रजिस्ट्रार जनरल का नोटिस: 7 मई 2025 को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा एक महत्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि हाईकोर्ट सहित पंजाब, हरियाणा और यू.टी. चंडीगढ़ के सभी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में न्यायालय की कार्यवाही की किसी भी प्रकार की रिकॉर्डिंग पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
यह आदेश कोर्ट की गरिमा और गोपनीयता को बनाए रखने के लिए जारी किया गया है, जिसमें सभी पक्षों, वादियों, वकीलों और आम जनता को इस प्रतिबंध से अवगत कराया गया है।
रजिस्ट्रार जनरल का नोटिस: रजिस्ट्रार जनरल का आदेश
नोटिस में कहा गया: “सभी पक्षों/मुकदमों तथा आम जनता को सूचित किया जाता है कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट तथा पंजाब, हरियाणा तथा यू.टी. चंडीगढ़ के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा न्यायालय कार्यवाही की रिकॉर्डिंग प्रतिबंधित है।”
यह आदेश कोर्ट की इजाजत के बिना किसी भी रूप में की जाने वाली ऑडियो, वीडियो या डिजिटल रिकॉर्डिंग को गैरकानूनी करार देता है। आदेश के अनुसार, न्यायालय में कार्यवाही के दौरान इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे मोबाइल फोन, टैबलेट, कैमरा, रिकॉर्डर आदि के जरिए रिकॉर्डिंग करना कोर्ट की अवमानना के दायरे में आएगा।
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उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी
रजिस्ट्रार जनरल ने चेतावनी दी है कि यदि कोई व्यक्ति या संस्था इस आदेश का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो संबंधित न्यायालय को यह अधिकार होगा कि वह:
- कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के लिए उपयोग किए जा रहे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को जब्त कर ले,
- संबंधित व्यक्ति/संस्था के खिलाफ अदालत की अवमानना (Contempt of Court) की कार्यवाही शुरू करे,
- अन्य किसी भी उचित वैधानिक या दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश करे।
यह चेतावनी इसलिए दी गई है ताकि न्यायालय की प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे और कोर्ट की कार्यवाही की गोपनीयता और निष्पक्षता में कोई हस्तक्षेप न हो।
न्यायालय की कार्यवाही की गोपनीयता क्यों है जरूरी?
न्यायालय की कार्यवाही में कई बार गवाहों की गवाही, संवेदनशील दस्तावेज, और निजी जानकारी प्रस्तुत की जाती है, जिनका सार्वजनिक होना पक्षकारों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा कोर्ट में चल रही बहस और तर्क एक विशेष विधिक प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं, जिनका गलत रूप में प्रसारण या रिकॉर्डिंग न केवल पक्षकारों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है, बल्कि न्यायिक निर्णय की निष्पक्षता को भी प्रभावित कर सकती है।
इसलिए अदालतें पूरी दुनिया में इस बात को लेकर सख्त होती हैं कि बिना अनुमति कोर्ट की कार्यवाही रिकॉर्ड न की जाए और यदि कोई ऐसा करता है तो वह गंभीर अवमानना का दोषी हो सकता है।
डिजिटल युग में कोर्ट रिकॉर्डिंग का बढ़ता चलन
वर्तमान समय में, जब डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रभाव है, तो लोग अक्सर अपने मोबाइल फोन या अन्य गैजेट्स का उपयोग करते हुए कोर्ट की कार्यवाही को रिकॉर्ड करने या प्रसारित करने की कोशिश करते हैं। विशेष रूप से हाई-प्रोफाइल मामलों में मीडिया या जनता की अत्यधिक रुचि के चलते यह चलन बढ़ता जा रहा है। ऐसे मामलों में कोर्ट की कार्यवाही को रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर डालना, वायरल करना या अपने फायदे के लिए उपयोग करना न केवल अवैध है, बल्कि यह न्याय प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने वाला भी हो सकता है।
nishikant dubey on supreme court
सुप्रीम कोर्ट की भी सख्ती
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर ऐसे मामलों में सख्ती दिखाई है जहां न्यायालय की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग या लाइव स्ट्रीमिंग बिना अनुमति के की गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मामलों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी है, लेकिन वह भी कोर्ट के सख्त दिशा-निर्देशों और तकनीकी निगरानी के तहत ही की जाती है।
कोर्ट रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध कानूनी दृष्टिकोण
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है और इसमें न्यायालय की गरिमा, गोपनीयता, और निष्पक्ष सुनवाई की रक्षा के लिए प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। कोर्ट की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग को इस सीमा के भीतर रखा गया है और केवल न्यायालय की अनुमति के बाद ही इसकी इजाजत दी जाती है।
डिजिटल युग में कोर्ट की गोपनीयता बनाए रखने की जरूरी पहल
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा जारी यह आदेश न्याय व्यवस्था की पवित्रता, निष्पक्षता और गोपनीयता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। डिजिटल युग में जब किसी भी सूचना का गलत उपयोग आसानी से किया जा सकता है, ऐसे में न्यायालयों का यह प्रयास कि बिना अनुमति कोई भी कार्यवाही रिकॉर्ड न हो, बिलकुल जायज और आवश्यक है।
सभी वकीलों, वादियों और आम जनता को इस आदेश का पालन करना चाहिए और न्यायपालिका की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने में सहयोग करना चाहिए। अन्यथा, उल्लंघन की स्थिति में न केवल कानूनी कार्रवाई होगी बल्कि न्याय व्यवस्था के प्रति अवमानना का गंभीर आरोप भी लग सकता है।












