पंजाब हाईकोर्ट का फैसला: कनाडा में रह रही एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है।
यह मामला एक नाबालिग बच्चे की हिरासत से जुड़ा था, जिसे उसका पिता कथित रूप से कनाडाई अदालत के आदेश का उल्लंघन करते हुए भारत लेकर आ गया था और यहीं पर कस्टडी में रखे हुए था। कोर्ट ने इस मामले में बच्चे की मां को उसकी कस्टडी सौंपने का निर्देश दिया है और बच्चे को तुरंत कनाडा वापस भेजने को कहा है। यह निर्णय न्यायमूर्ति मंजरी नेहरू कौल की एकल पीठ द्वारा सुनाया गया।
पंजाब हाईकोर्ट का फैसला: विदेशी आदेश की अवहेलना पर कोर्ट सख्त
याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि बच्चे का पिता, जो खुद भी एक कनाडाई नागरिक है, अदालत की अनुमति से कुछ सप्ताह के लिए भारत आया था। यह अनुमति सशर्त दी गई थी कि वह बच्चे को लेकर सीमित समय के लिए भारत आ सकता है और तय समय के भीतर कनाडा वापस लौटेगा। मगर, उसने जानबूझकर इन शर्तों का उल्लंघन किया और कनाडा न लौटकर भारत में ही रहने लगा।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव सूद ने अदालत में प्रस्तुत किया कि पिता ने कनाडा की अदालत द्वारा 13 नवंबर, 2024 को पारित एक आदेश को छुपाकर भारत सरकार से अपने वीजा का विस्तार भी हासिल कर लिया। इस आदेश में बच्चे की एकमात्र और अंतिम कस्टडी मां को सौंपी गई थी और उसे सभी निर्णय लेने का विशेष अधिकार भी दिया गया था। इसके बावजूद, पिता न केवल भारत में रुका रहा, बल्कि उसने मां से बच्चे को दूर रखने की कोशिश भी की।
कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय अदालतों का इस्तेमाल विदेशी नागरिकों द्वारा इस तरह की न्यायिक प्रक्रिया से बचने और अपने हितों की पूर्ति के लिए मुकदमेबाजी का केंद्र नहीं बनना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि भारत सरकार से वीजा लेने की प्रक्रिया में कोई तथ्य छुपाया गया है, तो वह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि नैतिक रूप से भी गलत है।
जस्टिस कौल ने कहा, “बेशक पिता का चरित्र बेदाग हो, और वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम हो, लेकिन मां की प्राकृतिक देखभाल और भावनात्मक लगाव की बराबरी कोई नहीं कर सकता, खासकर जब बच्चा कम उम्र का हो या उसका स्वास्थ्य नाजुक हो।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामलों में बच्चों की भलाई सर्वोपरि है और यह देखा जाना जरूरी है कि उनके हित में क्या है।
अंतरराष्ट्रीय सौहार्द और कानून के शासन का सवाल
कोर्ट ने इस मामले में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और देशों के बीच सौहार्द को भी ध्यान में रखा। न्यायालय ने कहा कि एक स्पष्ट विदेशी कस्टडी आदेश के बावजूद, अगर पिता को बच्चे की हिरासत बनाए रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह न केवल याचिकाकर्ता (मां) के अधिकारों का हनन होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कानून के शासन के भी खिलाफ होगा।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि पिता का वीजा भारत सरकार द्वारा 15 जनवरी 2026 तक बढ़ा दिया गया है, लेकिन बच्चे का वीजा समाप्त हो चुका है। ऐसे में उसका भारत में रहना अवैध माना जाएगा। इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने कहा कि बच्चे को जल्द से जल्द मां को सौंपा जाए और उसे कनाडा भेजा जाए।
बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामलों में नया दृष्टिकोण
यह फैसला भारतीय न्यायपालिका के दृष्टिकोण को दर्शाता है कि बच्चों से जुड़े मामलों में न केवल घरेलू कानूनों का पालन आवश्यक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों और विदेशों के आदेशों को भी उचित सम्मान देना होगा। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि अदालतें किसी भी पक्ष की नागरिकता से ऊपर उठकर बच्चे के हितों को प्राथमिकता देंगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों की कस्टडी से जुड़ी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में एक संतुलन बनाए रखना जरूरी है—एक तरफ जहां अंतरराष्ट्रीय सौहार्द का सम्मान किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर बच्चे के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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अंतरराष्ट्रीय न्यायिक आदेशों का सम्मान जरूरी
इस निर्णय से कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं:
- भारतीय अदालतें विदेशी नागरिकों के लिए मुकदमेबाजी का साधन नहीं बन सकतीं।
- बच्चों की कस्टडी में मातृत्व के स्वाभाविक गुणों को सर्वोपरि माना गया है।
- विदेशों के न्यायिक आदेशों का पालन अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के लिए भी आवश्यक है।
- बच्चों की भलाई ही हर ऐसे निर्णय का केंद्र होना चाहिए।
यह निर्णय भारतीय अदालतों की संवेदनशीलता, न्याय के प्रति प्रतिबद्धता और बच्चों के हितों को सर्वोच्च मानने के सिद्धांत को दर्शाता है। इस फैसले से भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल कायम होगी, जिसमें अंतरराष्ट्रीय आदेशों और माता-पिता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी हो।