JNU चुनाव 2025: जेएनयू फिर से ‘लाल’, लेकिन 10 साल बाद एबीवीपी ने भी मारी बाजी

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By headlineslivenews.com

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JNU चुनाव 2025: नई दिल्ली — जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र संघ चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर दिखा दिया कि यह कैंपस विचारधारा की जंग का सबसे बड़ा अखाड़ा बना हुआ है।

JNU चुनाव 2025: जेएनयू फिर से 'लाल', लेकिन 10 साल बाद एबीवीपी ने भी मारी बाजी
JNU चुनाव 2025: जेएनयू फिर से ‘लाल’, लेकिन 10 साल बाद एबीवीपी ने भी मारी बाजी

इस बार यूनाइटेड लेफ्ट (आइसा और डीएसएफ गठबंधन) ने तीन प्रमुख पदों पर कब्जा जमाया है, लेकिन एक सीट पर 10 साल बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने इतिहास रचते हुए जीत दर्ज की है।

कुल मिलाकर, जेएनयू एक बार फिर ‘लाल’ जरूर हो गया है, पर एबीवीपी ने भी यह दिखा दिया है कि वह अब यहां पूरी तरह हाशिये पर नहीं रही। इस चुनाव में दिलचस्प बात यह रही कि एक सीट पर एबीवीपी की वापसी और लेफ्ट का भीतर से बंटाव ने चुनाव को बेहद रोचक और अप्रत्याशित बना दिया।

JNU चुनाव 2025: चुनाव परिणाम कौन कहां जीता?

जेएनयू छात्र संघ की चार प्रमुख सीटों — अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव — पर हुए मुकाबले में इस बार तस्वीर कुछ इस तरह रही:

  • अध्यक्ष (President)नीतीश कुमार (आइसा)
  • उपाध्यक्ष (Vice President)डीएसएफ उम्मीदवार
  • महासचिव (General Secretary)आइसा उम्मीदवार
  • संयुक्त सचिव (Joint Secretary)वैभव मीणा (एबीवीपी)

नीतीश कुमार, जो कि सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के पीएचडी छात्र हैं, ने यूनाइटेड लेफ्ट पैनल के तहत अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की। नीतीश की जीत ने यह साफ कर दिया कि despite चुनौतियों के, जेएनयू में वामपंथी धारा अब भी मजबूत बनी हुई है।

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एबीवीपी ने 10 साल बाद तोड़ी लेफ्ट की एकाधिकार परंपरा

गौरतलब है कि एबीवीपी ने 10 वर्षों बाद यूनियन के किसी पद पर जीत हासिल की है। वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद पर जीत दर्ज की, और यह एबीवीपी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला क्षण रहा।

चुनाव के शुरुआती दौर में जब वोटों की गिनती हो रही थी, तो लगभग 3500 वोटों तक एबीवीपी सभी चारों पदों पर बढ़त बनाए हुए थी। लेकिन जैसे-जैसे विभिन्न स्कूलों के वोटों की गिनती शुरू हुई, खासकर सोशल साइंसेज, लैंग्वेज, इंटरनेशनल रिलेशंस और आर्ट एंड एस्थेटिक्स स्कूल के, लेफ्ट उम्मीदवारों ने वापसी करनी शुरू कर दी।

विशेष रूप से विज्ञान, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट स्कूल्स में एबीवीपी को अपेक्षाकृत अधिक समर्थन मिला, जिससे संयुक्त सचिव पद पर उनकी पकड़ बनी रही।

JNU चुनाव 2025: जेएनयू फिर से 'लाल', लेकिन 10 साल बाद एबीवीपी ने भी मारी बाजी

लेफ्ट का विभाजन और उसका असर

इस बार यूनाइटेड लेफ्ट (आइसा और डीएसएफ) और अलग होकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) तथा दो अन्य संगठनों का एक नया पैनल भी मैदान में था। लेफ्ट के भीतर हुए इस विभाजन का साफ असर परिणामों पर दिखा।

जहां यूनाइटेड लेफ्ट (आइसा-डीएसएफ) को तीन सीटें मिलीं, वहीं नया गठबंधन तीसरे स्थान पर रहा। इससे यह स्पष्ट हुआ कि यदि वामपंथी ताकतें एकजुट रहतीं, तो एबीवीपी को संयुक्त सचिव की सीट छीनने का मौका नहीं मिलता।

वोटों का गणित: कहां किसे मिला समर्थन?

5588 कुल मतों की गिनती में प्रारंभिक दौर में एबीवीपी मजबूत स्थिति में थी। इंजीनियरिंग, साइंस और मैनेजमेंट स्कूलों से उन्हें बड़ी संख्या में वोट मिले।
लेकिन जैसे ही सोशल साइंस, लैंग्वेज और आर्ट्स फैकल्टी से वोट गिने जाने लगे, वामपंथी उम्मीदवारों ने जोरदार वापसी कर ली।

  • साइंस, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग: एबीवीपी को बढ़त
  • सोशल साइंसेज, लैंग्वेजेज, आर्ट्स: लेफ्ट की वापसी

यही कारण रहा कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर वामपंथी उम्मीदवारों ने एबीवीपी को पछाड़ दिया। लेकिन संयुक्त सचिव पद पर एबीवीपी उम्मीदवार वैभव मीणा ने अपनी बढ़त बनाए रखी और जीत दर्ज की।

रोमांचक रहा संयुक्त सचिव का मुकाबला

संयुक्त सचिव का चुनाव सबसे ज्यादा दिलचस्प रहा। यहां आखिरी वोट तक मुकाबला कांटे का रहा। वैभव मीणा ने लगातार बढ़त बनाए रखी, लेकिन लेफ्ट उम्मीदवार भी पीछे-पीछे बने रहे। आखिरी गिनती में मामूली अंतर से एबीवीपी के वैभव मीणा ने जीत दर्ज की और इतिहास रच दिया।

चुनाव प्रचार और मुख्य मुद्दे

जेएनयू छात्र संघ चुनाव हमेशा से गंभीर राजनीतिक विमर्श और वैचारिक टकराव के लिए जाना जाता रहा है। इस बार भी मुख्य मुद्दे रहे:

  • कैंपस में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • छात्रावासों की सुविधाएं और फीस वृद्धि
  • जातीय और लैंगिक न्याय
  • यूनिवर्सिटी के अकादमिक माहौल में बढ़ती ‘सेंसरशिप’ के आरोप
  • रोजगार और भविष्य के अवसरों पर केंद्रित नीति

वहीं, एबीवीपी ने “राष्ट्रवाद”, “गौरवपूर्ण भारतीयता”, “सुरक्षित कैंपस” जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और अपने समर्थकों के बीच नई ऊर्जा का संचार किया।

वोटिंग और टर्नआउट

इस बार मतदान प्रतिशत करीब 67% रहा, जो पिछले कुछ वर्षों के औसत से थोड़ा अधिक था। छात्र मतदान को लेकर इस बार काफी उत्साहित नजर आए, खासकर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के छात्रों में।

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राजनीतिक संदेश: जेएनयू में बदलते समीकरण

इन चुनाव परिणामों ने कुछ बड़े राजनीतिक संदेश दिए हैं:

  • वामपंथ का वर्चस्व अब भी बना हुआ है, पर आंतरिक एकता कमजोर हो रही है।
  • एबीवीपी ने दस साल बाद वापसी कर संभावनाओं के नए दरवाजे खोले हैं।
  • छात्र समुदाय की प्राथमिकताएं धीरे-धीरे विविध होती जा रही हैं।
  • पारंपरिक विचारधाराओं के साथ-साथ अब छात्रों के बीच व्यवहारिक मुद्दों पर भी वोटिंग हो रही है।

नई यूनियन के सामने प्रशासनिक चुनौतियां

अब देखना यह होगा कि नई यूनियन जेएनयू में किस तरह का माहौल बनाती है। क्या यूनाइटेड लेफ्ट प्रशासनिक मुद्दों पर मजबूत दबाव बनाएगा? क्या एबीवीपी अपने बढ़े हुए जनाधार को अगले चुनावों तक बनाए रख पाएगी?

और सबसे बड़ा सवाल — क्या वामपंथी संगठन फिर से एकजुट होकर भविष्य में अपनी शक्ति को बरकरार रख सकेंगे?

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एबीवीपी की सीट जीत ने बदले सियासी समीकरण

जेएनयू छात्र संघ चुनाव 2025 का परिणाम एक तरह से पुराने रुझानों की पुष्टि करता है, तो दूसरी ओर यह नए राजनीतिक परिवर्तन की भी आहट देता है। जहां वामपंथी गढ़ बरकरार रहा, वहीं एबीवीपी की जीत ने यह जता दिया कि लड़ाई अब पहले जैसी एकतरफा नहीं रही। आने वाले वर्षों में जेएनयू की राजनीति और भी ज्यादा दिलचस्प मोड़ ले सकती है।

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