CSI चर्च विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने धर्मराज रसालम के मॉडरेटर चुनाव को अवैध करार दिया 2025 !

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By headlineslivenews.com

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CSI चर्च विवाद: नई दिल्ली- चर्च ऑफ साउथ इंडिया (CSI) में लंबे समय से चल रहे प्रशासनिक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है।

CSI चर्च विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने धर्मराज रसालम के मॉडरेटर चुनाव को अवैध करार दिया 2025 !
CSI चर्च विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने धर्मराज रसालम के मॉडरेटर चुनाव को अवैध करार दिया 2025 !

शुक्रवार, 2 मई 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने बिशप धर्मराज रसालम के CSI के मॉडरेटर के रूप में 2020 में हुए चुनाव को अवैध करार देते हुए चुनाव प्रक्रिया को रद्द कर दिया। यह फैसला न केवल सीएसआई चर्च के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि इससे चर्च के प्रशासन और संचालन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धर्मसभा (Synod) द्वारा 07 मार्च 2022 को बुलाई गई विशेष बैठक की वैधता को प्रथम दृष्टया सही माना गया है। इस बैठक में सीएसआई संविधान में बिशप की आयु और निर्वाचित सदस्यों के कार्यकाल से जुड़े संशोधनों को मंजूरी दी गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक मद्रास हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता, तब तक इन संशोधनों को प्रभावी नहीं बनाया जाएगा।

CSI चर्च विवाद: मॉडरेटर का चुनाव क्यों हुआ अवैध घोषित?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CSI के संविधान के अनुसार, मॉडरेटर पद के उम्मीदवार को आगामी कार्यकाल के दौरान सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए। धर्मसभा प्रत्येक तीन वर्ष में मिलती है, अतः नामांकन के समय उम्मीदवार के पास अनिवार्य रूप से कम से कम तीन साल की सेवा शेष होनी चाहिए। धर्मराज रसालम का चुनाव 11 अक्टूबर 2020 को हुआ था, जबकि वह मई 2023 में 67 वर्ष की आयु पूरी कर चुके थे। इस आधार पर न्यायालय ने माना कि उनका नामांकन नियमों के अनुरूप नहीं था और इसलिए चुनाव प्रक्रिया वैध नहीं मानी जा सकती।

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संविधान संशोधन और वैधता

धर्मसभा द्वारा मार्च 2022 में आयोजित बैठक में सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को 67 से बढ़ाकर 70 वर्ष कर दिया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस संशोधन को संविधान के अनुसार विधिवत पुष्टि नहीं मिली है। इसलिए यह संशोधन प्रभावी नहीं माना जा सकता और धर्मराज रसालम की उम्र सीमा का उल्लंघन करते हुए हुआ चुनाव असंवैधानिक हो गया।

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अन्य पदों के चुनाव वैध घोषित

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उप-मॉडरेटर, महासचिव और कोषाध्यक्ष जैसे अन्य पदाधिकारियों का चुनाव वैध रहेगा, हालांकि यह निर्णय लंबित मुकदमों के अंतिम निर्णय के अधीन होगा। अदालत ने कहा कि इन पदाधिकारियों ने बहुमत के साथ चुनाव जीते हैं और इसलिए प्रथम दृष्टया हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

प्रशासकों की नियुक्ति और भविष्य की प्रक्रिया

चूंकि मॉडरेटर का चुनाव रद्द कर दिया गया है, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस निर्देश को बरकरार रखा जिसमें चुनाव संचालन के लिए दो सेवानिवृत्त हाईकोर्ट न्यायाधीशों को प्रशासक नियुक्त किया गया था। अदालत ने कहा कि 4.5 मिलियन CSI सदस्यों के हित में यह जरूरी है कि संस्था बिना मॉडरेटर के कार्य न करे और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जाएं।

यह भी देखा गया कि 2023-2026 के लिए चुनावों से पहले संविधान में संशोधनों को तेजी से पारित किया गया, जिससे यह संकेत मिलता है कि प्रक्रियाओं को दरकिनार कर जल्दबाजी में निर्णय लिए गए। यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक बताया गया।

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मूल मुकदमा और उच्च न्यायालय का रुख

इस मामले की शुरुआत मद्रास हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ के उस आदेश से हुई, जिसमें कहा गया था कि सीएसआई के संविधान में किए गए संशोधन उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किए गए थे। साथ ही, मॉडरेटर के चुनाव को भी त्रुटिपूर्ण करार दिया गया था। हालांकि, एकल पीठ ने अन्य पदों के चुनाव में हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि वहां उम्मीदवारों को बहुमत प्राप्त था। इसके खिलाफ प्रतिवादियों ने अपील दायर कर उच्च न्यायालय की खंडपीठ का रुख किया था।

खंडपीठ ने माना कि एकल न्यायाधीश ने चुनावी अनियमितताओं और निर्वाचक मंडल की वैधता पर पर्याप्त विचार नहीं किया था। उनका कहना था कि यदि निर्वाचक मंडल दोषपूर्ण पाया जाता है तो उस पर आधारित संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया अमान्य हो जाती है। खंडपीठ ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि चुनाव कानूनों में निर्धारित प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन आवश्यक है।

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सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया:

  1. एकल न्यायाधीश के 05 सितंबर 2023 के सामान्य आदेश और आदेश 1 नियम 8 सीपीसी से संबंधित निष्कर्षों को रद्द किया जाता है।
  2. खंडपीठ के 12 अप्रैल 2024 और 27 फरवरी 2024 के आदेशों को आंशिक रूप से रद्द किया जाता है।
  3. 07 मार्च 2022 को हुई धर्मसभा की बैठक में पारित संशोधनों को मद्रास हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों के अंतिम निपटारे तक प्रभावी नहीं किया जाएगा।
  4. चुनाव संचालन के लिए दो सेवानिवृत्त हाईकोर्ट न्यायाधीशों को प्रशासक नियुक्त करने का आदेश यथावत रहेगा।
  5. सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष प्रथम दृष्टया प्रकृति के हैं और लंबित मुकदमों के अंतिम निर्णय को प्रभावित नहीं करेंगे।

इस ऐतिहासिक फैसले से चर्च ऑफ साउथ इंडिया के प्रशासनिक कार्यों में एक नई पारदर्शिता की उम्मीद की जा रही है और यह निर्णय भविष्य में धार्मिक संस्थाओं में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के पालन के लिए नज़ीर बन सकता है।

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