उपभोक्ता अधिकारों की जीत: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में आईडीबीआई बैंक को आदेश दिया है कि वह साइबर अपराध के एक पीड़ित को उसके खाते से चोरी हुए पूरे 58 लाख रुपये ब्याज सहित लौटाए।
यह फैसला डिजिटल युग में उपभोक्ता सुरक्षा को लेकर एक मजबूत संदेश देता है और साइबर धोखाधड़ी से निपटने के लिए एक नजीर पेश करता है।
उपभोक्ता अधिकारों की जीत: आईडीबीआई बैंक में हुई बड़ी डिजिटल धोखाधड़ी
एक पीड़ित उपभोक्ता ने अदालत में याचिका दायर कर बताया कि उसके आईडीबीआई बैंक खाते से अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन के माध्यम से 58 लाख रुपये निकाल लिए गए थे। यह एक स्पष्ट मामला था जिसमें व्यक्ति की सहमति या भागीदारी के बिना धोखाधड़ी की गई थी। पीड़ित ने बैंक से संपर्क किया, लेकिन उसे राहत नहीं मिली। इस पर उसने राजस्थान हाईकोर्ट का रुख किया।
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डिजिटल फ्रॉड में ग्राहकों की सुरक्षा को मिला न्यायिक बल
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने कहा कि यह मामला भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 6 जुलाई 2017 को जारी किए गए सर्कुलर के दायरे में आता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि यदि कोई ग्राहक अनधिकृत लेनदेन की शिकायत तीन कार्यदिवस के भीतर करता है, तो ग्राहक की “शून्य देयता” मानी जाएगी। इसका मतलब है कि ग्राहक को उस नुकसान की भरपाई नहीं करनी होगी और बैंक को ही वह राशि लौटानी होगी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मामले में पीड़ित ने समय पर शिकायत दर्ज की थी, इसलिए उसे आरबीआई के दिशा-निर्देशों के तहत संरक्षण मिलना चाहिए। अदालत ने बैंक को आदेश दिया कि वह ब्याज सहित 58 लाख रुपये पीड़ित को लौटाए।
डिजिटल युग में बढ़ते साइबर अपराध
जस्टिस ढांड ने डिजिटल फ्रॉड की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि तकनीकी विकास के इस दौर में जहां सब कुछ डिजिटल हो रहा है, वहां डिजिटल घोटाले एक बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। ऐसे अपराध हमारी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालते हैं और इनसे निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाने की जरूरत है।
सोशल मीडिया और डेटा बिक्री पर चिंता
कोर्ट ने यह भी बताया कि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि कुछ सोशल मीडिया कंपनियां और डिजिटल प्लेटफॉर्म यूज़र्स का निजी डेटा बेच रहे हैं। ऐसे डेटा का दुरुपयोग करके अपराधी निर्दोष नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। कोर्ट ने इस मुद्दे पर गहरी नाराजगी जताई और सरकार को निर्देश दिया कि जो कंपनियां या व्यक्ति व्यक्तिगत डेटा बेचते हैं, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
न्यायालय ने कहा:
“कंपनियों सहित उन सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, जो प्रत्येक व्यक्ति का डेटा बेच रहे हैं, जिसका आरोपी व्यक्ति विभिन्न तरीकों से दुरुपयोग कर रहे हैं और साइबर अपराध कर रहे हैं।”
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जागरूकता अभियान की आवश्यकता
कोर्ट ने यह भी कहा कि लोगों को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया, टीवी और एफएम रेडियो के माध्यम से निरंतर जागरूकता अभियान चलाए जाएं। जनता तक हर दिन, हर घंटे साइबर सुरक्षा की जानकारी पहुंचाई जाए ताकि वे फ्रॉड से बच सकें।
आदेश की प्रति वित्त विभाग और आरबीआई को भेजी जाएगी
न्यायालय ने आदेश दिया कि इस फैसले की एक प्रति भारत सरकार के वित्त विभाग और भारतीय रिजर्व बैंक को भेजी जाए, ताकि वे इस दिशा में आवश्यक कदम उठा सकें और ग्राहकों की सुरक्षा के लिए सख्त नीतियां बनाई जा सकें।
यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
- यह फैसला स्पष्ट करता है कि बैंकों की जिम्मेदारी है कि वे ग्राहकों के पैसे की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
- आरबीआई के नियमों की वैधता और प्रभावशीलता की पुष्टि करता है।
- सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही और डेटा सुरक्षा की आवश्यकता पर बल देता है।
- साइबर अपराध के पीड़ितों के लिए यह एक मिसाल है कि वे कानूनी तरीके से अपना पैसा वापस पा सकते हैं।
डिजिटल सुरक्षा में लापरवाही नहीं चलेगी
राजस्थान हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल एक पीड़ित को न्याय दिलाने वाला फैसला है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी और दिशा-निर्देश भी है। यह केस दर्शाता है कि डिजिटल युग में उपभोक्ता सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, और बैंकों व सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अगर इस दिशा में सरकार और समाज मिलकर काम करें, तो साइबर अपराधों पर काबू पाया जा सकता है।