UAPA CASE: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पूर्व अधिकारी रोमेश कुमार को जमानत दे दी, जिन्हें मार्च 2021 में हंदवाड़ा नार्को-टेरर केस में गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में कुमार पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) में प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए सीमा पार से नशीली दवाओं की तस्करी से कमाए गए पैसे को लेने का आरोप लगाया गया था।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने ट्रायल में हो रही देरी और सबूतों की कमजोर स्थिति को देखते हुए उन्हें जमानत दी। कोर्ट ने पाया कि अब तक अभियोजन पक्ष के 361 गवाहों में से केवल 6 से ही पूछताछ हो पाई है, जिससे स्पष्ट होता है कि मुकदमा जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है।
UAPA CASE: आरोपी को फंसाने का “अजीब तरीका”
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से उस अजीब तरीके पर सवाल उठाया, जिसमें आरोपी की पहचान परेड (TIP) कराने के बजाय गवाहों से उसकी तस्वीरों की पहचान कराई गई। यह प्रक्रिया आमतौर पर संदिग्ध होती है क्योंकि फोटो दिखाकर पहचान कराना, पारंपरिक तरीके की तुलना में कम विश्वसनीय होता है।
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कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि कुमार का कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है और उनके खिलाफ प्रत्यक्ष साक्ष्य भी कमजोर हैं। इसी आधार पर उन्हें सख्त शर्तों के साथ जमानत दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कुमार को जमानत देते समय कुछ कड़े नियम लागू किए:
- पासपोर्ट जमा कराना होगा, ताकि वे विदेश न जा सकें।
- हर सुनवाई में ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहना होगा।
- मुकदमे में तेजी लाने के लिए सहयोग करना होगा।
- यदि वे मुकदमे में किसी भी तरह की देरी का कारण बनते हैं, तो NIA को उनकी जमानत रद्द कराने के लिए आवेदन करने का अधिकार होगा।
UAPA CASE: NIA द्वारा लगाए गए आरोप
मार्च 2021 में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने रोमेश कुमार को इस आरोप में गिरफ्तार किया था कि उनका सीमा पार से नशीली दवाओं की तस्करी करने वाले आतंकी संगठनों से संबंध था। जब जम्मू-कश्मीर में उनकी कृषि भूमि से कथित रूप से 91 लाख रुपये की नकदी बरामद हुई, तो उन पर आरोप लगे कि यह धन नशीली दवाओं की तस्करी से जुड़ा हुआ था।
अगस्त 2021 में, NIA ने अपने आरोपपत्र में कुमार को चौथा आरोपी बनाया और उन पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS एक्ट) और गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत मुकदमा दर्ज किया।
NIA का दावा है कि कुमार, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (HM) जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकी गतिविधियों के लिए धन जुटाने की एक साजिश का हिस्सा थे।
मई 2024 में, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने कुमार की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट का मानना था कि उस समय यह कहना संभव नहीं था कि कुमार मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं थे। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि कुमार और पाकिस्तान में मौजूद लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों के बीच कोई सीधा संबंध साबित नहीं हुआ था।
इसके बाद, कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसके बाद 7 फरवरी को उन्हें राहत मिल गई।
UAPA CASE: सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने NIA की जांच प्रक्रिया पर कई सवाल उठाए:
- पहचान परेड नहीं कराई गई –
- सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई कि गवाहों से आरोपी की फोटो दिखाकर पहचान कराई गई, जबकि कानूनी रूप से पहचान परेड (TIP) कराना अधिक विश्वसनीय माना जाता है।
- यह प्रक्रिया कानूनी मानकों पर खरी नहीं उतरती और अदालत को इस पर गंभीर संदेह है।
- कोई ठोस सबूत नहीं मिला –
- कोर्ट ने कहा कि आज तक कोई निर्णायक साक्ष्य नहीं मिला है, जो यह साबित कर सके कि कुमार की ज़मीन से मिली नकदी वास्तव में नशीली दवाओं के व्यापार से अर्जित की गई थी।
- गवाहों में से एक (अनुमोदक) ने तो यह भी कहा कि उसे नहीं पता कि कुमार को इस मामले में आरोपी क्यों बनाया गया।
- सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला –
- अदालत ने 2021 के “यूनियन ऑफ इंडिया बनाम केए नजीब” केस में दिए गए कानूनी सिद्धांतों का हवाला देते हुए जमानत दी।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणियों को मामले के अंतिम निर्णय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
इस केस में कुमार का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत और अधिवक्ताओं की एक टीम ने किया। वहीं, यूनियन ऑफ इंडिया (NIA) की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे और अन्य सरकारी वकीलों ने पक्ष रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने रोमेश कुमार को जमानत देते समय जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। पहचान परेड की जगह फोटो दिखाकर आरोपी को फंसाना, NIA द्वारा कोई ठोस साक्ष्य न पेश कर पाना, और ट्रायल में अत्यधिक देरी – ये सभी कारक उनकी जमानत का आधार बने।
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी जमानत का यह अर्थ नहीं है कि वे निर्दोष साबित हो गए हैं। यदि ट्रायल के दौरान उनके खिलाफ मजबूत सबूत सामने आते हैं, तो उनकी जमानत रद्द भी की जा सकती है।
अब सभी की नजर इस मामले की आगे की सुनवाई पर रहेगी, जहां यह तय होगा कि रोमेश कुमार पर लगे आरोप सही हैं या वे गलत तरीके से फंसाए गए थे।