ है, जिसे प्राथमिकता दी जाएगी।
TRAI और RCOM मामले में जांच की दिशा
यह मामला TRAI और RCOM के बीच बढ़ते विवाद का हिस्सा है। TRAI, जो एक प्रमुख नियामक निकाय है, ने कई बार विभिन्न दूरसंचार कंपनियों के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। लेकिन जब कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो IBC की प्रक्रिया में वह सभी अन्य पहलू प्राथमिकता पाते हैं, जिन्हें कानून के तहत निर्णय लिया जाता है। TRAI का अधिकार केवल दूरसंचार क्षेत्र के नियमों तक ही सीमित है, जबकि IBC की प्रक्रिया के तहत पूरे वित्तीय मामलों का समाधान किया जाता है।
यह मामला इस बात का संकेत भी है कि अगर किसी कंपनी की दिवालिया प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो अन्य कानूनी प्रक्रियाओं को सीमित कर दिया जाता है और प्राथमिकता IBC को दी जाती है। TRAI का इस प्रक्रिया में दखल देने का प्रयास असफल रहा, क्योंकि अदालत ने यह स्पष्ट किया कि IBC की शक्तियों के समक्ष अन्य कानूनी दावों की स्थिति सीमित है।
RCOM के समाधान की प्रक्रिया: NCLAT के फैसले का असर
अब NCLAT के इस फैसले के बाद RCOM के समाधान पेशेवर को अपनी प्रक्रिया में और अधिक स्वतंत्रता मिल सकती है। हालांकि, यह फैसला सिर्फ TRAI के मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे यह भी संकेत मिलता है कि अन्य नियामक प्राधिकरणों को भी यह समझना होगा कि दिवालिया प्रक्रिया में उनका दखल बहुत सीमित होता है। RCOM के मामले में अब यह देखना होगा कि इस फैसले के बाद समाधान प्रक्रिया में और कौन से बदलाव आते हैं और क्या अन्य बकायों के भुगतान को लेकर कोई नया विवाद उत्पन्न होता है।
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इस फैसले से यह साफ हो जाता है कि IBC की प्रक्रिया के तहत किसी भी अन्य कानून का प्रभाव सीमित किया जाता है। अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या अन्य नियामक प्राधिकरण और नियामक संस्थाएं इस फैसले को देखते हुए अपने अधिकारों को सीमित करने का कदम उठाएंगे, और क्या इससे भविष्य में अन्य कंपनियों के दिवालिया मामलों में कोई बड़ा बदलाव आएगा।
न्यायाधिकरण का दृष्टिकोण: न्यायिक प्रक्रिया और IBC की प्राथमिकता
NCLAT ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत जो भी मामलों का समाधान होता है, उसे प्राथमिकता दी जाएगी, और अगर किसी अन्य कानून की प्रक्रिया से उसका टकराव होता है, तो उस अन्य कानून को वरीयता नहीं दी जा सकती। इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि दिवालिया मामलों में IBC की प्रक्रिया के तहत निर्णय सर्वोत्तम माना जाएगा और इसमें किसी अन्य कानून की दखलअंदाजी को नकारा जाएगा।
इस पूरे मामले में NCLAT का निर्णय स्पष्ट करता है कि भारत में दिवालिया मामलों में IBC का महत्व कितना अधिक है और नियामक प्राधिकरणों को इसमें हस्तक्षेप की सीमाओं का ध्यान रखना होगा।