दिल्ली हाई कोर्ट ने उच्च शिक्षा से संबंधित शिक्षा मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया है कि वे स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) पाठ्यक्रमों में अनिवार्य उपस्थिति के नियमों पर एक व्यापक हितधारक परामर्श शुरू करें। यह निर्देश कोर्ट ने एक स्वत: संज्ञान याचिका की सुनवाई के दौरान जारी किया। यह याचिका अमिटी लॉ स्कूल, दिल्ली के एक कानून छात्र की आत्महत्या के दुर्भाग्यपूर्ण मामले के बाद दायर की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक मित्र द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर संज्ञान में लिया और बाद में इसे दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट: कोर्ट का आदेश और इसके संदर्भ
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने आदेश दिया कि उच्च शिक्षा से संबंधित शिक्षा मंत्रालय के सचिव स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अनिवार्य उपस्थिति के नियमों को लेकर हितधारकों से परामर्श शुरू करेंगे। इस आदेश में कहा गया है कि यह परामर्श शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, जिनमें उपस्थिति के नियमों की प्रासंगिकता और प्रभाव शामिल हैं।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि भारत सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव के माध्यम से सभी स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के शैक्षणिक संस्थानों को एक सर्कुलर जारी किया जाए, जिसमें संस्थानों को अपनी शिकायत निवारण समितियों का गठन करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया जाए। यह सर्कुलर अंतिम अवसर के रूप में जारी किया जाएगा ताकि संस्थान उपस्थिति से संबंधित मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपटा सकें।
दिल्ली हाई कोर्ट: हितधारक परामर्श के बिंदु
कोर्ट ने परामर्श के दौरान निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करने का निर्देश दिया:
- अनुपालन की स्थिति: यह जांचना कि क्या उच्च शिक्षा संस्थानों में अनिवार्य उपस्थिति के नियम सही तरीके से लागू किए जा रहे हैं, या क्या ये नियम अधिकांश पाठ्यक्रमों में अप्रासंगिक हो गए हैं, विशेषकर गैर-व्यावहारिक और गैर-क्लिनिकल पाठ्यक्रमों में।
- छात्रों की उपस्थिति: यह निर्धारित करना कि क्या छात्र वास्तव में उपस्थिति के नियमों का पालन कर रहे हैं, या कुछ संस्थानों में प्रॉक्सी के माध्यम से उपस्थिति दर्ज की जा रही है।
- थियोरी और आत्म-शिक्षण पाठ्यक्रम: क्या उन पाठ्यक्रमों में अनिवार्य उपस्थिति की आवश्यकता है जो पूरी तरह से सैद्धांतिक या आत्म-शिक्षण पर आधारित हैं?
- ऑनलाइन शिक्षा: क्या यह आवश्यक है कि उपस्थिति के नियम लागू हों, जब छात्र इंटरनेट और अन्य शिक्षा प्लेटफार्मों से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं?
- अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: क्या अन्य देशों में भी अनिवार्य उपस्थिति के नियम लागू किए जाते हैं, और यदि हां, तो किस प्रकार के पाठ्यक्रमों में?
- उपस्थिति में छूट: क्या उपस्थिति के नियमों में छूट दी जा सकती है, और यदि हां, तो किस प्रकार और किन पाठ्यक्रमों में?
- छात्रों के लिए उपाय: उन छात्रों के लिए क्या उपाय किए जाएं जो अनिवार्य उपस्थिति के नियमों का पालन नहीं कर पाते हैं?
- दंड की आवश्यकता: क्या उपस्थिति के नियमों को लागू करने के लिए परीक्षा में बैठने से रोकना, अगली कक्षा में प्रमोट नहीं करना जैसी सज़ाएं दी जानी चाहिए?
- प्रोत्साहन: क्या छात्रों को कक्षाओं में उपस्थित होने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सकारात्मक उपाय, जैसे प्रोत्साहन, अतिरिक्त अंक, आदि दिए जाने चाहिए?
- स्वास्थ्य प्रभाव: अनिवार्य उपस्थिति के नियमों का छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, और शिकायत निवारण समितियों की भूमिका क्या होनी चाहिए?
- स्वेच्छा से उपस्थिति: क्या छात्रों को जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए स्वेच्छा से कक्षाओं में उपस्थित होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, बजाय इसके कि उन्हें दंड के द्वारा मजबूर किया जाए?
- कामकाजी छात्रों: क्या कामकाजी छात्रों को बिना अनिवार्य उपस्थिति के अध्ययन जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, या उन्हें ओपन लर्निंग की सुविधा दी जानी चाहिए?
- चेतावनी प्रणाली: क्या अनुपस्थिति के लिए दंडित करने से पहले छात्रों या माता-पिता को चेतावनी देने की कोई प्रणाली होनी चाहिए?
- शिक्षकों की जिम्मेदारी: क्या छात्रों की उपस्थिति की कमी के लिए शिक्षकों को भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए?
- शहरी और ग्रामीण भिन्नताएँ: क्या उपस्थिति के नियम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग होने चाहिए, क्योंकि इंटरनेट की उपलब्धता और जानकारी तक पहुंच अलग-अलग हो सकती है?
- हाइब्रिड शिक्षण: कोविड-19 के बाद के युग में, क्या अनिवार्य रूप से हाइब्रिड शिक्षण प्रणाली होनी चाहिए, और क्या भौतिक उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए या ऑनलाइन या वर्चुअल उपस्थिति भी मान्य मानी जा सकती है?
- विश्लेषणात्मक शिक्षण: क्या कक्षा शिक्षण को अधिक विश्लेषणात्मक और अनुप्रयोग आधारित बनाने की आवश्यकता है, ताकि छात्र स्वेच्छा से कक्षाओं में उपस्थित हों?
- परीक्षा पैटर्न: क्या परीक्षा पैटर्न को बदलने की आवश्यकता है ताकि प्रश्नपत्र अधिक विश्लेषणात्मक और अनुप्रयोग आधारित हों, जिससे छात्रों को कक्षाओं में भाग लेना और चर्चाओं में शामिल होना आवश्यक हो जाए?
- तकनीकी हस्तक्षेप: क्या तकनीकी हस्तक्षेप का उपयोग शिक्षण, मूल्यांकन, शैक्षिक पहुंच और शिक्षा की योजना बनाने व प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है, जिसमें प्रवेश, उपस्थिति, मूल्यांकन आदि शामिल हैं?
- कक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर: क्या शैक्षणिक संस्थानों द्वारा बेहतर गुणवत्ता वाले कक्षा ढांचे को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए ताकि छात्रों की स्वैच्छिक भागीदारी बढ़े और हाइब्रिड शिक्षण प्रणाली को प्रोत्साहन मिले?
दिल्ली हाई कोर्ट: बीसीआई के निर्देश और अगले कदम
कोर्ट ने भारतीय विधिज्ञ परिषद (BCI) को भी निर्देश दिया कि वे उन सामग्रियों को प्रस्तुत करें जिन पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य उपस्थिति नियमों के समर्थन में विचार किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर 2024 को निर्धारित की गई है।
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