RAJASTHAN HC,: राजस्थान हाईकोर्ट ने चुनाव न्यायाधिकरण के उस निर्णय का समर्थन किया है, जिसमें उसने 72 वर्षीय बीमार महिला लूणी देवी की गवाही कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से उनके घर पर दर्ज करने की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट में यह याचिका उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि चुनाव न्यायाधिकरण का यह निर्णय राजस्थान पंचायत राज (चुनाव) नियम, 1994 के नियम 85 का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति कुलदीप माथुर की अध्यक्षता वाली एकलपीठ ने कहा, “चुनाव न्यायाधिकरण के पास यह विवेकाधिकार है कि वह मामले की परिस्थितियों और न्यायहित को ध्यान में रखते हुए गवाही दर्ज करने का तरीका चुने। ऐसे में साक्षी लूणी देवी की गवाही कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से उनके घर पर दर्ज कराने का निर्णय अवैध या मनमाना नहीं कहा जा सकता।” अदालत ने इसे उचित विवेकाधिकार का उपयोग मानते हुए याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया।
RAJASTHAN HC: मामला क्या है?
यह मामला राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994 के नियमों के उल्लंघन से संबंधित है। अक्टूबर 10, 2020 को हुए पंचायत चुनावों में याचिकाकर्ता को विजयी घोषित किया गया था। लेकिन इसके बाद, लूणी देवी ने एक चुनाव याचिका दायर कर याचिकाकर्ता की जीत को चुनौती दी। लूणी देवी का दावा था कि याचिकाकर्ता के तीन बच्चे हैं, जो कि राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994 की धारा 19(एल) के अनुसार पंचायत चुनावों में भाग लेने के लिए उन्हें अयोग्य बनाता है।
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यह याचिका जिला न्यायाधीश के पास दायर की गई थी, लेकिन बाद में इसे सीनियर सिविल जज (चुनाव न्यायाधिकरण) को ट्रांसफर कर दिया गया।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान, लूणी देवी ने एक आवेदन दायर किया, जिसमें उन्होंने अपनी बीमारी का हवाला देते हुए गवाही देने के लिए कोर्ट कमिश्नर को नियुक्त करने का अनुरोध किया ताकि उनकी गवाही उनके घर पर दर्ज की जा सके। इस पर चुनाव न्यायाधिकरण ने उनकी गवाही उनके घर पर कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से दर्ज करने का आदेश जारी किया।
याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में तर्क दिया गया कि चुनाव न्यायाधिकरण का यह आदेश केवल मुकदमे की प्रक्रिया में देरी करने के लिए किया गया है और यह राजस्थान पंचायत राज (चुनाव) नियम, 1994 के नियम 85 का उल्लंघन करता है।
RAJASTHAN HC: प्रतिवादी की ओर से तर्क
प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति का अधिकार चुनाव न्यायाधिकरण के पास है और इस अधिकार का उपयोग करते हुए न्यायाधिकरण ने यह निर्णय लिया है। प्रतिवादी के अनुसार, न्यायालय के पास ऐसा अधिकार है और यह निर्णय न्यायहित में लिया गया है। प्रतिवादी के वकील का यह भी कहना था कि कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से गवाही दर्ज कराने का आदेश सीपीसी के आदेश XXVI नियम 1 और धारा 151 के तहत दिया गया है और यह नियमों के विपरीत नहीं है।
हाईकोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई करते हुए पाया कि प्रतिवादी लूणी देवी की उम्र 72 वर्ष है और वह गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं। उन्होंने चुनाव न्यायाधिकरण में पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए, जो उनकी बीमारी को साबित करते हैं। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि लूणी देवी को कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से गवाही देने का अधिकार है और इसे अन्यथा नहीं समझा जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि नियम 85 के तहत चुनाव न्यायाधिकरण को यह विवेकाधिकार है कि वह इस तरह के मामलों में सही और उचित निर्णय ले सके।
अदालत ने अपने एक पुराने मामले “कमला बनाम राधा विश्नोई” का भी हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि नियम 85 का मुख्य उद्देश्य यह है कि साक्ष्य का सारांश ही दर्ज किया जाए, और न्यायाधीश पर इसे पूरी तरह से रिकॉर्ड करने का कोई दायित्व नहीं है। इस नियम में केवल एक दिशानिर्देश है कि वह कितना विवरण दर्ज करें।
याचिकाकर्ता के तर्क कि कोर्ट कमिश्नर के माध्यम से गवाही दर्ज कराना नियम 85 का उल्लंघन है, को अदालत ने खारिज कर दिया और यह बताया कि नियम 85 एक विकल्प प्रदान करता है, अनिवार्यता नहीं।
RAJASTHAN HC: अंतिम निर्णय
अतः अदालत ने यह पाया कि चुनाव न्यायाधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय में किसी प्रकार का अनुचित या मनमाना रवैया नहीं अपनाया गया है और यह निर्णय कानूनी ढंग से लिया गया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि इस मामले में न्यायाधिकरण का निर्णय बिल्कुल सही है और इसे खारिज करने का कोई ठोस आधार नहीं है।
अतः याचिका में दम न पाते हुए अदालत ने इसे खारिज कर दिया और चुनाव न्यायाधिकरण के निर्णय को सही ठहराया।
मामला: अंजू परिहार बनाम लूणी देवी [2024:RJ-JD:44099]