विधानसभा चुनाव 1998: 1998 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान महंगाई की मार, खासकर प्याज की आसमान छूती कीमतों ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया और दिल्ली में शीला दीक्षित का युग शुरू हो गया।
उस समय केंद्र में बीजेपी की अगुआई में एनडीए सरकार थी, और दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार थी। लेकिन प्याज की महंगाई ने बीजेपी को ऐसी नाकामी दी कि पार्टी अब तक दिल्ली की सत्ता में आने के लिए तरस रही है।
विधानसभा चुनाव 1998: ‘अब का सलाद खईब’ गाने से मनोज तिवारी ने दिखाया महंगाई का दर्द
विधानसभा चुनाव 1998: प्याज की कीमतें उस समय 50 रुपये किलो तक पहुंच गईं, जो पहले महज 4-5 रुपये प्रति किलो बिकता था। जमाखोरी और अफवाहों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। जब प्याज के दाम आसमान छूने लगे, तो पूरे देश में अफवाहें फैलने लगीं कि नमक भी महंगा होने वाला है। इस अफवाह ने लोगों में जबरदस्त अफरातफरी मचा दी, और लोग बड़ी संख्या में नमक खरीदने के लिए दुकानों पर पहुंच गए।
इस माहौल का लाभ लेकर भोजपुरी गायक मनोज तिवारी ‘मृदुल’ ने प्याज की महंगाई पर एक गीत गाया, जो काफी लोकप्रिय हुआ। गीत में उन्होंने कहा था, “अब का सलाद खईब, पियजिया अनार हो गईल। वाह रे अटल चाचा, निमकिया पे मार हो गईल…” इस गाने ने उस समय की स्थिति को बखूबी दर्शाया था।
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विधानसभा चुनाव 1998: बीजेपी का मुख्यमंत्री बदलाव भी महंगाई संकट से निपटने में नाकाम
बीजेपी ने इस महंगाई संकट से निपटने के लिए सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह भी प्याज की कीमतों को काबू में नहीं कर पाईं। सुषमा स्वराज ने भरसक कोशिश की, लेकिन व्यापारियों की जमाखोरी और अफवाहों के कारण महंगाई नियंत्रण से बाहर हो गई। इसके अलावा, बीजेपी को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री बदलने से जनता की नाराजगी कम हो जाएगी, लेकिन यह कदम भी नाकाम रहा। दिल्ली की जनता ने महंगाई को लेकर बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया और कांग्रेस के खिलाफ गुस्से का इज़हार किया।
शीला दीक्षित की नेतृत्व में कांग्रेस ने 1998 में दिलाई दिल्ली में ऐतिहासिक जीत
बीजेपी की सत्ता में कमजोरियों के कारण, दिल्ली विधानसभा चुनाव 1998 में कांग्रेस ने अपनी स्थिति को मजबूत किया। शीला दीक्षित ने कांग्रेस की चेहरा बनकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। सुषमा स्वराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली में मात्र 52 दिन ही उनका कार्यकाल रहा। उनके बाद कांग्रेस ने 1998 के चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की, जबकि बीजेपी 49 सीटों से गिरकर केवल 15 सीटों पर सिमट गई। वहीं, कांग्रेस ने 52 सीटों पर जीत हासिल की और दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई।
कांग्रेस की जीत ने बीजेपी के लिए सत्ता की राह मुश्किल बनाई
राजनीतिक हलकों में ये चुनाव ऐतिहासिक माने जाते हैं, क्योंकि इस चुनाव के बाद दिल्ली में 15 साल तक कांग्रेस का शासन रहा, जिसमें शीला दीक्षित की मजबूत भूमिका रही। प्याज की महंगाई ने बीजेपी की दिल्ली सरकार को पूरी तरह से धराशायी कर दिया और कांग्रेस को सत्ता का द्वार खोल दिया। इस घटनाक्रम के बाद से दिल्ली में कांग्रेस का प्रभुत्व स्थापित हो गया और बीजेपी के लिए राजधानी दिल्ली में सत्ता की राह कठिन हो गई।
बीजेपी के लिए सत्ता की राह और कठिन हुई
दिल्ली में बीजेपी के लिए यह चुनाव एक बड़ा झटका था, क्योंकि इसने पार्टी को इस तरह की महंगाई संकट से निपटने में असमर्थ साबित किया। इसके साथ ही बीजेपी को यह सीख मिली कि चुनावी राजनीति में सिर्फ सत्ता की रणनीति ही नहीं, बल्कि जनता की असल समस्याओं को समझना और उन्हें हल करना भी जरूरी होता है। 1998 के चुनावों ने बीजेपी को यह सिखाया कि जब महंगाई जैसी समस्याओं पर सही समय पर ध्यान नहीं दिया जाता, तो चुनावी नतीजे बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।
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इस घटना के बाद दिल्ली में शीला दीक्षित का मुख्यमंत्री बनना और कांग्रेस का सत्ता में आना, एक नए राजनीतिक दौर की शुरुआत थी। 15 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद शीला दीक्षित ने दिल्ली में कई विकास कार्यों को अंजाम दिया, लेकिन उनके शासन के दौरान बीजेपी लगातार विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी। 1998 के चुनावों ने दिल्ली की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया और बीजेपी को यह समझने का मौका दिया कि सत्ता पाने के लिए केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि स्थानीय मुद्दों और लोगों की परेशानियों का समाधान करना भी उतना ही अहम है।
जनता के असल मुद्दों को समझना जरूरी है
आखिरकार, दिल्ली के इस चुनाव ने बीजेपी को दिखाया कि चुनावी रणनीति में कभी-कभी न तो सिर्फ सत्ता और छवि के प्रचार से काम चलता है, बल्कि जनता के असल मुद्दों को समझने और उनका समाधान करने से ही सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी जा सकती हैं।