वक्फ अधिनियम 2025: नई दिल्ली- वक्फ अधिनियम 1995 को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में एक महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार और राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब हाल ही में केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम में संशोधन किया है और इसका नाम भी बदल दिया है, जिसे अब वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के नाम से जाना जा रहा है।
इस मामले में मुख्य याचिका दिल्ली निवासी निखिल उपाध्याय द्वारा दाखिल की गई है। उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित एक अन्य याचिका अधिवक्ता हरि शंकर जैन और उनके साथ एक अन्य याचिकाकर्ता द्वारा भी दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए सुनवाई का आदेश दिया है।
वक्फ अधिनियम 2025 पीठ ने याचिका की वैधता पर शुरू की जांच
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि आखिर इतने वर्षों बाद अब 1995 के अधिनियम को क्यों चुनौती दी जा रही है। इस पर अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, जो याचिकाकर्ता हरि शंकर जैन की ओर से पेश हुए थे, ने तर्क दिया कि अधिनियम को पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है, लेकिन तब याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट का रुख करने की सलाह दी गई थी।
हालांकि, पीठ ने इस तर्क से सहमति नहीं जताई। जस्टिस गवई ने स्पष्ट किया कि यह बात अब कोर्ट की जांच के अधीन है कि इतने वर्षों बाद क्यों यह अधिनियम असंवैधानिक ठहराने के लिए पुनः चुनौती दी जा रही है।
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वक्फ अधिनियम 1995 और उसका विवाद
वक्फ अधिनियम, 1995 भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और देखरेख के लिए बनाया गया कानून है। इसके अंतर्गत मुस्लिम समुदाय की धार्मिक या परोपकारी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के अधीन लाया जाता है। इन बोर्डों को विभिन्न राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मान्यता देती हैं और वे संपत्तियों का प्रशासन करते हैं।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है और संविधान के धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकार और समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
संशोधन से मुस्लिम समुदाय को मिले अतिरिक्त अधिकार
केंद्र सरकार ने हाल ही में इस अधिनियम में संशोधन करते हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पेश किया है। इस संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना बताया गया है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह संशोधन पहले से ही विवादित कानून को और अधिक जटिल तथा व्यापक बना देता है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधन के बाद वक्फ बोर्डों को और अधिक शक्तियां मिल गई हैं, जिससे यह कानून मुस्लिम समुदाय के लिए विशेषाधिकार बनता जा रहा है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के लिए ऐसी कोई समान व्यवस्था नहीं है।
एक साथ सुनी जाएं वक्फ से जुड़ी सभी याचिकाएं
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2025 के संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार किया है, लेकिन 1995 के मूल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर औपचारिक रूप से सुनवाई की अनुमति नहीं दी गई है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यदि उपाध्याय की याचिका को पहले से लंबित हरि शंकर जैन की याचिका के साथ जोड़कर एक साथ सुना जाए, तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं होगी।
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भारतीय न्यायपालिका के केंद्र में वक्फ कानून की वैधता का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र सरकार और संबंधित राज्यों को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब दाखिल करने को कहा है। इस आदेश के साथ ही यह मामला अब भारत की न्यायपालिका के केंद्र में आ गया है, जहां यह तय किया जाएगा कि क्या वक्फ अधिनियम 1995 भारतीय संविधान के अनुरूप है या नहीं।
क्या वक्फ अधिनियम संविधान की आत्मा के अनुरूप है?
वक्फ अधिनियम 1995 और इसके हालिया संशोधन को लेकर उठ रहे सवाल भारतीय समाज की धार्मिक, संवैधानिक और संपत्ति संबंधी जटिलताओं को उजागर करते हैं। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस बात का मार्ग प्रशस्त कर सकती है कि क्या धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बनाए गए विशेष कानून संविधान की मूल आत्मा के अनुरूप हैं या इन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं की गई है, लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में यह कानूनी लड़ाई और भी गहराएगी और इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर महसूस किया जाएगा।