BOMBAY HC: बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र की 2020 की उस प्रेस विज्ञप्ति को रद्द कर दिया है जिसमें हैंड सैनिटाइजर को 18% जीएसटी दर के तहत “डिसइंफेक्टेंट” के रूप में वर्गीकृत किया गया था। न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि उत्पादों की वर्गीकरण से जुड़े मुद्दे न्यायिक और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों का क्षेत्र हैं और इसे स्वतंत्रता के साथ तय किया जाना चाहिए।
BOMBAY HC: वित्त मंत्रालय के हस्तक्षेप पर सवाल
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि वित्त मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर न्यायिक और अर्ध-न्यायिक अधिकारियों को सैनिटाइजर की जीएसटी दर पर अपनी मर्जी से निर्णय लेने के बजाय, इसे ‘डिसइंफेक्टेंट’ मानने का प्रयास किया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह के वर्गीकरण का अधिकार केवल न्यायिक और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों का होता है, न कि किसी अन्य पार्टी या सरकार का। यह निर्णय स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप से बचा जा सके।
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अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी प्रेस विज्ञप्ति या कार्यकारी आदेश, जो न्यायिक या अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के निर्णय पर प्रभाव डालता हो, स्वीकार्य नहीं है। न्यायालय ने कार्यकारी शक्तियों की सीमा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अधिकार न्यायिक कार्यों के दायरे में हस्तक्षेप करने तक नहीं जा सकते। अदालत के अनुसार, कार्यपालिका का यह दायित्व नहीं है कि वह न्यायिक निर्णय को प्रभावित करने का प्रयास करे।
BOMBAY HC: प्रेस विज्ञप्ति को चुनौती देने का प्रयास
यह याचिका मुंबई की एक कंपनी, शुलके इंडिया प्रा. लिमिटेड, द्वारा दायर की गई थी, जो हैंड सैनिटाइजर और हैंड रब बनाती है। कंपनी ने तर्क दिया कि हैंड सैनिटाइजर और एंटीसेप्टिक्स को ‘मेडिकमेंट’ के रूप में बेचा जाता है, जिस पर कम जीएसटी दर लागू होती है। हालांकि, जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सैनिटाइजर को “डिसइंफेक्टेंट” की श्रेणी में रखते हुए उस पर 18% जीएसटी दर लागू की। इसके बाद, अप्रैल 2023 में जीएसटी इंटेलिजेंस निदेशालय ने कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी कर बाकी बकाया कर, जुर्माने और ब्याज की मांग की।
शुलके इंडिया प्रा. लिमिटेड ने प्रेस विज्ञप्ति और नोटिस को रद्द करने की मांग की, क्योंकि इस निर्णय का अधिकार केवल न्यायिक और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों को है। याचिका में कहा गया कि उत्पाद के वर्गीकरण का सवाल न्यायिक अधिकारियों के अधीन आता है, न कि कार्यपालिका के। कंपनी ने यह तर्क भी दिया कि किसी भी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कार्यपालिका को न्यायिक कार्यों को प्रभावित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
BOMBAY HC: कार्यकारी शक्तियों की सीमा
अदालत ने कार्यपालिका के इस कदम पर भी सवाल उठाया और पूछा कि क्या केंद्र सरकार को कार्यकारी शक्ति का प्रयोग कर न्यायिक और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों को किसी उत्पाद की वर्गीकरण का फैसला एक निश्चित तरीके से करने का निर्देश देने का अधिकार है। अदालत ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कार्यपालिका का क्षेत्र, न्यायिक कार्यों से स्पष्ट रूप से अलग होना चाहिए, और न्यायिक निर्णयों को कार्यपालिका से स्वतंत्र होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि भले ही कार्यकारी और विधायी कार्यों के बीच बहुत स्पष्ट रेखा न हो, लेकिन न्यायिक कार्यों और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट रूप से अलगाव होना चाहिए। न्यायालय ने कंपनी को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसके खिलाफ चुनौती के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध थे।
BOMBAY HC: प्रेस विज्ञप्ति को रद्द करने का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा, “हमें संतोष है कि याचिकाकर्ता ने प्रेस विज्ञप्ति को रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत किए हैं।” अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण स्वतंत्र रूप से सैनिटाइजर के वर्गीकरण और उस पर लागू जीएसटी दर का निर्णय ले सकें, बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के।
इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक अधिकारों और कार्यपालिका के हस्तक्षेप के बीच की सीमा को बनाए रखना न्याय की निष्पक्षता के लिए अनिवार्य है।












