केरल उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा कि ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) सूची में किसी नई जाति को जोड़ने का आदेश पूर्वव्यापी (पिछली तिथि से) प्रभाव से लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह किसी अधिकार या स्थिति की घोषणा नहीं है, बल्कि एक नए अधिकार का सृजन है।
यह मामला उस समय सामने आया जब केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने केरल लोक सेवा आयोग के खिलाफ दायर एक आवेदन को अनुमति दी। इस याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी.जी. अजितकुमार की पीठ ने कहा, “पत्तारिया समुदाय को हाल ही में ओबीसी सूची में जोड़ा गया है। इस आदेश का लाभ पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह किसी अधिकार या स्थिति की घोषणा नहीं, बल्कि एक नए अधिकार का सृजन है।”
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इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता पी.सी. ससिधरन और प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता वरुण सी. विजय उपस्थित थे।
केरल हाईकोर्ट: ओबीसी आरक्षण पर विवाद, जाति प्रमाणपत्र में विसंगतियों के कारण आवेदन खारिज
केरल हाईकोर्ट में एक मामला सामने आया जिसमें उत्तरदाता नंबर 1 होम्योपैथी विभाग में अटेंडर ग्रेड II के पद के लिए 14वीं रैंक पर थे और उन्होंने ओबीसी आरक्षण का दावा किया था। हालांकि, केरल लोक सेवा आयोग (केपीएससी) ने उनके जाति प्रमाणपत्र में पाई गई विसंगतियों के कारण उन्हें इस लाभ से वंचित कर दिया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पद्मसालिया जाति को 28 मई, 2020 को ओबीसी सूची में जोड़ा गया था, जबकि रैंक सूची को 28 अप्रैल, 2020 को मंजूरी दी गई थी। उत्तरदाता नंबर 1 ने ओबीसी उम्मीदवार के रूप में अपनी उपेक्षा को केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन साथ ही उत्तरदाता नंबर 2 की नियुक्ति को बरकरार रखा।
इसके बाद, केरल लोक सेवा आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की। कोर्ट ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के जेम्स मैथ्यू [(2017) 15 एससीसी 595] के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि एक बार जब राष्ट्रीय आयोग किसी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के दर्जे को प्रमाणित कर देता है, तो यह पहले से मौजूद स्थिति की घोषणा करता है और इसका प्रभाव पूर्वव्यापी होता है।
हाईकोर्ट का यह मामला इस बात पर आधारित है कि ओबीसी सूची में नई जातियों को जोड़ने के आदेश का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होता है, जबकि इस मामले में जाति प्रमाणपत्र की विसंगतियों के कारण उत्तरदाता को ओबीसी लाभ से वंचित किया गया था।
अदालत ने कहा कि न्यायाधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया।
अपीलकर्ता: अधिवक्ता पी.सी. ससीधरन
उत्तरदाता: अधिवक्ता वरुण सी. विजय, अधिवक्ता दिव्या चंद्रन और वरिष्ठ सरकारी वकील विनीता बी.
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