शिक्षा के अधिकार पर-पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि कॉलेज के छात्रों को परीक्षा देने के लिए उनके घरों से काफी दूर केंद्रों तक यात्रा करने के लिए मजबूर करना न केवल उनके लिए अत्यधिक असुविधाजनक है, बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन भी है।
यह फैसला न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति विकास सूरी की खंडपीठ ने सुनाया।
शिक्षा के अधिकार पर-छात्रों की पहुंच में हों परीक्षा केंद्र
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शिक्षा की सुलभता केवल कक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि परीक्षा देने की प्रक्रिया भी छात्रों की सुविधा के अनुसार होनी चाहिए। विशेष रूप से उन छात्रों के लिए जो ऑनलाइन या दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अध्ययन कर रहे हैं, परीक्षा केंद्र उनके निवास स्थान के समीप होने चाहिए।
पीठ ने इस व्यवस्था को शिक्षा में असमानता और भेदभाव उत्पन्न करने वाला बताया, विशेषकर गरीब और वंचित तबकों से आने वाले छात्रों के लिए। दूरदराज केंद्रों पर जाने से उत्पन्न होने वाली यात्रा लागत, समय और मानसिक तनाव उनके लिए शिक्षा की राह में बाधा बनता है।
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यूजीसी को निर्देश शिक्षा की गुणवत्ता और मान्यता का सत्यापन करें
कोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को निर्देश दिए कि भविष्य में किसी भी डीम्ड विश्वविद्यालय, निजी संस्थान या राज्य विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता और मान्यता की जांच की जाए।
साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे संस्थानों में अत्याधुनिक शैक्षणिक सुविधाएं और उपकरण मौजूद हैं। UGC को यह भी निर्देश दिया गया कि वे ऑडिट और सत्यापन प्रक्रिया के जरिए यह जांचें कि संस्थान उचित मान्यता प्राप्त हैं या नहीं।
करमजीत कौर की याचिका से उठा मुद्दा
यह फैसला करमजीत कौर नामक याचिकाकर्ता की रिट याचिका की सुनवाई के दौरान आया। करमजीत कौर को 2012 में पंजाबी विषय की शिक्षिका के रूप में अनुबंध पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने विनायक मिशन विश्वविद्यालय से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से एम.एड. डिग्री प्राप्त की थी। परंतु इस डिग्री को आधार बनाकर उन्हें नियमित नहीं किया गया।
इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसके तहत न्यायालय ने उन्हें 02.04.2016 से सभी लाभों के साथ नियमित करने का आदेश दिया। साथ ही यह भी निर्णय दिया कि गैर-तकनीकी दूरस्थ शिक्षा की डिग्रियों को वैध माना जाए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी किया गया हवाला
हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उड़ीसा लिफ्ट इरिगेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम रबी शंकर पात्रो [2017 AIR (SC) 5179] मामले में दिए गए निर्देशों का भी उल्लेख किया, जिसमें दूरस्थ शिक्षा की डिग्री की वैधता को लेकर दिशा-निर्देश तय किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने गैर-तकनीकी कोर्सेज की डिग्रियों को एक निर्धारित कट-ऑफ तिथि तक वैध माना था।
राज्य सरकार की विफलता और छात्रों के अधिकार
पंजाब सरकार इन निर्देशों के पालन में विफल रही, विशेषकर एक ऐसा पोर्टल विकसित करने में जिससे डिग्री की मान्यता और सत्यापन किया जा सके। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक डिग्रियों की धोखाधड़ी साबित नहीं होती और जब तक संबंधित विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त हैं, तब तक उन डिग्रियों को अवैध ठहराना उचित नहीं है।
यह निर्णय उन छात्रों के हितों की सुरक्षा करता है जो दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपनी शिक्षा पूरी करते हैं और जिन्हें संस्थागत स्वीकृति और प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपने करियर में रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
क्षेत्रीय सीमाओं पर आधारित पाबंदियों की आलोचना
न्यायालय ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय की क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर स्थापित अध्ययन और परीक्षा केंद्रों के लिए UGC की मंजूरी की आवश्यकता की शर्त दूरस्थ शिक्षा की मूल भावना के विपरीत है। यदि किसी छात्र ने किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से डिग्री प्राप्त की है, तो उसे इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए कि परीक्षा केंद्र संस्थान के परिसर से बाहर स्थित था।
शिक्षा का अधिकार क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर
अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा के अधिकार को क्षेत्रीय सीमाओं या तकनीकी औपचारिकताओं के आधार पर बाधित नहीं किया जा सकता। मान्यता का निर्धारण अकादमिक गुणवत्ता, प्रामाणिकता और शैक्षणिक ढांचे के आधार पर होना चाहिए, न कि संस्थान के भौगोलिक स्थान के आधार पर।
nishikant dubey on supreme court
कट-ऑफ तिथि का निष्प्रभावी होना
अदालत ने यूजीसी द्वारा दूरस्थ शिक्षा की डिग्री मान्यता के लिए तय की गई कट-ऑफ तिथियों को भी रद्द कर दिया और कहा कि जब तक डिग्रियों की प्रामाणिकता को लेकर कोई ठोस सबूत न हो, तब तक उन्हें मान्य माना जाएगा। इससे उन हजारों छात्रों को राहत मिलेगी जो इन शर्तों के कारण नौकरी और अन्य अवसरों से वंचित रह गए थे।
शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह फैसला भारत में शिक्षा की सुलभता, समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल दूरस्थ शिक्षा को वैधता प्रदान करता है, बल्कि संस्थागत गैर-जवाबदेही और तकनीकी बाधाओं से छात्रों को बचाने का मार्ग भी प्रशस्त करता है। साथ ही यह फैसला उच्च शिक्षा नीतियों को अधिक मानवीय, व्यावहारिक और समावेशी बनाने के लिए प्रशासन और नियामक संस्थाओं को एक स्पष्ट संदेश भी देता है।












