शीला दीक्षित: दिल्ली में चुनावी बिगुल फुंक चुका है।
इस अवसर पर राष्ट्रीय राजधानी की एक ऐसी नेता की बात करना प्रासंगिक है, जिन्होंने न केवल दिल्ली की सूरत बदली बल्कि देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली महिला होने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। वह थीं शीला दीक्षित। तीन बार मुख्यमंत्री रहते हुए, उन्होंने दिल्ली में कई ऐतिहासिक बदलाव किए और अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में ‘शीला युग’ स्थापित किया।
शुरुआती जीवन और राजनीतिक सफर
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में हुई। 1962 में उन्होंने यूपी के उन्नाव जिले के रहने वाले आईएएस अधिकारी विनोद दीक्षित से विवाह किया। शीला दीक्षित का ससुराल परिवार राजनीति से गहराई से जुड़ा था। उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे। वह 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री बने और बाद में कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। शीला दीक्षित का राजनीति में झुकाव उनके ससुर और परिवार के राजनीतिक माहौल से ही उत्पन्न हुआ।
1969 में शीला दीक्षित ने राजनीति में कदम रखा, लेकिन उनका पहला बड़ा मौका 1984 में आया। कांग्रेस ने उन्हें यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा। वह जीतकर राजीव गांधी सरकार में राज्यमंत्री बनीं। 1989 में वह कन्नौज सीट से चुनाव हार गईं। 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पूर्वी दिल्ली से मैदान में उतारा गया, लेकिन वह भी हार गईं। इसके बावजूद शीला दीक्षित ने हार नहीं मानी और जल्द ही दिल्ली कांग्रेस की कमान संभाली।
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1998 का विधानसभा चुनाव ‘शीला युग’ की शुरुआत
1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को गोल मार्केट सीट से मैदान में उतारा, जहां उनका मुकाबला बीजेपी के कीर्ति आजाद से था। शीला दीक्षित ने न केवल यह सीट जीती, बल्कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 70 में से 52 सीटों पर जीत हासिल की। यह चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि इससे पहले 1993 के चुनाव में बीजेपी ने 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी। शीला दीक्षित की यह जीत दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए युग की शुरुआत थी।
दिल्ली का कायाकल्प
शीला दीक्षित के तीन कार्यकाल (1998-2013) के दौरान दिल्ली में व्यापक बदलाव हुए। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:
- सीएनजी बसों की शुरुआत: उन्होंने दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सीएनजी बसों का बेड़ा उतारा।
- 70 से अधिक फ्लाईओवर: उन्होंने दिल्ली को ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर फ्लाईओवर का निर्माण करवाया।
- बुनियादी ढांचे का विकास: दिल्ली को एक विश्वस्तरीय शहर बनाने की दिशा में काम किया।
दिल्ली के लिए उनके पहले दो कार्यकालों के दौरान केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी। इसके बावजूद उन्होंने केंद्र और राज्य के बीच किसी भी टकराव को टाला और ईमानदारी से काम करती रहीं।
कॉमनवेल्थ घोटाले से गिरी शीला दीक्षित की साख
शीला दीक्षित के तीसरे कार्यकाल के दौरान 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटाले ने उनकी छवि को गहरा आघात पहुंचाया। इस घोटाले को लेकर उन पर गंभीर आरोप लगे। वहीं, उनके कार्यकाल के अंत तक कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को लेकर जनता के गुस्से का सामना कर रही थी।
2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को नई दिल्ली सीट से हराकर एक नई राजनीतिक लहर की शुरुआत की। इसके साथ ही दिल्ली में शीला दीक्षित युग का अंत हो गया।
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शीला दीक्षित एक प्रेरणादायक नेता
शीला दीक्षित ने दिल्ली की राजनीति में जो योगदान दिया, वह हमेशा याद रखा जाएगा। उनका जीवन संघर्ष, कड़ी मेहनत और जनता की सेवा का प्रतीक है। पंजाब में जन्मी, यूपी की बहू और दिल्ली की मुख्यमंत्री, शीला दीक्षित ने हर भूमिका को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। उनकी गिनती उन नेताओं में होती है जिन्होंने सच्चे अर्थों में राजनीति को जनता की सेवा का माध्यम बनाया।
भारतीय राजनीति में शीला दीक्षित का अमिट योगदान
शीला दीक्षित का नाम न केवल दिल्ली बल्कि भारतीय राजनीति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका 15 वर्षों का कार्यकाल दिल्ली के विकास और सशक्तिकरण का एक सुनहरा अध्याय है। उनका जीवन हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो राजनीति को सकारात्मक बदलाव का माध्यम मानता है।












