प्रेमा प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 बुराड़ी में उत्तराखंडी नेताओं की उम्मीदवारी पर चर्चा तेज

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By headlineslivenews.com

प्रेमा प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 बुराड़ी में उत्तराखंडी नेताओं की उम्मीदवारी पर चर्चा तेज

प्रेमा प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में उत्तराखंडी संगठनों का राजनीतिक समीकरण एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। उत्तराखंडी समुदाय ने

प्रेमा रावत प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 बुराड़ी में उत्तराखंडी नेताओं की उम्मीदवारी पर चर्चा तेज

प्रेमा प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में उत्तराखंडी संगठनों का राजनीतिक समीकरण एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है।

प्रेमा रावत प्रमुख दावेदार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 बुराड़ी में उत्तराखंडी नेताओं की उम्मीदवारी पर चर्चा तेज

उत्तराखंडी समुदाय ने लंबे समय से महसूस किया है कि उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व में कमी आई है। इसी कारण अब उत्तराखंड महापंचायत ने इस चुनावी साल में अपनी आवाज उठाई है और बुराड़ी विधानसभा सीट से उम्मीदवार की घोषणा कर दी है।

महापंचायत ने बुराड़ी से प्रेमा रावत को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है, और वे बीजेपी से टिकट की उम्मीद लगाए हुए हैं। इसके अलावा, दो और नए चेहरे मनीष नेगी और विनोद बछेती भी प्रबल दावेदार के रूप में चर्चा में हैं।

प्रेमा प्रमुख दावेदार: उत्तराखंडी समुदाय की बढ़ती राजनीतिक ताकत

प्रेमा प्रमुख दावेदार: दिल्ली में करीब 18 लाख से अधिक उत्तराखंडी वोटर्स हैं, जो राजधानी की राजनीति में एक प्रभावशाली जनसमूह बनाते हैं। हालांकि, लंबे समय से उन्हें राजनीतिक दृष्टि से उपेक्षित महसूस हो रहा था। यही कारण है कि उत्तराखंडी संगठन अब सक्रिय रूप से विधानसभा चुनावों में अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए आगे आ रहे हैं।

महापंचायत के महामंत्री मानवेंद्र देव मनराल का कहना है कि दिल्ली की कई सीटें ऐसी हैं, जहां पहाड़ी वोटरों का निर्णायक प्रभाव है। उनका दावा है कि उत्तराखंडी समुदाय को कम से कम पांच सीटों पर उम्मीदवार मिलना चाहिए, ताकि उनकी आवाज सही तरीके से सुनी जा सके और राजनीति में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सके।

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प्रेमा प्रमुख दावेदार: बुराड़ी सीट पर प्रेमा रावत की उम्मीदवारी

उत्तराखंड महापंचायत ने बुराड़ी सीट से प्रेमा रावत को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है। प्रेमा रावत का नाम पहले से ही दिल्ली में चर्चित है, और वे बीजेपी से टिकट की उम्मीद लगाए बैठी हैं। बुराड़ी सीट का चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प है, क्योंकि यह सीट दिल्ली के उन इलाकों में से एक है जहां पहाड़ी समुदाय के वोटरों की संख्या काफी अधिक है।

प्रेमा रावत का चुनावी अभियान अब इस बात पर आधारित होगा कि वे कैसे अपनी राजनीतिक पहचान को स्थापित कर सकती हैं और बीजेपी से टिकट की प्राप्ति के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत कर सकती हैं। महापंचायत का मानना है कि अगर बीजेपी से टिकट मिलता है, तो रावत के लिए चुनावी मैदान में उतरना और जीत हासिल करना संभव हो सकता है।

प्रेमा प्रमुख दावेदार: बीजेपी की लिस्ट में उम्मीदें और दावेदार

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अभी बीजेपी की उम्मीदवार सूची जारी नहीं हुई है, लेकिन उत्तराखंडी समुदाय की उम्मीदें इस लिस्ट से जुड़ी हुई हैं। बीजेपी के अंदर भी पहाड़ी उम्मीदवारों को लेकर चर्चा हो रही है, क्योंकि दिल्ली की कुछ सीटों पर उत्तराखंडी समुदाय का वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।

करावल नगर और पटपड़गंज सीटें ऐसी हैं जहां से उत्तराखंडी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी की चर्चा है। करावल नगर से मौजूदा विधायक मोहन सिंह बिष्ट का टिकट तय माना जा रहा है। वहीं, पटपड़गंज सीट पर बीजेपी के प्रदेश मंत्री विनोद बछेती और स्थानीय पार्षद रवि नेगी के नाम प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं। ये दोनों ही दावेदार इस सीट पर चुनावी मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।

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प्रेमा प्रमुख दावेदार: राजनीतिक गलियारों में बढ़ती चर्चा

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि उत्तराखंडी समुदाय का वोट बैंक अब एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। हालांकि, पहाड़ी समुदाय के लिए यह चुनावी संघर्ष आसान नहीं होगा। राजनीतिक विशेषज्ञ और पूर्व पार्षद जगदीश ममगाईं के अनुसार, दिल्ली के कुछ क्षेत्र जैसे नई दिल्ली, आरके पुरम, दिल्ली कैंट, बुराड़ी, करावल नगर, पटपड़गंज, बदरपुर, पालम और द्वारका में पहाड़ी वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है।

इन क्षेत्रों में अगर कोई उम्मीदवार जनता के बीच काम करता है, तो उसकी जीत निश्चित हो सकती है। हालांकि, ममगाईं यह भी मानते हैं कि पहाड़ी समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत होने के बावजूद चुनावी राजनीति में जीतने के लिए एक लंबा समय और मेहनत चाहिए होती है।

उत्तराखंडी समुदाय की राजनीतिक इतिहास में हिस्सेदारी

दिल्ली विधानसभा में अब तक सिर्फ दो उत्तराखंडी ही पहुंचे हैं। पहली बार 1993 में बीजेपी के टिकट पर मुरारी सिंह पंवार मंडावली से विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन अगले ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1998 में पंवार को हार का सामना करना पड़ा और 2008 में लक्ष्मी नगर से भी वे हार गए। करावल नगर से मोहन सिंह बिष्ट बीजेपी के टिकट पर पांच बार विधायक बने, लेकिन 2015 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

बीजेपी ने वीरेंद्र जुयाल को 2003 में मंडावली से लड़ाया, लेकिन वे भी चुनावी मुकाबला हार गए। कांग्रेस ने भी कई बार उत्तराखंडी उम्मीदवारों को टिकट दिया, जैसे 1993 में आशुतोष उप्रेती, 1998 में यमुना विहार से पुष्कर रावत और 2003 में यमुना विहार से दीवान सिंह नयाल को टिकट दिया, लेकिन सभी उम्मीदवार हार गए। इन हारों के बावजूद उत्तराखंडी समुदाय की राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर उनका संघर्ष जारी रहा है।

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आने वाले चुनावों में उत्तराखंडी संगठनों की उम्मीदें

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में उत्तराखंडी संगठनों की उम्मीदें काफी अधिक हैं। महापंचायत ने जो उम्मीदवारी का ऐलान किया है, वह इस बात का संकेत है कि उत्तराखंडी समुदाय इस बार अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। महापंचायत ने बुराड़ी से प्रेमा रावत को उम्मीदवार बनाने के बाद यह घोषणा की है कि अगर बीजेपी से उन्हें टिकट मिलता है, तो चुनावी रणनीतियां तय की जाएंगी। इसके बाद अन्य सीटों पर भी विचार किया जाएगा।

उत्तराखंडी समुदाय का उद्देश्य केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं है, बल्कि वे चाहते हैं कि दिल्ली में उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाए और उनके मुद्दों पर ध्यान दिया जाए। बुराड़ी, करावल नगर और पटपड़गंज जैसे क्षेत्रों में पहाड़ी वोटर्स का प्रभाव है, और ये सीटें इस चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती हैं। अब देखना यह है कि इन सीटों पर कौन से उम्मीदवार किस पार्टी से चुनावी मैदान में उतरते हैं और उत्तराखंडी समुदाय की राजनीतिक शक्ति कितनी मजबूत होती है।

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दिल्ली चुनाव में बुराड़ी सीट पर नई उम्मीदें

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में उत्तराखंडी समुदाय के लिए यह एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। महापंचायत की ओर से बुराड़ी से प्रेमा रावत को उम्मीदवार बनाने की घोषणा के बाद, उत्तराखंडी समुदाय ने अपनी राजनीतिक भागीदारी को गंभीरता से लेने का निर्णय लिया है। बीजेपी, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के टिकट की उम्मीद लगाए हुए उम्मीदवारों के लिए यह चुनावी मुकाबला एक अवसर साबित हो सकता है। अब यह देखना होगा कि उत्तराखंडी समुदाय की राजनीतिक ताकत दिल्ली की राजनीति में कितनी प्रभावी हो सकती है।